Thought for the Day
21 Nov 2024
बैठे-ठाले
बैठे ठाले भी नहीं,
लेने देंगे चैन .
पैरों तले जमीन है,
जनता भी बेचैन .
राजनीतिकेभोज की,
अजब अनोखी रीति?
आश्वासन के बांस पर ,
टँगी है हड़िया नीति.
पैर पीठ से जा लगे,
दुखती सबकी दाढ़.
खिचड़ी खुदबुद पक रही,
सबकी किस्मत गाढ़ .
शासन हो कि विरोध हो,
चलते सब हैं गोट,
आगे पीछे के लिये,
बड़ी सुहानी ओट .
पहले इनको दीजिए,
मंगा कहीं से बुद्धि.
तब फिर आशा कीजिए,
आयेगी सद्बुद्धि .
नेता हैं सब काठ के,
नहीं किसी में जोर,
कठपुतली से डोलते,
खिंचती जिसकी डोर.
---------------
-अनूप श्रीवास्तव
We must explain to you how all seds this mistakens idea off denouncing pleasures and praising pain was born and I will give you a completed accounts..
Contact Us