जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के बीच की खटपट प्रशासन में तनाव ला सकती है। उमर अब्दुल्ला, जो जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री बने हैं, के पास इस बार उतनी स्वतंत्र शक्ति नहीं है जितनी उन्हें 2009 में मिली थी। इस बार उनके सामने कांटों भरा ताज है और प्रशासनिक चुनौतियां गंभीर हैं।
उमर अब्दुल्ला का राजनीतिक सफर, उनके पिता फारूक अब्दुल्ला की विरासत और जनता का विश्वास उनके लिए बड़े सपनों का मार्ग प्रशस्त करते हैं। हालांकि, इस बार स्थिति पहले से अलग है। राज्य का पूर्ण दर्जा छिन जाने और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के साथ सत्ता साझा करने के कारण उमर को कई नई परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। उनकी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू-कश्मीर में अच्छा समर्थन हासिल किया है, जो उमर की जिम्मेदारियों को बढ़ा देता है।
उमर अब्दुल्ला का मुख्य मुकाबला इस बार मजबूत विपक्षी पार्टी बीजेपी से है, जिसने जम्मू के हिंदू बहुल क्षेत्रों में 29 सीटें जीतकर अपनी स्थिति मजबूत की है। बीजेपी के इस उभार से उमर अब्दुल्ला पर कड़ी निगरानी और विरोध का दबाव रहेगा। कांग्रेस के साथ गठबंधन के बावजूद कांग्रेस के जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने तक मंत्रिमंडल में शामिल न होने का ऐलान, उमर के लिए एक और चुनौती बन गया है।
जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने धारा 370 और 35A की बहाली, राज्य का पूर्ण दर्जा, दरबार मूव की पुनः स्थापना और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर समर्थन हासिल किया है। इन विषयों पर जनता की उम्मीदें उमर से जुड़ी हैं, लेकिन इन मुद्दों का हल ढूंढना आसान नहीं होगा। केंद्र की भाजपा सरकार ने 2019 में धारा 370 को निष्क्रिय कर दिया था, और उमर ने यह साफ किया है कि इसे बहाल कर पाना मौजूदा सरकार के रहते असंभव है। फिर भी, उनकी पार्टी इसे सुप्रीम कोर्ट में लेकर जाएगी और देशभर में इस मुद्दे पर ध्यान बनाए रखेगी।
लेख एक नज़र में
जम्मू-कश्मीर के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के बीच तनाव प्रशासन में चुनौतियाँ पैदा कर सकता है। उमर, जो पहले मुख्यमंत्री रह चुके हैं, इस बार सीमित शक्तियों के साथ कार्य कर रहे हैं। उन्हें बीजेपी के मजबूत विरोध का सामना करना पड़ेगा, जिसने जम्मू में 29 सीटें जीती हैं। उनकी पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, धारा 370 की बहाली और राज्य के पूर्ण दर्जे की मांग कर रही है, लेकिन केंद्र सरकार ने इसे निष्क्रिय कर दिया है।
उमर को आतंकवाद और सुरक्षा मुद्दों का भी सामना करना होगा, क्योंकि सुरक्षा बलों का नियंत्रण उपराज्यपाल के पास है। इसके अलावा, दरबार मूव की बहाली और नए कानूनों की चुनौतियाँ भी उनके सामने हैं। अगले पांच वर्षों में, उमर को जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने और राजनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिए कठिन परिश्रम करना होगा।
उमर अब्दुल्ला के सामने आतंकवाद की भी समस्या है। हाल में सोनमर्ग, गुलमर्ग, और जम्मू के अखनूर में हुए आतंकी हमले उनकी सरकार के लिए चिंता का विषय हैं। सुरक्षा बलों का नियंत्रण उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के अधीन है, जिससे सुरक्षा संबंधी मामलों पर उमर की सीमित भूमिका है। उनकी टीम के सदस्यों का कहना है कि डुअल एडमिनिस्ट्रेशन की यह स्थिति अनुचित है और संयुक्त कमांड की बैठक का नेतृत्व मुख्यमंत्री को करना चाहिए, न कि उपराज्यपाल को।
दरबार मूव की बहाली भी उमर के लिए एक प्रमुख मुद्दा है। 1872 से चल रही यह परंपरा 2021 में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने खत्म कर दी थी। इसका कारण सालाना 130 करोड़ रुपये का खर्च बताया गया, जो कि डिजिटल जम्मू-कश्मीर की दिशा में अनुपयुक्त माना गया। लेकिन दरबार मूव की वापसी के लिए जम्मू में दबाव है, और नेशनल कॉन्फ्रेंस इसे बहाल करना चाहती है, क्योंकि इससे जम्मू के व्यापार और अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिलता था। उमर के पिता, डॉ. फारूक अब्दुल्ला भी इसे महत्वपूर्ण मानते हैं और पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली के बाद इसे पुनः लागू करने का संकल्प व्यक्त करते हैं।
उमर अब्दुल्ला के लिए एक और मुश्किल जम्मू-कश्मीर के नए कानून और मुख्यमंत्री की सीमित शक्ति है। पहले, मुख्यमंत्री को सभी अधिकार प्राप्त थे, लेकिन अब किसी सेंट्रल सर्विस अधिकारी के स्थानांतरण के लिए भी उपराज्यपाल की सहमति जरूरी होगी। इससे उमर की प्रशासनिक स्वतंत्रता सीमित हो जाती है, और उन्हें मनोज सिन्हा के साथ संतुलन बनाकर चलना होगा।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के मजबूत जनाधार के बावजूद उमर अब्दुल्ला के लिए कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की पीडीपी और जम्मू में बीजेपी से निपटना आसान नहीं होगा। महबूबा मुफ्ती ने तो शपथ समारोह के बाद ही 5 अगस्त 2019 के फैसले को खारिज करने की मांग रख दी थी, जो उमर के लिए कठिन चुनौती होगी। इस चुनौती का सामना करने के लिए उमर ने नौशेरा विधानसभा सीट से बीजेपी अध्यक्ष को हराने वाले नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता सुरिंदर चौधरी को उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया है, जिससे राजनीतिक संतुलन बन सके।
कांग्रेस के जम्मू के हिंदू बहुल क्षेत्रों में सीट न जीत पाने के कारण नेशनल कॉन्फ्रेंस को मुश्किलें होंगी, क्योंकि जम्मू में कांग्रेस का कमजोर प्रदर्शन नेशनल कॉन्फ्रेंस की शक्ति को चुनौती देगा। उमर के पिता, फारूक अब्दुल्ला ने भी माना है कि इन पांच वर्षों में उमर को जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए कठिन परिश्रम करना होगा।
अगले पांच साल उमर अब्दुल्ला के लिए चुनौतीपूर्ण हैं। जनता का विश्वास, पार्टी के ऐतिहासिक मुद्दों पर प्रतिबद्धता और विरोधी दलों की कड़ी परीक्षा में खरा उतरना उनके प्रशासनिक कौशल का इम्तिहान होगा।
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