विपक्षी दलों ने अपने नाम और काम से पी एम मोदी के होश उड़ा दिए। विपक्षी गठबंधन का नाम 'इंडिया’ सुन कर प्रधानमंत्री को ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ और ‘इंडियन मुजाहिदीन’ याद आ गए । विपक्ष ने मणिपुर पर अविश्वास प्रस्ताव पेश किया तो प्रङान मंत्री संसद से फ़रार होने पर मजबूर हो गए। यानी गेंदबाज़ी के लिए मैदान में आए तो पहले ही ब पर क्लीन बोल्ड कर दिया और बल्लेबाज़ी के लिए उतरे तो पहली गेंद पर छक्का लगा दिया। इस तरह अगर किसी खेल की शुरूआत हो तो उस के अंत का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है।
अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा का प्रधानमंत्री को जवाब देना होता है। इस के लिए सदन की कार्रवाई को सुनना ज़रूरी है। बहस के दौरान मोदी जी अगर सदन में बैठने का अभिनय भी करें तो लोग समझेंगे कि उन्होंने अपना अंतिम भाषण ख़ुद तैयार किया है, लेकिन ये उनसे नहीं होगा। क्योंकि अपना भाषण ख़ुद तैयार करने के लिए धैर्य के साथ सक्षमता की दरकार है। मोदी जी की ख़ुद को सबसे बुध्दिमान समझने वाली अकड़ भी इस राह का रोड़ा है। इस कारण वे दूसरों के तैयार किए भाषण पर मात्र कठ-पुत्ली की तरह अभिनय करते हैं। ऐसे में अरविंद केजरीवाल का डायलोग, “प्रधानमंत्री को पढ़ा लिखा होना ज़रूरी है” याद आ जाता है।
प्रधानमंत्री विपक्षी दलों के नाम से इतने घबराए कि उसे “ईस्ट इंडिया कंपनी” और “इंडियन मुजाहिदीन” 'से जोड़ दिया। इस नाम पर हिंदू मुस्लिम कार्ड खेलने वाले मोदी जी भूल गए कि इसी साल मार्च में जिन मुस्लिम युवाओं को जयपुर ब्लास्ट के नाम पर गिरफ़्तार किया गया था वे सब रिहा हो गए । अदालत ने सरकारी एजेंसी पर झूठे सबूत के आधार पर निर्दोष लोगों को गिरफ़्तार करने का गंभीर आरोप लगाया । मालेगावं धमाके पर भी सारे मुस्लिमआरोपी छूट गए परंतु कर्नल पुरोहित अब भी जेल में चक्की पीस रहे हैं। प्रज्ञा ठाकुर सांसद होने के बावजूद आज भी अदालत के चक्कर काट रही हैं और मोदी सरकार नौ साल के बाद भी उनके माथे से आतंकवाद का कलंक नहीं मिटा सकी । वैसे इन सारे धमाकों के लिए इंडियन मुजाहिदीन को ज़िम्मेदार ठहराया गया था।
प्रधानमंत्री को विपक्षी दलों ने ईस्ट इंडिया कंपनी की याद दिला दी । ये ब्रिटिश सरकार की टूल थी । हिंदू महासभा और संघ परिवार भी आज़ादी की लड़ाई के दौरान अमग्रेजी साम्राज्य के पिछलग्गू थे । हिंदुत्व समर्थकों के पास जब सत्ता नहीं थी दोनों में समानता थी परंतु सरकार बनाने के बाद उन्होंने भी अडानी की वेस्ट इंडिया कंपनी को अपना टूल बना लिया। अडानी ग्रुप की करतूतों और भ्रष्टाचारों के सामने तो ईस्ट इंडिया कंपनी भी पानी भरती है। इस के तहत चलने वाले बंदरगाह से हज़ारों करोड़ की ड्रग्स पकड़ी जाती हैं । हिंडन बर्ग की रिपोर्ट उस का वस्त्रहरण कर के उसे विश्व में तीसरे नंबर से तीसवें नंबर पर पहुंचा देती है। ऐसे में ईस्ट इंडिया कंपनी की दुहाई देने वाले प्रधानमंत्री को यह बताना चाहिए कि वेस्ट इंडिया कंपनी के साथ उनका यह रिश्ता क्या कहलाता है?
अविश्वास प्रस्ताव की अनुमति मिलने पर विपक्षी दलों ने जब ‘चक दे इंडिया’ का नारा लगाया तो विनम्र दिखाई देने वाले स्पीकर ओम बिड़ला समेत भाजपा वाले जल भुन कर राख हो गए । सच तो यह है कि जब से विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखा है उन लोगों को अपने देश के नाम से ही नफ़रत हो गई है। असम के मुख्यमंत्री ने अपने डी पी से इंडिया हटा कर भारत कर दिया । सवाल यह है कि उनको अपनी ग़लती का आभास उस समय क्यों नहीं हुआ जब मोदी सरकार डीजिटल इंडिया , मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया जैसे उपकर्णों की घोषणा कर रही थी।
अब प्रशन यह है कि क्या ये देश के संविधान से भी इंडिया शब्द निकलवा देंगे? इस का उत्तर उच्च सदन में भाजपा के सदस्य नरेश बंसल ने इंडिया को संविधान से हटाने की मांग करके दे दिया। उनके अनुसार प्रधानमंत्री गुलामी की सारी निशानियों को मिटाने की घोषणा कर चुके हैं और इंडिया ग़ुलाम मानसिकता की अभिव्यक्ति करनेवाला नाम है। बंसल कहते हैं कि आज़ादी के मतवालों के बलिदान से देश स्वतंत्र हुआ मगर संविधान में “इंडिया दैट इज़ भारत”, लिखा गया, जबकि सदियों से देश का नाम भारत है। स्वतंत्रता संग्राम में तो संघ परिवार ने कोई क़ुर्बानी नहीं दी मगर अब उंगली कटा कर यानी नाम बदल कर शहीदों में नाम लिखवाना चाहता है । इस प्रकार बड़ी चतुराई से विपक्षी दलों ने भाजपा को इंडिया का विरोध करने पर मजबूर कर दिया है।
मणिपुर के मामले में केवल मोदी सरकार को ही नहीं बल्कि पूरे संघ परिवार को साँप सूंघ गया है, कोई खुल कर कुछ नहीं बोलता । सोशल मीडिया में उनके चेले चापड़ कूकी जनजाति पर अत्याचार का समर्थन करने के लिए कभी उन्हें बाग़ी क़रार देते हैं तो कभी उन को ड्रग्स का स्मगलर कहा जाता है। अब तो सदियों से वहां रहने वालों को रोहिंगया की तरह म्यांमार के घुसपैठिये भी कहा जा रहा है। ये कहने वाले भूल जाते हैं कि अगर ऐसा है तो भाजपा ने अपने टिकट पर उन्हें विधानसभा में विजयी करके मंत्री क्यों बनाया? वे लोग सेना में शामिल हुए और कारगिल के युध्द में हिस्सा लिया ये और बात है कि इतना त्याग करने के पश्चात भी वे अपने परिवार वालों की रक्षा नहीं कर सके। वैसे भाजपा के टिकट पर कामयाब होने वाले कूकी एमएलए को मार-मार कर अधमरा कर के इन फ़ासीवादियों ने अपने बचाव के लिए भाजपा से पेंगें बढ़ाने वाले अल्पसंख्यकों को भी सचेत कर दिया है कि वह किसी भ्रम में ना रहें।
प्रधानमंत्री की तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत का मौन भी आश्चर्यजनक है। आरएसएस के किसी अहम नेता ने अभी तक मणिपुर जाने का साहस नहीं किया। मोहन भागवत को तो जेड प्लस सेक्योरिटी भी प्राप्त है । वे फ़िलहाल असम के दौरे पर हैं। अपने दौरे के दौरान वे कार्यकर्ताओं के एक प्रशिक्षण शिबिर को संबोधित करेंगे जो 12 जुलाई को शुरू हुआ था और 1 अगस्त को समाप्त होगा। उस कैंप में असम, अरूणाचल , त्रिपुरा और मणिपुर के कार्यकर्ता भी उपस्थित हैं।
पूरा उत्तर-पूर्व जल रहा है, लेकिन यह लोग अपने कुएं में बंद हैं। अपनी वीरता का महिमा मंडन करने वाले संघ परिवार में अगर हिम्मत होती तो भागवत असम जाने से पूर्व मणिपुर का दौरा करते लेकिन ऐसे कायरों से यह अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिये । यही कारण है कि उन के ऊपर से राष्ट्र का विश्वास उठ गया है और अविश्वास प्रस्ताव पेश हुआ है। यह संयोग है कि राहुल गांधी का माईक बंद करने और उन्हें सदन से निकालने का षडयंत्र रचने वालों की ज़ुबान गूंगी हो गई है और ख़ुद उनका सदन में प्रवेश कठिन हो गया है। इस को नियति का न्याय कहते हैं।
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