उनमें झारखंड के निशिकांत दुबे पेश-पेश हैं। हाल में उन्होंने ‘उलटा चोर कोतवाल को डाँटे’ की तरह तृणमूल काँग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा पर अपनी सदस्यता से अतिरिक्त फ़ायदा उठाने का संगीन इल्ज़ाम लगा दिया। संसद भवन के स्पीकर ने इसपर फ़ौरन बीजेपी के विनोद कुमार सोनकर की अध्यक्षता में नैतिकता समिति गठित कर जाँच का आदेश दे दिया। इस 12 सदस्यीय समिति में तृणमूल काँग्रेस के किसी भी प्रतिनिधि का न होना चिन्ताजनक है। निशिकांत दुबे तो जाँच समिति क़ायम करने के अलावा मोइत्रा की लोकसभा की सदस्यता को समाप्त करने के भी ख़ाहिशमंद हैं। ऐसे में यह बात याद रहनी चाहिए कि सवाल पूछना सांसद का हक़ और फ़र्ज़ दोनों है। इसके लिए किसी से रिश्वत लेने की ज़रूरत नहीं। सरकार की ज़िम्मेदारी जवाब देने की है, मगर जब जवाब देने में सरकार को दिक़्क़त होती है तो सवाल पूछनेवालों को रोकने की कोशिश की जाती है। राहुल गाँधी, संजय सिंह, राघव चड्ढा और अब महुआ मोइत्रा इस कूटनीति का शिकार हो रहे हैं।
विपक्ष की ओर से यह साज़िश उन लोगों के इशारे पर रची जाती है जिनके ख़िलाफ़ सवाल होता है। ऐसे लोगों की लिस्ट में सबसे ऊपर अडानी हैं कि जिनके ख़िलाफ़ एक शब्द बर्दाश्त नहीं किया जाता। एक बार लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तो आलोचना बर्दाश्त कर लेते हैं मगर गौतम अडानी की श्रद्धा का यह आलम है कि इस बाबत एक शब्द बर्दाश्त नहीं किया जाता और हंगामा खड़ा कर दिया जाता है। जाँच तो इसपर होनी चाहिए कि इस नमक हलाली का राज़ क्या है? क्योंकि अडानी ग्रुप के लिए निशिकांत दुबे जैसे पालतू लोगों को अपनी गोद में बैठा लेना बहुत आसान है। महुआ पर इल्ज़ाम में निशिकांत ने तो सिर्फ़ तोहफ़ों और रक़म का ज़िक्र किया, मगर एक वकील जय अनंत देहाद्राई ने सीबीआई चीफ़ को ख़त लिखकर दुबई में बैठे दर्शन हीरानंदानी से पैसे और तोहफ़े लेकर अडानी ग्रुप के ख़िलाफ़ बात करने का इल्ज़ाम लगा दिया। सवाल यह है कि आख़िर दर्शन हीरानंदानी का इससे क्या फ़ायदा? अडानी पर हिंडनबर्ग या फ़ाइनांशियल टाइम्स की रिपोर्ट आती है तो उसे जॉर्ज सोरोस से जोड़ दिया जाता है और महुआ को दर्शन का एजेंट बना दिया गया, हालाँकि उन्हें उसकी ज़रा भी ज़रूरत नहीं है।
महुआ मोइत्रा ने इस चैलेंज को क़ुबूल करते हुए ‘एक्स’ पर लिखा कि अगर अडानी ग्रुप ने मुझे ख़ामोश करने या नीचा दिखाने के लिए संघियों और जाली डिग्री होल्डर्ज़ के झूठे दस्तावेज़ों पर यक़ीन करने का फ़ैसला किया है, तो मैं कहती हूँ, अपना वक़्त बर्बाद न करें और अपने वकीलों का इस्तेमाल करें। महुआ ने सीबीआई के द्वारा उनके ख़िलाफ़ मनी लांडरिंग की जाँच का स्वागत तो क्या लेकिन इससे पहले अडानी के चालान और बेनामी एकाउंट्स के द्वारा विदेश जानेवाले पैसे की मालूमात हासिल करने की भी गुज़ारिश की। बीजेपी को परेशानी यह है कि लोक सभा में महुआ के द्वारा पूछे जानेवाले 61 सवालों में से 50 का ताल्लुक़ अडानी ग्रुप से था। इसके साथ महुआ मोइत्रा ने निशिकांत दुबे और वकील जय अनंत देहाद्राई के ख़िलाफ़ नोटिस भेजकर माफ़ी माँगने की माँग भी की है। इस तरह अडानी ग्रुप का भ्रष्टाचार भी मीडिया में चर्चा का विषय बन गया।
महुआ मोइत्रा से पहले संजय सिंह ने सरकार से पूछा था कि जब भारत में इतना ज़्यादा कोयला पैदा होता है तो फिर अडानी को विदेश से कोयला ख़रीदने की ज़रूरत क्यों पड़ी? सरकार ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया मगर लंदन के एक विश्वसनीय अख़बार फ़ाइनांशियल टाइम्स की रिपोर्ट ने आंकड़ों के साथ जवाब दे दिया और ऐसे ठोस सुबूत पेश किए कि जिनको झुठलाना मुम्किन नहीं है। संजय सिंह के मुताबिक़ सुप्रीमकोर्ट को गुजरात सरकार ने 15 मई को ख़त लिख कर बताया कि अडानी ने क्रय मूल्य के बारे में कोई सुबूत, दस्तावेज़ या बिल उपलब्ध नहीं किए हालाँकि जब अडानी ने बताया कि इंडोनेशिया में कोयला महँगा है तो उस वक़्त वह सस्ता था। संजय सिंह ने धोखाधड़ी से ली जानेवाली रक़म को वापस करने की माँग की थी और अब वह उसकी क़ीमत ख़ुद जेल जाकर चुका रहे हैं। ‘अंधेर नगरी चौपट राज’ उसी को कहते हैं। दो महीने पहले ‘आप’ की सीनियर नेता रैना गुप्ता ने भी प्रधानमंत्री पर अडानी को पूरे देश में लूट-खसोट की खुली छूट देने का इल्ज़ाम लगाया था। रैना गुप्ता ने 2017 की सीएजी रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि अडानी ने गुजरात के अलावा 2017 के अंदर तमिलनाडु में भी यही किया था।
सरकारी ऑडिटर सीएजी ने अडानी के 297 आयात की जाँच की, जिनमें से 177 आयात में उस देश का सर्टीफ़िकेट नहीं लगाया गया था, जहाँ से कोयला आयात किया गया है। इसलिए मुम्किन है कि बिल या सर्टीफ़िकेट के बिना यह कोयला देश के अन्य राज्यों में खुदाई करके तमिलनाडु भेज दिया गया हो और इसके बदले में आयात किए हुए कोयले की क़ीमत वुसूल कर ली गई हो। यह जुमला जानी-मानी शाइरा परवीन शाकिर का बताया जाता है कि : “मतलबी रिश्ते कोयले की मानिंद होते हैं कि जब कोयला गर्म होता है तो हाथ जला देता है और ठंडा हो तो हाथ काला कर देता है”। मोदानी मॉडल में यही हो रहा है कि पहले तो कोइले की दलाली में ऊँची क़ीमते-ख़रीद दिखाकर अडानी ने हाथ काले कर लिए और अब सुरक्षित जंगलों के अंदर पर्यावरण मंत्रालय की सिफ़ारिशों को ताक़ पर रखकर मोदी जी ने अपने हाथ जला लिए। इत्तिफ़ाक़ से यह दोनों मामले एक साथ सामने आए।
भारत के अंदर चूँकि मीडिया को पूरी तरह गोद ले लिया गया है और सरकारी जाँच संस्थाओं के पर कुतर दिए गए हैं इसलिए ऐसी ख़बरें यूरोप और अमेरिका से आती हैं। कोयले की क़ीमत में फ़र्ज़ी बढ़ोतरी की आड़ में बिजली की क़ीमत बढ़ाकर जनता को लूटा गया। क्या यह लूटमार केन्द्र सरकार की कृपादृष्टि के बिना मुम्किन है? और अगर नहीं तो अडानी पर हाथ डालने से ईडी क्यों डरता है? इससे पहले न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट को बुनियाद बनाकर न्यूज़ क्लिक पर कार्रवाई हो गई, हालाँकि वह सिर्फ़ अड़तीस करोड़ का मामला था, मगर अब फ़ाइनांशियल टाइम्स ने हज़ारों करोड़ का भ्रष्टाचार उजागर कर दिया। इसके बावजूद सरकार कुंभकर्ण की नींद सो रही है। पीएफ़आई के बहाने बेगुनाह क़ैदियों की रिहाई के लिए लड़नेवाले अबदुल वाहिद को तो बिला वजह परेशान करनेवाली जाँच एजेंसियों को अडानी का भ्रष्टाचार नज़र नहीं आता। इसलिए कि वहाँ तो होंठ भी अपने और दाँत भी अपने ही हैं। यही वजह है कि कार्रवाई के ख़याल से शाह जी के दाँत खट्टे हो जाते हैं। ऐसे में जब संजय सिंह या महुआ मोइत्रा जैसे लोग ज़बान खोलते हैं तो उनपर निशिकांत दुबे जैसों को छोड़ दिया जाना अफ़सोसनाक है। संसद भवन में महिला आरक्षण का क़ानून मंज़ूर कराने का ढोंग करनेवाली सरकार के द्वारा एक महिला सांसद का चरित्र हनन उसका असली चेहरा उजागर करता है।
बीजेपी वालों ने महुआ मोइत्रा को परेशान करने की ख़ातिर दर्शन हीरानंदानी को सरकारी गवाह बना लिया है और उसके द्वारा एक हलफ़नामा दाख़िल किया है। उसके अंदर वह उन तमाम इल्ज़ामों को स्वीकार करता है जो महुआ पर लगाए गए हैं। इसमें वह नामर्द महुआ मोइत्रा पर दबाव डालने का इल्ज़ाम लगाता है, जबकि हक़ीक़त यह है उसने ख़ुद दबाव में वह हलफ़नामा दिया है। महुआ का इल्ज़ाम तो यह है कि कोरे-काग़ज़ पर उसका दस्तख़त लेकर यह सब लिख दिया गया। यह बात दुरुस्त मालूम होती है, क्योंकि रिश्वत लेने के साथ देना भी जुर्म है और वह स्वीकार करता है कि प्रधानमंत्री को बदनाम करने की ख़ातिर उसने स्वयं महुआ से पासवर्ड लेकर सवालात किए। हैरत की बात यह है कि उसका यह जुर्म माफ़ कर दिया गया और महुआ मोइत्रा की सदस्यता ख़त्म करके उन्हें जेल भेजने की तैयारी चल रही है। यह साज़िश दरअसल एक व्यक्ति यानी गौतम अडानी के भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए रची जा रही है। इस तरह का मामला किसी पूँजीपति को बचाने के लिए नहीं किया जाता, लेकिन चूँकि ऐसा हो रहा है इसलिए शक पैदा होता है कि अडानी को बचाने की इतनी फ़िक्र इस सरकार को क्यों है? उसकी गिरफ़्तारी से कौन से राज़ खुल जाने का ख़तरा है जो राहुल को सदस्यता से वंचित कर दिया जाता है। संजय सिंह को जेल भेज दिया जाता है और महुआ को जेल में डालने की साज़िश रची जाती है। वर्तमान सरकार को लगा हुआ यह डर ही दरअसल देश में प्रचलित ‘मोदानी मॉडल’ की ओर इशारा करता है।
——(अनुवादक : गुलज़ार सहराई)
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