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के. विक्रम राव

A person wearing glasses and a red shirt

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नई दिल्ली | बुधवार | 23 अक्टूबर 2024

र स्वतंत्रता प्रेमी भारतीय, जैसे कि मैं, निश्चित रूप से आज बहुत गर्व महसूस कर रहा होगा, जब उसने सुना कि ब्रिटेन के सम्राट चार्ल्स ने ऑस्ट्रेलिया की संसद में भाषण समाप्त करते ही एक आदिवासी महिला सीनेटर द्वारा जोर से कहे गए शब्द "आप मेरे राजा नहीं हैं" का सामना किया। ऑस्ट्रेलियाई निर्दलीय सीनेटर लिडिया थोर्प ने राजा चार्ल्स और रानी कैमिला के सामने यह कहते हुए विरोध जताया कि "हमें हमारी जमीन वापस दो।"

भारत का इतिहास भी ब्रिटिश उपनिवेश के दौरान इसी प्रकार के अत्याचारों से भरा हुआ है। राबर्ट क्लाइव ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव रखी, ठीक उसी तरह जैसे जेम्स कुक ने 1770 में ऑस्ट्रेलिया को उपनिवेशित किया। इन दोनों ने स्थानीय लोगों को बेदखल कर उनके अधिकारों का हनन किया।

21 अक्टूबर 2024 को, किंग चार्ल्स और रानी कैमिला ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा में प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ सहित देश के नेताओं से मिले। जब किंग चार्ल्स ने संसद में भाषण समाप्त किया, तब लिडिया थोर्प ने राजा के विरोध में तेज आवाज में कहा, "यह आपकी जमीन नहीं है। आप मेरे राजा नहीं हैं।" जब सुरक्षा अधिकारी थोर्प को हॉल से बाहर ले जाने लगे, तब उन्होंने और भी जोर से कहा, "आपने हमारे लोगों का नरसंहार किया है। हमें हमारी जमीन वापस दो।"



लेख एक नज़र में

ब्रिटेन के सम्राट चार्ल्स की ऑस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान, निर्दलीय सीनेटर लिडिया थोर्प ने जोर से कहा, "आप मेरे राजा नहीं हैं," और अपनी भूमि की वापसी की मांग की। यह घटना उस ऐतिहासिक संदर्भ में महत्वपूर्ण है, जिसमें भारत भी ब्रिटिश उपनिवेशवाद का शिकार रहा।

 

थोर्प के विरोध ने ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा किए गए अत्याचारों को उजागर किया, जैसे कि राबर्ट क्लाइव और जेम्स कुक द्वारा स्थानीय लोगों के अधिकारों का हनन। ऑस्ट्रेलिया में राजशाही के खिलाफ बहस बढ़ रही है, और प्रधानमंत्री अल्बनीज़ ने गणतंत्र बनाने का वादा किया था।

 

इतिहास के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, और यह स्पष्ट है कि उपनिवेशीय जुल्म के प्रति असंतोष अब और अधिक मुखर हो रहा है। यह केवल ऑस्ट्रेलिया का मामला नहीं है, बल्कि सभी पूर्व उपनिवेशों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है कि न्याय की आवश्यकता है।



ऑस्ट्रेलिया में ब्रिटिश राजशाही का विरोध अब एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। ऑस्ट्रेलिया एक राष्ट्रमंडल देश है, जहां का राष्ट्रप्रमुख ब्रिटेन का राजा होता है। इसके खिलाफ लंबे समय से बहस चल रही है कि क्या ऑस्ट्रेलिया गणतंत्र बने। वर्तमान प्रधानमंत्री अल्बनीज़ ने इस मुद्दे पर चुनाव प्रचार के दौरान जनमत संग्रह कराने का वादा किया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद वह इस वादे से मुकर गए।

जब भी महारानी एलिजाबेथ या किंग चार्ल्स भारत आए, उन्हें भी इसी प्रकार के विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ा। तीन सदियों के ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान किए गए अत्याचारों को आज भी भुलाया नहीं जा सकता। जब चार्ल्स ने भारत में जलियांवाला बाग का दौरा किया, तब भी उन्होंने उस नरसंहार के लिए कोई खेद नहीं जताया।

इतिहासकार विल डूरेंट ने अपने लेखन में भारतीय उपनिवेश पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद को "समस्त इतिहास की निकृष्टतम उपलब्धि" बताया है। उन्होंने लिखा है कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने 173 वर्षों तक भारत को लूटा। कोहिनूर हीरा इसका एक प्रमुख उदाहरण है। हाल ही में, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने चार्ल्स के राजतिलक के समय बिना किसी शर्त के लंदन का दौरा किया।

एलिजाबेथ द्वितीय के निधन पर, ब्रिटेन के पूर्व उपनिवेशों में जनसंवेदना का अभाव स्पष्ट था। कीनिया की विधिवेत्ता एलिस मूगो ने कहा कि वह महारानी के निधन पर शोक नहीं करतीं। कीनिया के माऊ माऊ विद्रोह के दौरान, ब्रिटिश सैनिकों द्वारा किए गए जघन्य अपराधों का कोई मुकाबला नहीं किया जा सकता।

भारत में, स्वतंत्रता सेनानियों ने ब्रिटेन से जलियांवाला बाग हत्याकांड के लिए माफी मांगने की लगातार अपील की है। जनरल डायर द्वारा की गई गोलीबारी पाशविक थी, लेकिन इसके बाद भी ब्रिटिश नेतृत्व ने कभी भी इस पर खेद नहीं जताया।

जब हंटर जांच समिति ने जनरल डायर के बयान को प्रस्तुत किया कि "मेरे पास गोलियां खत्म हो गई थीं," तब यह दर्शाता है कि उन्हें अपनी कार्रवाई का कोई पछतावा नहीं था। जब डायर लंदन लौटे, तो उन्हें 20,000 रुपये (आज के हिसाब से 2 करोड़) का पुरस्कार दिया गया।

इस प्रकार, किंग चार्ल्स की ऑस्ट्रेलिया यात्रा और लिडिया थोर्प का विरोध दर्शाता है कि उपनिवेशीय जुल्म के प्रति अब लोगों का असंतोष और अधिक मुखर हो रहा है। यह केवल ऑस्ट्रेलिया का मामला नहीं है, बल्कि यह सभी पूर्व उपनिवेशों के लिए एक बड़ा संदेश है कि इतिहास को न केवल याद किया जाना चाहिए, बल्कि इसके प्रति न्याय भी किया जाना चाहिए।

आखिरकार, यह महत्वपूर्ण है कि उपनिवेशीय जुल्म के इतिहास से हम सीखें और एक नई शुरुआत करें, जहां सभी देशों के लोग समानता और स्वतंत्रता के साथ जी सकें।

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