एक पेड़ पर कुछ बन्दर चढ़े,एक मोटा सा बन्दर वहां पहले से डाल पर बैठा ऊँघ रहा था।देखते ही खौखियाया-तुम लोग इस पेड़ पर कैसे आये?
बन्दरों ने कहा -हम एक जरूरी एजेंडा लेकर आएं है,आप हम से बड़े है आज की बैठक की अध्यक्षता कर दें ।मोटे बन्दर ने बगल में रखी टोपी लगायी और बोला शुरू करो...
बंदरों ने कहा-भाइयों अब हमें गांधी जी के सिद्धांत को बदलना होगा क्योंकि आज़ादी के सत्तर साल हो गए।किसी सरकार ने न तो रोटी का इंतज़ाम किया न छत का।हमे खुले में जाड़ा, गर्मी,बरसात खुले में झेलनी पड़ती है ।मौजूद सरकार भी डिज़िटल की तो फ़िक्र में है पर हमारी रोटी पानी की नही । मोटा बन्दर बोला-ठीक बात है,कोई रचनात्मक सुझाव दें!
बाकी बन्दर एक स्वर में चीखे-अब हमेंआँख खोल कर बुरा देखना होगाऔर कान खोल के बुरा सुनना होगा । मुंह खोल कर विरोध भी करना होगा । तब हम क्रांति को अमली जामा पहना सकेंगे और अपने जीवन दर्शन को बदल सकेंगे।
यह सुनकर बाकी बंदरों ने तालियां बजायीं और मोटे बन्दर की ओर देखने लगे ।यही ठीक है और समय की आवाज़ है और जरूरत भी ।
तभी अध्यक्ष पद पर बैठा मोटा बन्दर गरजा- मूर्खों हम वर्षों से तीनों कार्य करते आ रहे हैं और बुरा न देखने,बुरा न सुंनेऔर बुरा न बोलने की बात हमारी आदतों में जोड़ दी गयी है ।तभी जो भी सरकार चुन के आती है सीधे राजघाट पर जाकर सर नवाती है और तीनों काम हम बंदरों के सिर पर डाल कर लौट जाती है ।बाबा कोई नई बात सोंचो और फिर मोटे बन्दर के साथ बाकी बन्दर भी डाल पर ऊँघने लगे ।
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