व्यंग्य लेखन की सही अभिव्यक्ति क्षमता, अब तक के व्यंग्य लेखन में देखी जा सकती है। इसके दो प्रमुख रूप हमारे सामने हैं - एक तरफ़ महान व्यंग्यकार जैसे मार्क ट्वेन और हरिशंकर परसाई, और दूसरी तरफ़ सामान्य और दिखावटी व्यंग्य लेखन। सवाल यह उठता है कि आज के व्यंग्य लेखन की दिशा क्या है और यह किस स्तर पर खड़ा है? यह स्थिति बहुत हद तक लेखक की सोच, उसका ज़मीर, और उसकी जनसंबद्धता पर निर्भर करती है। कई लेखक तो ऐसे हैं, जो केवल लेखन के माध्यम से अमर होने की इच्छा रखते हैं।
आज व्यंग्य लेखन एक चमत्कारी दुनिया बन गया है, जहां कई लेखक केवल रिकॉर्ड बनाने और अपना नाम दर्ज करवाने के लिए लिख रहे हैं। कुछ लेखकों का लेखन उनके अपने आत्ममुग्धता का परिणाम है, तो कुछ बिना किसी उद्देश्य के सिर्फ़ लिखने की प्रक्रिया में व्यस्त हैं। हालांकि, व्यंग्य लेखन केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, यह समाज और समय से टकराने का एक आवश्यक माध्यम है। इसका सही उपयोग जोखिम, अनुभव, संवेदना और सृजनात्मकता के जरिये समाज को आईना दिखाने में होता है।
व्यंग्य लेखन का असली उद्देश्य समाज में मौजूद विडंबनाओं और विसंगतियों को उजागर करना है। व्यंग्य केवल शब्दों का खेल नहीं है, बल्कि यह जीवंत और अर्थपूर्ण शब्दों के जरिये समाज में बदलाव लाने का एक सशक्त माध्यम हो सकता है। हरिशंकर परसाई ने अपने व्यंग्य में सत्ता की चालबाजियों और नेताओं की दोहरी भूमिकाओं को उजागर किया है। उनका व्यंग्य आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि वह सत्ता और समाज की कमजोरियों को एक सटीक और तीखी भाषा में व्यक्त करता है। उदाहरण के तौर पर परसाई जी का यह कथन - "तुम्हारे प्रधानमंत्री की यह अदा है। इसी अदा पर तुम्हारे यहां की सरकार टिकी हुई है। जिस दिन यह अदा और अदाकार नहीं होगा, उस दिन यह सरकार एकदम गिर जाएगी।" - सत्ता की असलियत को बेपर्दा करता है।
आज व्यंग्य लेखन केवल साहित्य का अंग नहीं रहा, बल्कि यह एक बड़े बाज़ार का हिस्सा बन चुका है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया पर व्यंग्य का व्यापक उत्पादन हो रहा है। लेकिन यह व्यंग्य लेखन जीवंत और सजीव शब्दों से नहीं, बल्कि मात्र तुकबंदी और चमत्कारों पर आधारित है। आज का व्यंग्य लेखन जिस दिशा में जा रहा है, वह न केवल दोहराव का शिकार है, बल्कि कहीं न कहीं वह अपने असली उद्देश्य से भटक भी रहा है।
परसाई जैसे महान व्यंग्यकारों ने व्यंग्य को कभी केवल मनोरंजन का साधन नहीं माना। उन्होंने व्यंग्य को समाज सुधार का एक सशक्त माध्यम बनाया। उनका लेखन न केवल तत्कालीन समाज की समस्याओं को उजागर करता था, बल्कि आज भी उनके व्यंग्य की मारक क्षमता वही है। लेकिन आज के दौर में व्यंग्य लेखन एक प्रकार का फैशन बन गया है। हर कोई अपने आप को व्यंग्यकार साबित करने में लगा है, चाहे वह इसके मर्म को समझे या न समझे।
व्यंग्य लेखन का यह नया दौर व्यक्तिवाद की ओर झुकता जा रहा है। लेखकों का ध्यान अब समाज की वास्तविक समस्याओं से हटकर अपने निजी स्वार्थों और पहचान बनाने पर केंद्रित हो गया है। किताबों के प्रकाशन का उद्योग और सोशल मीडिया पर छा जाने की होड़ ने व्यंग्य लेखन के असली मर्म को कहीं दबा दिया है। आज व्यंग्य लेखन एक व्यवसाय बन चुका है, जहां लेखकों का उद्देश्य केवल प्रसिद्धि पाना रह गया है।
हालांकि, व्यंग्य लेखन का असली सार यह है कि यह समाज की वास्तविकता को बारीकी से समझे और उसकी विसंगतियों को उजागर करे। यह लेखन केवल उपदेश देने के लिए नहीं है, बल्कि यह जागरूकता फैलाने और समाज में सुधार लाने का एक माध्यम है। व्यंग्यकार केवल समाज की कमियों को उजागर करता है, लेकिन उसके पास उन्हें सुधारने का कोई उपाय नहीं होता। यह काम धर्म और राजनीति के नेताओं का है, लेकिन जब वही लोग समाज की विसंगतियों का हिस्सा बन जाते हैं, तो व्यंग्यकार का काम और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
व्यंग्य लेखन केवल शब्दों का खेल नहीं है। यह एक गहरी समझ, संवेदना और साहस की मांग करता है। व्यंग्यकार न केवल हंसता है, बल्कि वह रोता भी है, और उसकी लेखनी में वह दर्द झलकता है, जो समाज की कमजोरियों को बारीकी से उजागर करता है। एक सच्चा व्यंग्यकार केवल सतही मुद्दों पर नहीं, बल्कि समाज की गहरी समस्याओं पर अपनी कलम चलाता है।
परसाई जी ने व्यंग्य लेखन को केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि एक गंभीर और महत्वपूर्ण साहित्यिक विधा माना। उन्होंने व्यंग्य को समाज में बदलाव लाने का एक सशक्त माध्यम बनाया। आज, जब व्यंग्य लेखन की दिशा कहीं खोती जा रही है, तो हमें परसाई जैसे महान व्यंग्यकारों की लेखनी से सीखना चाहिए। व्यंग्य लेखन केवल चमत्कारी शब्दों का खेल नहीं है, बल्कि यह समाज में जागरूकता फैलाने का एक महत्वपूर्ण जरिया है।
अंत में, व्यंग्य लेखन को हम केवल मनोरंजन का साधन न मानें, बल्कि इसे समाज की वास्तविकता को उजागर करने और उसे बेहतर बनाने का एक सशक्त माध्यम मानें। व्यंग्यकार का काम केवल हंसाना नहीं, बल्कि समाज की गहराईयों को समझना और उसे सुधारने की दिशा में सोचना भी है।
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