Thought for the Day
21 Nov 2024
चाहता तो बच सकता था
मगर कैसे बच सकता था
जो बचेगा
कैसे रचेगा
पहले मैं झुलसा
फिर धधका
चिटखने लगा
कराह सकता था
मगर कैसे कराह सकता था
जो कराहेगा
कैसे निबाहेगा
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न यह शहादत थी
न यह उत्सर्ग था
न यह आत्मपीड़न था
न यह सज़ा थी
तब
क्या था यह
किसी के मत्थे मढ़ सकता था
मगर कैसे मढ़ सकता था
जो मढ़ेगा कैसे गढ़ेगा।
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-श्रीकांत वर्मा
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