मुंबई की सड़कों पर 12 अक्टूबर की शाम 66 वर्षीय नेता बाबा ज़ियाउद्दीन सिद्दीकी की नृशंस हत्या ने पूरे राजनीतिक क्षेत्र को झकझोर कर रख दिया है। यह घटना खासतौर पर मुस्लिम नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए एक बड़ा झटका साबित हुई है। बाबा सिद्दीकी तीन बार के विधायक थे और उनकी हत्या ने मुस्लिम समाज में एक गहरी चिंता पैदा कर दी है।
इस हत्या के पीछे किसी राजनीतिक या व्यापारिक साजिश का कोई प्रमाण नहीं है। सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है कि उनकी हत्या का कारण केवल यह था कि वे सलमान खान के साथ खड़े थे। सलमान पर 1998 में जोधपुर में काले हिरण के शिकार का मामला दर्ज हुआ था, और बिश्नोई समुदाय इसके खिलाफ सदैव से मुखर रहा है। बिश्नोई समुदाय का मानना है कि प्रकृति और वन्यजीवों की रक्षा करना उनका कर्तव्य है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बाबा सिद्दीकी की हत्या के पीछे लॉरेंस बिश्नोई गिरोह का हाथ होने की संभावना है। लॉरेंस बिश्नोई फिलहाल गुजरात के अहमदाबाद में साबरमती जेल में बंद है। आरोप है कि इस गिरोह ने सिद्दीकी को इसलिए निशाना बनाया क्योंकि उन्होंने सलमान खान का समर्थन किया था। पुलिस भी इस एंगल से जांच कर रही है।
बाबा सिद्दीकी पहले कांग्रेस के नेता थे और इस साल फरवरी में एनसीपी (अजीत पवार) में शामिल हो गए थे। उनके बेटे ज़ीशान सिद्दीकी भी अगस्त में अजीत पवार गुट में चले गए। सिद्दीकी को बिश्नोई गिरोह से धमकियाँ मिल रही थीं, जिसके कारण उन्हें राज्य सरकार की तरफ से सुरक्षा भी दी गई थी।
लेख एक नज़र में
मुंबई में 66 वर्षीय नेता बाबा जियाउद्दीन सिद्दीकी की नृशंस हत्या ने पूरे राजनीतिक क्षेत्र को झकझोर कर रख दिया है।
उनकी हत्या के पीछे लॉरेंस बिश्नोई गिरोह का हाथ होने की संभावना है, जो सलमान खान के समर्थन में खड़े होने के कारण उन्हें निशाना बनाया गया था। बाबा सिद्दीकी को राज्य सरकार की तरफ से सुरक्षा दी गई थी, लेकिन फिर भी उनकी हत्या हो गई।
यह घटना मुस्लिम समाज में एक गहरी चिंता पैदा कर दी है और सवाल उठाती है कि क्या मुस्लिम नेताओं को उनके राजनीतिक उभार और लोकप्रियता के कारण निशाना बनाया जा रहा है?
लॉरेंस बिश्नोई का नाम पहले भी कई गंभीर अपराधों में सामने आया है। उस पर जबरन वसूली, हत्या, और अन्य अपराधों के कई आरोप हैं। कनाडा पुलिस ने दावा किया है कि बिश्नोई गिरोह के संबंध खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या से हैं। हालांकि, भारत सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया है। इन आरोपों ने भारत और कनाडा के बीच कूटनीतिक तनाव को और बढ़ा दिया है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि लॉरेंस बिश्नोई जैसा अपराधी उच्च सुरक्षा वाली जेल के अंदर से अपने गिरोह की गतिविधियों को कैसे संचालित कर रहा है? जेल में रहकर भी वह अपने गिरोह के सदस्यों के संपर्क में कैसे है? इसके अलावा, क्या सलमान खान के समर्थन में खड़े होने पर बाबा सिद्दीकी की जान लेना जरूरी था?
बाबा सिद्दीकी ने एक प्रवासी होने के बावजूद महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी जगह बनाई थी। उन्होंने बॉलीवुड के कई प्रमुख लोगों के साथ संबंध बनाए और मुस्लिम समुदाय के एक प्रमुख नेता बनकर उभरे।
क्या उन्हें उनके राजनीतिक उभार और लोकप्रियता के कारण निशाना बनाया गया? इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है, लेकिन परिस्थितियां ऐसी संभावना की ओर इशारा करती हैं। पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि ऐसे नेता जो मुस्लिम समुदाय के बीच लोकप्रिय होते हैं, वे अक्सर निशाने पर आ जाते हैं। कई राज्यों में मुस्लिम नेताओं के खिलाफ कार्रवाई, उनकी संपत्तियों की जब्ती और विध्वंस की घटनाएं भी देखने को मिली हैं।
उत्तर प्रदेश के अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ की हत्या हो या प्रयागराज में उनके बेटे की मुठभेड़ में मौत, ये घटनाएं एक पैटर्न की ओर इशारा करती हैं। अतीक के खिलाफ दर्जनों आपराधिक मामले थे, लेकिन उनके जैसे कई नेताओं के मामलों को भी मीडिया ने जोर-शोर से उठाया है। इसके विपरीत, गैर-मुस्लिम नेताओं के गंभीर मामलों पर अक्सर चुप्पी साधी जाती है।
प्रयागराज में जावेद अहमद के घर को केवल इसलिए ध्वस्त कर दिया गया क्योंकि उन्होंने भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा की विवादित टिप्पणी के खिलाफ प्रदर्शन किया था। क्या वास्तव में उनका घर अवैध था, या यह एक तरीके से विरोध की आवाज को दबाने का प्रयास था?
इन घटनाओं से एक संदेश जाता है कि मुस्लिम समाज में जो भी नेता आवाज उठाएंगे या जनहित में कदम उठाएंगे, उन्हें निशाना बनाया जाएगा। यह प्रवृत्ति एक खतरनाक संकेत देती है। कानून सभी के लिए समान होना चाहिए, लेकिन क्या यह वास्तव में लागू होता है?
लखनऊ में मुस्लिम बहुल इलाकों के घरों का विध्वंस और उनके बगल के हिंदू बहुल इलाकों को बचाया जाना, यह दिखाता है कि न्याय में भेदभाव हो रहा है। यह स्थिति न केवल मुस्लिम समुदाय में डर पैदा कर रही है, बल्कि यह लॉरेंस बिश्नोई जैसे अपराधियों को और बढ़ावा दे रही है।
अब समय आ गया है कि नागरिक समाज इस मुद्दे को गंभीरता से ले और चुनिंदा अन्याय के खिलाफ सामूहिक रूप से आवाज उठाए। हमें एक ऐसा समाज बनाना चाहिए जहां कानून और न्याय सभी के लिए समान रूप से लागू हो और किसी भी समुदाय के खिलाफ भेदभाव न हो।
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