हाल ही में ईरान-इजराइल संघर्ष ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। एक ओर, यह कहा जा रहा है कि ईरान ने चारों तरफ से इजराइल को घेर लिया है— लेबनान, सीरिया, यमन, और फिलस्तीन से। दूसरी ओर, कुछ लोग यह मानते हैं कि ईरान इस संघर्ष में अकेला पड़ रहा है। क्या वास्तव में ईरान अकेला पड़ रहा है या उसने इजराइल को घेर लिया है? इस पर बात करने का समय आ गया है।
पहली बात, हमें यह समझना चाहिए कि पश्चिम एशिया के सभी देश एकजुट नहीं हैं। अगर सभी देश एक साथ लड़ाई में उतरते, तो इजराइल की स्थिति बेहद कमजोर हो जाती। इजराइल को इस बात का पूरा एहसास है। सऊदी अरब का उदाहरण लिया जा सकता है, जिसने अब तक इस संघर्ष में ईरान का समर्थन नहीं किया हैं । इसके पीछे कई कारण हैं, लेकिन एक बड़ा कारण यह है कि इन देशों का एक साझा स्वार्थ है, जिसके चलते इजराइल के हौसले बुलंद हैं।
हाल ही में ईरान पर हुए हमलों को देखें तो यह स्पष्ट नहीं होता है कि इन हमलों के पीछे कौन है। यह कहा जा रहा है कि जो भी हमले हुए हैं, वे ईरान के खिलाफ हैं, लेकिन इनका संबंध इजराइल से नहीं है। ईरान की स्थिति के बारे में कुछ देशों का मानना है कि उसका संघर्ष वास्तव में अमेरिका के साथ है । इजराइल के लिए यह एक बड़ा खतरा है, और अमेरिका की समर्थन नीति इसे और जटिल बनाती है। अमेरिका ने इजराइल को न केवल सैन्य सहायता दी है, बल्कि इसके समर्थन में कई जहाज भी भेजे हैं।
लेख एक नज़र में
ईरान-इजराइल संघर्ष ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। एक ओर, ईरान ने चारों तरफ से इजराइल को घेर लिया है, जबकि दूसरी ओर, ईरान अकेला पड़ रहा है। लेकिन सच्चाई क्या है?
वेस्ट एशिया के सभी देश एकजुट नहीं हैं, और इजराइल की स्थिति बेहद कमजोर हो जाती अगर सभी देश एक साथ लड़ाई में उतरते। अमेरिका ने इजराइल को सैन्य सहायता दी है, जिससे इजराइल की स्थिति मजबूत हुई है।
दूसरी ओर, ईरान की स्थिति जटिल होती जा रही है, और भारत की स्थिति भी इस संघर्ष में महत्वपूर्ण है। इस संघर्ष में दोनों पक्षों की प्राथमिकताएँ हैं, और यह स्थिति जल्दी खत्म होने की संभावना नहीं दिखती।
इजराइल की स्थिति को मजबूती देने के लिए अमेरिका का समर्थन बहुत महत्वपूर्ण है। अमेरिका ने हर संभव प्रयास किया है कि इजराइल को किसी भी प्रकार का नुकसान न पहुंचे। इसका मतलब यह है कि अमेरिका अपने सहयोगी इजराइल के लिए हर प्रकार की मदद के लिए तत्पर है। इससे इजराइल को यह विश्वास मिलता है कि वह सुरक्षित है, भले ही उसकी स्थिति कितनी भी कमजोर क्यों न हो।
दूसरी ओर, ईरान की स्थिति जटिल होती जा रही है। छोटे देशों जैसे लेबनान की स्थिति भी कमजोर है। भले ही लेबनान में हिज़्बुल्ला जैसा संगठित बल हो, लेकिन वह अकेले इजराइल का सामना नहीं कर सकता। ईरान की तकनीकी क्षमताएँ भले ही अच्छी हों, लेकिन उसके पास अंतरराष्ट्रीय सहयोग का अभाव है।
भारत की स्थिति भी इस संघर्ष में महत्वपूर्ण है। भारत का ईरान के साथ सदियों पुराना रिश्ता है। लेकिन वर्तमान में भारत ने किसी भी पक्ष को समर्थन नहीं दिया है। यह स्थिति बहुत जटिल है, क्योंकि भारत के इजराइल के साथ भी मजबूत व्यापारिक संबंध हैं। अगर भारत ईरान का समर्थन करता है, तो यह उसकी वर्तमान विदेश नीति के खिलाफ जाएगा।
बीजेपी सरकार इस बात को लेकर परेशान है कि इजराइल ईरान संघर्ष में भारत की क्या भूमिका होनी चाहिए वास्तव में भाजपा सरकार इजराइल के समर्थन में है, लेकिन उसे यह भी समझना होगा कि इसका भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
इस संघर्ष में दोनों पक्षों की प्राथमिकताएँ हैं—ईरान अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है, जबकि इजराइल अपने अस्तित्व की रक्षा करने की कोशिश कर रहा है। यह एक ऐसा संघर्ष है जिसमें बेगुनाह लोग मारे जा रहे हैं, और यह स्थिति जल्दी खत्म होने की संभावना नहीं दिखती।
विश्व के तमाम देश इस संघर्ष के अंत की प्रतीक्षा कर रहे है, ताकि शांति बहाल हो और निर्दोष लोगों की जान बच सके। दोनों पक्षों को यह भी समझना होगा कि इस संघर्ष से किसी का भी भला नहीं होने वाला है। हमारी भी यही उम्मीद है कि यह संघर्ष जल्द खत्म हो और शांति का एक नया अध्याय शुरू हो।
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