Thought for the Day
21 Nov 2024
एक ग़ज़ल .....
चाहत का अंजाम तुम्हारी आँखों में ,
देखा अपना नाम तुम्हारी आँखों में !
दूर तलक़ उलझन फैली है जीवन की ,
बस थोड़ा आराम तुम्हारी आँखों में !
छू कर महके अश्क़ों की गंगा जमना ,
देखे चारों धाम तुम्हारी आँखों में !
ग़म के अंधियारों में चमके रह- रह कर ,
ख़ुशियों के पैग़ाम तुम्हारी आँखों में !
तुलसी के दोहे चस्पा हैं होंठों पर ,
मीरा के घनश्याम तुम्हारी आँखों में !
कैसे अपने होश सम्हालूँ तुम बोलो ,
छलक रहे हैं जाम तुम्हारी आँखों में !
काश कि हम भी काजल की तरहा होते ।
रहते सुबहो शाम तुम्हारी आँखो में !
---------------
We must explain to you how all seds this mistakens idea off denouncing pleasures and praising pain was born and I will give you a completed accounts..
Contact Us