Thought for the Day
21 Nov 2024
इस कदर बिगड़े हैं
तेवर नगर के,
जलरहा घर,
चुपचापहैं,
लोगघर के.
नगर के सभ्रांत जन सब,
मंत्रणा में लीन,
आग यह किसने लगाई ?
यह प्रश्न केवल विचाराधीन.
घर बुझाने के लिए,
तत्पर न कोई.
जब कि घर के पास ही,
बहते कई नाले नहर के.
है गनीमत हवा है,
अभी हल्की .
पर बन सकती,
बवंडर कभी भी.
फिर भला रह पाएगी,
सीमा कहाँ तक?
द्वार की घर की,
मोहल्ले की नगर की,
या पड़े रह जायेंगे,
कांटे डगर के.
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