आज का संस्करण
नई दिल्ली, 29 फरवरी 2024
बैठे-ठाले
केसी यह लाचारी है ?
कुछ हाथों को कुछ चेहरों को
अजोब लगी बोमारी है,
अपने पैर कुल्हाड़ी मारें,
कैसी यह लाचारी है?
जाने कैसे,
किस कोने से,
आयी यह दुष्ट हवा.
साजिश का ,
इतना हुआ असर,
पूरा मौसम भारी है.
तय है विषवृक्ष,
न कोई भी
अपने हाथों सींचेगा.
जो आंगन की,
खुली हवा को,
तंग हाथ से भींचेगा.
शांत तपस्वी,
सीता फिर से,
मन ही मन चिन्तादुर है
कौन तपस्नो आगे-आकर,
लक्ष्मण रेखा खींचेगा .
बिना पावों के झूठ,
साये में अफवाह खड़ी है.
चप्पे-चप्पे पर, रखिये दृष्टि,
बेहद धूप कड़ी है,
ढूढ़ना है, किस देश में
कहाँ घूम रहे बटमार हैं?
हर एक के लिए,
सचमुच यह परीक्षा की घड़ी है.
जगह जगह पर,
घोटालों के, का हो जोर है
काले धन वालों के
पकड़े जाने, का भी शोर है।
जरूरी है, सरकारी राहत,
और गुणा-भाग करें.
अलीबाबा !
यहां पर तो,
चालीस से भी
कई गुना चोर है.
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-अनूप श्रीवास्तव
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