के. विक्रम राव
लखनऊ | शुक्रवार | 8 नवंबर 2024
श्री कोटमराजू रामा राव, एक प्रसिद्ध पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी और पहले राज्यसभा सदस्य (1952), अपने समय के एकमात्र ऐसे पत्रकार थे जिन्होंने 25 से अधिक अखबारों और पत्रिकाओं में काम किया। इनमें अविभाजित भारत के लाहौर का "दि पीपुल" (1936), कराची का "दि सिन्ध आब्जर्वर" (1921), मुंबई का "दि टाइम्स ऑफ इंडिया" (1924), चेन्नई का "दि स्वराज्य" (1935), कोलकाता का "दि फ्री इंडिया" (1934), नई दिल्ली का "दि हिन्दुस्तान टाइम्स" (1938), इलाहाबाद का "दि लीडर" (1920) और "दि पायोनियर" (1928) तथा पटना का "दि सर्चलाइट" (1950) शामिल हैं। परंतु उन्हें विशेष प्रसिद्धि मिली जब उन्होंने 1938 से 1946 तक जवाहरलाल नेहरू के दैनिक "दि नेशनल हेरल्ड" का लखनऊ में संपादन किया। उनके लगातार अखबार बदलने पर उनके एक साथी ने कहा था कि "वे एक जेब में संपादकीय की प्रति और दूसरी में इस्तीफा रखते थे।"
लेख एक नज़र में
श्री कोटमराजू रामा राव, एक प्रतिष्ठित पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी और पहले राज्यसभा सदस्य, ने अपने करियर में 25 से अधिक अखबारों में कार्य किया। उनका जन्म 9 नवंबर 1896 को आंध्र प्रदेश के चीराला में हुआ। रामा राव ने 1938 से 1946 तक जवाहरलाल नेहरू के दैनिक "दि नेशनल हेरल्ड" का संपादन किया और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महत्वपूर्ण रिपोर्टिंग की। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ कई संपादकीय लिखे, जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा। 1952 में वे पहले राज्यसभा सदस्य बने और पंचवर्षीय योजनाओं के प्रचार में सक्रिय रहे। रामा राव ने पत्रकारिता में कई युवा पत्रकारों को प्रशिक्षित किया और "अखिल भारतीय समाचारपत्र संपादक सम्मेलन" के संस्थापकों में से एक थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा "दि पैन एज माई स्वोर्ड" सहित कई किताबें लिखीं। उनका योगदान भारतीय पत्रकारिता और स्वतंत्रता संग्राम में अमूल्य है।
रामा राव का जन्म 9 नवंबर 1896 को आंध्र प्रदेश के चीराला में हुआ था। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की पढ़ाई की और वहीं अंग्रेजी के शिक्षक के रूप में काम भी किया। उनकी पत्रकारिता की यात्रा चेन्नई में ब्रह्मसमाज की पत्रिका "दि ह्यूमेनिटी" से शुरू हुई। इसके बाद उन्होंने कराची में "दि न्यू टाइम्स" (1919) में आचार्य टी. एल. वासवानी के साथ काम किया और फिर अपने भाई के. पुन्नय्या के "दि सिन्ध आब्जर्वर" में सह-संपादक बने। चार दशकों के अपने पत्रकारिता करियर में रामा राव ने दो विश्व युद्धों, स्वतंत्रता संग्राम, स्वतंत्र भारत की आर्थिक योजनाओं, निर्गुट विदेश नीति और मीडिया के आधुनिकीकरण पर लिखा।
महात्मा गांधी के नजदीकी रहते हुए (1942-45) रामा राव ने राष्ट्रीय आंदोलनों की रिपोर्टिंग की। उन्होंने कांग्रेस के अधिवेशनों, विधान सभा सत्रों और क्रिकेट मैचों की भी रिपोर्टिंग की। कई युवा पत्रकारों को प्रशिक्षण देने में उनका योगदान महत्वपूर्ण था, जिनमें टाइम्स ऑफ इंडिया के प्रधान संपादक बने शाम लाल, इंदिरा गांधी के मीडिया सलाहकार एच. वाई. शारदा प्रसाद और नेशनल हेरल्ड के संपादक बने एम. चलपति राव शामिल थे। उनके शिष्य बालकृष्ण मेनन, बाद में संन्यास लेकर स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती के नाम से जाने गए।
1942 में रामा राव को "दि नेशनल हेरल्ड" में "जेल या जंगल" शीर्षक संपादकीय लिखने पर ब्रिटिश सरकार ने छह महीने की सजा और जुर्माना दिया। इस संपादकीय में उन्होंने लखनऊ कैंप जेल में कांग्रेसी सत्याग्रहियों पर अत्याचार की निंदा की थी। उनकी जेल की रिपोर्टिंग का इतना प्रभाव था कि अवध चीफ कोर्ट के निर्णय को बर्लिन रेडियो पर तुरंत प्रसारित किया गया। जेल में उन्हें मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, आचार्य कृपलानी और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ रखा गया। वहां उनके साथ क्रांतिकारी शिव वर्मा, जयदेव कपूर, कम्युनिस्ट नेता काली शंकर, जोगेश चटर्जी और लोहियावादी गोपाल नारायण सक्सेना भी थे।
1949 में प्रधानमंत्री नेहरू की यूरोप, अफ्रीका और अमेरिका यात्रा में रामा राव "दि हिन्दुस्तान टाइम्स" समूह के विशेष प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुए। उन्होंने इस यात्रा के दौरान ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, मिस्र, कनाडा, ब्राजील, ग्रीस और स्विटजरलैंड जैसे देशों का दौरा किया।
1952 में रामा राव पहले राज्यसभा के सदस्य बने। उन्हें अविभाजित मद्रास राज्य से कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुना गया, जिनके नाम का प्रस्ताव के. कामराज और नीलम संजीव रेड्डी ने रखा, जो बाद में कांग्रेस अध्यक्ष बने। 1956 में भारत सरकार के पहले सलाहकार के रूप में, उन्होंने पंचवर्षीय योजना के प्रचार-प्रसार का कार्य संभाला। वे "अखिल भारतीय समाचारपत्र संपादक सम्मेलन" (AINEC) के संस्थापकों में से एक थे। 1942 में मुम्बई में हुए AINEC अधिवेशन में उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में जेल में रहते हुए चुना गया था। 1950 में भारतीय श्रमजीवी पत्रकार फेडरेशन के उपाध्यक्ष रहते हुए उन्होंने संगठन के संविधान का निर्माण किया और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लिया। वे आंध्र प्रदेश के प्रथम भाषाई राज्य के निर्माण हेतु जन आंदोलन में भी सक्रिय रहे।
रामा राव के पिता कोटमराजू नारायण राव संस्कृत के विद्वान और स्कूल के प्रधानाध्यापक थे। उनकी माँ वेंकायम्मा ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया था और अपने गाँव को कर नहीं देने के लिए संगठित किया था। उनके चचेरे भाई 'बोम्बू' रामय्या आंध्र प्रदेश के पहले क्रांतिकारी थे, जिन्होंने बम बनाया था।
1922 में रामा राव का विवाह अंग्रेजी की कवयित्री और ज्योतिषी सरस्वाणी से हुआ। इस विवाह को कांग्रेस के नेता डॉ. बी. पट्टाभि सीतारामय्या ने सम्पन्न कराया। उनके चार बेटे और चार बेटियां हैं। उनके बड़े बेटे प्रताप भारतीय विदेश सेवा से सेवानिवृत्त होकर अमेरिका में बसे, दूसरे बेटे नारायण भारतीय ऑडिट एंड अकाउंट्स सर्विस से सेवानिवृत्त होकर नई दिल्ली में एस्ट्रोलॉजी जर्नल का संपादन कर रहे हैं, तीसरे बेटे विक्रम लखनऊ में पत्रकार हैं, और सबसे छोटे बेटे सुभाष बैंक अधिकारी रहे। उनकी दो बेटियाँ, वसंत और हेमंत, अमेरिका में बसी हैं, जबकि शरद और शिशिर ने भारतीय सेना के अधिकारियों से विवाह किया और भारत में बस गईं।
रामा राव ने कई किताबें लिखीं और उनकी आत्मकथा "दि पैन एज माई स्वोर्ड" प्रकाशित हुई।
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