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डॉ॰ सलीम ख़ान

A person with a beard and glasses

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मुंबई | मंगलवार | 10 सितम्बर | 2024

पिछले पाँच महीनों में भाजपा के जनक संगठन आरएसएस ने कई बार अपनी नीतियों में बदलाव किए हैं, और अब जाति आधारित जनगणना का समर्थन करके सबको चौंका दिया है। यह कदम संघ परिवार के लिए ज़हर का प्याला पीने जैसा है, लेकिन सत्ता बनाए रखने के लिए कई बार वह कदम उठाने पड़ते हैं जो पहले संभव नहीं माने जाते। हाल ही में राहुल गांधी ने संसद में अपने भाषण के दौरान पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधित्व की कमी पर सवाल उठाए थे और जिन 6 प्रमुख लोगों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया था, उनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, अंबानी, अदाणी, अजीत डोभाल और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का नाम भी शामिल था। इससे आरएसएस को गहरी चोट पहुंची और इसका असर उसके मुखपत्र ‘पाञ्चजन्य’ के सम्पादकीय में साफ दिखाई दिया।

‘पाञ्चजन्य’ के सम्पादक हितेश शंकर ने अपने सम्पादकीय में जाति आधारित जनगणना के विरोध का पुरजोर समर्थन करते हुए राहुल गांधी और अखिलेश यादव पर तीखे हमले किए। जब अनुराग ठाकुर ने संसद में राहुल गांधी के खिलाफ जाति आधारित टिप्पणी की, तो भाजपा के सदस्यों ने ताली बजाई, लेकिन अखिलेश यादव ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई और इसे संविधान विरोधी बताया। इसके बाद ‘पाञ्चजन्य’ ने अपने सम्पादकीय का शीर्षक ‘ऐ नेता-जी कौन जात हो?’ रखते हुए विवाद को और बढ़ा दिया।

सम्पादकीय में जाति व्यवस्था को महान बताया गया और दावा किया गया कि यह व्यवस्था हमेशा विदेशी आक्रमणकारियों के निशाने पर रही है। इसमें आरोप लगाया गया कि मुग़ल और मिशनरी इसे खत्म करना चाहते थे, हालांकि संपादक ने अंग्रेजों का नाम लेने से परहेज किया। यह तर्क दिया गया कि ब्राह्मणों के नेतृत्व में शूद्रों को हमेशा शिक्षा और ज्ञान से वंचित रखा गया था। हालांकि, इतिहास से यह स्पष्ट है कि इस व्यवस्था के कारण समाज में गहरी असमानता और शोषण व्याप्त था।

 

लेख एक नज़र में
आरएसएस ने पिछले पाँच महीनों में अपनी नीतियों में कई बदलाव किए हैं, और अब जाति आधारित जनगणना का समर्थन करके सबको चौंका दिया है।
 यह कदम संघ परिवार के लिए ज़हर का प्याला पीने जैसा है, लेकिन सत्ता बनाए रखने के लिए कई बार वह कदम उठाने पड़ते हैं जो पहले संभव नहीं माने जाते। आरएसएस के मुखपत्र ‘पाञ्चजन्य’ ने जाति व्यवस्था को महान बताया और दावा किया कि यह व्यवस्था हमेशा विदेशी आक्रमणकारियों के निशाने पर रही है।
 हालांकि, इतिहास से यह स्पष्ट है कि इस व्यवस्था के कारण समाज में गहरी असमानता और शोषण व्याप्त था।

 

‘पाञ्चजन्य’ के सम्पादकीय में लिखा गया कि जाति व्यवस्था ने समाज को एकजुट रखा, लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। शूद्रों के साथ हमेशा भेदभाव और अत्याचार होता रहा। उनके लिए पीने के पानी, पूजा स्थलों और सामाजिक मान्यता तक पहुंच सीमित थी। सम्पादकीय में जाति के विरोध को राष्ट्र विरोधी करार दिया गया, जोकि सरासर गलत है। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने जाति व्यवस्था का खुला विरोध किया और हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म में परिवर्तन कर लिया, क्योंकि वह इस व्यवस्था को मानते नहीं थे।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पहले जाति व्यवस्था को अस्वीकार करते हुए कहा था कि हिंदू धर्म में कोई जाति व्यवस्था नहीं है और यह ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई है। हालांकि, उनके इस बयान का कई साधु-संतों और ब्राह्मण संगठनों ने विरोध किया था। कई जगहों पर उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी हुए थे, और उन पर मुकदमे भी दर्ज हुए थे।

अब आरएसएस ने जाति आधारित जनगणना का समर्थन कर दिया है, जोकि एक बड़ी राजनीतिक पलटी मानी जा रही है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे का राजनीतिक उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। संघ परिवार की यह नई नीति राजनीतिक मजबूरियों और सत्ता बचाने के दबाव का परिणाम है।

सम्पादकीय में मुसलमानों पर भी टिप्पणी की गई और उनके खिलाफ कठोर विचार व्यक्त किए गए, जिससे स्पष्ट है कि संघ का रवैया धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति अब भी कठोर है।

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