लखनऊ के आख़िरी नवाब साब वाजिद अली शाह पर अनेक पोस्टें लिखी है। जानेआलम से मज़ेदार किरदार इतिहास में ढूँढे ना मिलता। परले दर्जे के नाज़ुकनर्मा औरतबाज़ आदमी रहे थे नवाब साब। हद से जियादा मोटे और अत्यधिक पान तंबाकू खाने से नवाब के सब दांत सड़ गए थे- लेकिन कबाब खाने की उल्फ़त ख़त्म ना हुई थी। इसके चलते नवाब के भक्षण हेतु गलौती कबाब बनाये गये जिन्हें वो सीधे सीधे निगल ले- दांत से चबाने की ज़रूरत ही ना पड़ें।
नवाब वाजिद अली शाह को दो शौक़ सरचढ़े थे- पहला औरतबाज़ी का और दूसरा शायरी करने का। इन दोनों शौक़ों को नवाब साब ने कैसे मिक्स किया- उसकी एक मिसाल देखें हज़रतऐआला।
नवाब ने नई नई रिसाले और नई पलटने बनाई- रिसालों के नाम रखे: बाँका, तिरछा, घनघोर। जवान हसीन शोख़ औरतों की दो पलटन बनाई जिनके नाम रखे अख़्तरी और नादरी।
इन जनाना पलटनों की परेड और उनका अभ्यास नवाब साब ख़ुद अपनी देख रेख में करवाते थे। इन औरतों को पलटन की कमांड देने हेतु नवाब ने ख़ास फ़ारसी शब्दों का गठन किया मसलन इन औरतों को सीधे चलने हेतु कहते- रास्त रौ। पीछे घूमने के लिए कहते- पस बया। लेफ्ट घूमने के लिए कहते- दस्तरचप बग़रीद।
नवाब साब के ज़नाने में काम करती वाली हुस्नबानो का कहना था- हरम में भी नवाब साब इन्ही शब्दों का इस्तेमाल करते थे।
ख़ैर- नवाब की ये पलटन तब भाग गई जब अंग्रेजों ने हमला किया। नवाब साब ना भाग पाये। कारण- नवाब साब को जूता पहनाने वाली कनीज़ गोरे लंगूरों को देख पहले ही नौ दो ग्यारह हो ली थी। और नवाब साब ख़ुद से जूते कैसे पहनते।
लिहाज़ा नवाब साब को अंग्रेज गिरफ़्तार कर कलकत्ता ले गये!
गिरफ़्तार करने के बाद अंग्रेज अफ़सर नवाब साब से बोला- “पस बया”!
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