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किसानों को रौंदते,

महंगाई की मार से रोते,

दलितों को दमित करते,

सेना की शहादत भुनाते,

मस्जिदों की खुदाई करते,

लड़कियों से बलात्कार करते,

एक और साल बीत गया!

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नए साल

बावजूद इसके,

तुझसे कुछ उम्मीद रखूंगा जरूर,

ना थकूंगा,

ना हारूंगा,

लड़ूंगा भरपूर,

खुद से कुछ उम्मीद रखूंगा जरूर।

तुझसे भी कुछ उम्मीद रखूंगा जरूर।

 

- विवेक अग्रवाल

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