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तलाश एक उद्घाटनकर्ता की

प्रदीप माथुर

नई दिल्ली, 29 मई 2024

मैं बताएं हुए समय पर उनके बंगले में पहुंच गया। वह न सिर्फ सांसद थे बल्कि एक कदावर नेता भी थे। अपनी पार्टी में उनकी पहुंच उपर तक थी।

थोड़ी प्रतीक्षा के बाद उनके पीए ने कहा कि मैं अंदर जाऊ। सासंद महोदय किसी से जोर-शोर से बात कर रहे थे। बगल की कुर्सी पर एक चमचानुमा छुटभैय्या नेता बैठे थे। उन्होंने मुझे सासंद महोदय के सामने वाली कुर्सी पर बैठने का इशारा किया। फोन रखकर सांसद महोदय ने मुझसे कहा “कहिये” फिर मेज पर रखा हुआ मेरा विजिटिंग कार्ड पढ़ा और बोले “अच्छा तो आप प्रोफेसर साहब हैं। हम तो शिक्षकों का बहुत सम्मान करते हैं। वास्तव में वही असली राष्ट्रनिर्माता हैं।”

उनके यह विचार सुनकर मैं गदगद हो गया। वास्तव में शासको द्वारा गुरुजनों का आदर करने वाली हमारी पुरातन पंरपरा जीवित है। मैंने सोचा।

प्रोफेसर आप क्या विषय पढ़ाते हैं, सांसद महोदय ने पूंछा।

सर मेरा विषय राजनीतिशास्त्र है। आधुनिक भारत में राजनीति की धारा विषय पर मेरा शोध कार्य है, मैंने उत्तर दिया।

विषय तो अच्छा है पर यह बताइये कि लोग हमारी पार्टी की विचार धारा को क्यों नहीं समझते। कुछ ऐसा कीजिये जिससे आपके विद्यार्थी जनता के बीच जा कर हमारी पार्टी के समर्थन में जन चेतना विकसित कर सकें। वह बोले।

जी कहकर मैं चुप हो गया। इसके बाद मैंने अपने हाथ का लिफाफा खोल कर अपना आवेदन पत्र उनकी ओर बढ़ाया। सांसद महोदय ने वह पत्र लिया और बिना पढ़े ही छुटभैय्या नेता को देकर कहा-इसे मेरे पीए को दे दीजिए। फिर वह मेरी तरफ मुखातिब हुए और बोले कि प्रोफेसर साहब कैसे कष्ट किया आने का।

मैंने कहा आपके चुनावक्षेत्र में पहले हमारा एक बड़ा सा मकान था। जब बहुत समय से वह खाली पड़ा  था। सेवानिवृत्त होने के बाद मुझे जो पीएफ  और ग्रजुएटी के पैसे मिले वह लगातार मैंने उस जगह एक शिक्षा संस्थान खोल दिया है। उस संस्थान के लिए आपका आशीर्वाद चाहिए।

अरे यह तो आपने बहुत महान काम किया और इसके लिए आप बंधाई के पात्र हैं । बताइये आपको क्या आर्थिक सहयोग चाहिए, सांसद बोले।

नहीं मुझे उसकी आवश्यकता नहीं है। रिटायरमेंट के मुझे पीएफ और गेजुएटी का जो पैसा मिला  पैसा तो वह मैंने संस्थान में लगा दिया है। फिर मैं दो साल के लिए फॉरेन एसाइंटमेंट पर भी था, वहां भी काफी पैसा जुड़ गया था, मैंने कहा।

अच्छा सांसद महोदय बोले। उनके स्वर की उर्जा मुझे कुछ कम लगी।

मैं चाहता हूँ कि आप शिक्षामंत्री या किसी अन्य बड़े मंत्री से शिक्षा संस्थान का उद्धाटन करवा दें। आपका चुनाव क्षेत्र है इसलिए आप तो अतिविशिष्ट अतिथि होंगे ही, मैंने कहा।

अच्छा यह बात है, वह बोले।

हाँ, यहीं मैंने उस आवेदन पत्र में लिखा है, मैंने कहा।

आपके शिक्षा संस्थान में शिक्षको और गैर-शिक्षकों के 30-40 पद तो होंगे ही। इन पदों के लिए जब आप व्यक्तियों का चयन करे तो हमारे लोगों का भी ध्यान रखियेगा, वह बोले।

जी मैंने धीरे से कहा।

अच्छा आप इस शिक्षण संस्थान का नाम हमारी पार्टी के किसी बड़े नेता के नाम पर रखिये या फिर पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष के नाम पर रख लीजिये, उन्होंने सुझाव दिया। मैं चुप रहा। मुझे चुप देखकर वह बोले आपने क्या नाम सोचा है।

जी, संस्थान का नाम ब्रजराज किशोर शिक्षा संस्थान है। यह नाम रजिस्टर्ड भी हो चुका है, मैंने कहा।

अरे, यह क्या हुआ, आपने किसी बड़े जानेमाने आदमी के नाम पर अपने संस्थान का नाम क्यों नहीं रखा।, वह बोले।

वास्तव में यह पैतृक संपत्ति मेरे दादाजी को विराजस में मिली थी। उन्होंने इसे अपने पिताजी के नाम पर ट्रस्ट बनाकर परिवार को सौंप दिया। अब इस पर कोई संस्थान ट्रस्ट के नाम पर ही बन सकता था, मैंने स्पष्टीकरण दिया।

अच्छा यह बात है, कहकर सांसद महोदय ने गर्दन फेरी और छुटभैय्या नेता से बोले जरा पता लगाइये गाड़ी तैयार है न। हमें टाइम पर पहुंचना जरुरी है।

मंत्री महोदय जी तिथि और समय कब मिल पायेगा। मैं आपसे फिर कब मिलूं, मैंने पूंछा।

देखिये मैं  बात करता हूँ। आजकल सभी बड़े मंत्री बहुत बिजी चल रहे हैं मुझे भी एक संसदीय दल के साथ विदेश जाना है पर तारीख अभी तय नहीं हुई है। आप हफ्ता दस दिन बाद मेरे पीए को फोन करके पूंछ लीजियेगा। सांसद महोदय बोले और  उठकर खड़े हो गए।

मैं कमरे के बाहर आ गया। मन में प्रश्न यह था कि किसी अन्य उद्घाटन कर्ता की तलाश की जाय या बिना उद्घाटन के संस्थान चालू कर दिया जाय।

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