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अमिताभ श्रीवास्तव

अगर सिरफ़िरों की कोई फ़ेहरिस्त होगी तो शायद मेरा नाम उसमें सबसे ऊपर आता।


इतिहास के इस मोड़ पर जब भारत की सबसे पुरानी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपने अस्तित्व की सबसे कठिन लड़ाई लड़ रही है मैंने अपने पूरे होशो हवास में कांग्रेस की ५ रुपये वाली सदस्यता ग्रहण कर ली।


मेरे जैसे पत्रकार के लिए जिसने इमर्जेन्सी में सेन्सरशिप के ज़माने में अपने कैरीअर की शुरुआत की, जैसा आजकल कहते हैं ये पूरा ३६० डिग्री का कोण लगता है।


लेकिन पिछले कुछ सालों से, विशेषकर २०१४ के बाद से देश में जो हालात बने हैं मैं निरंतर अपनी बनी बनाई परिभाषाओं और मर्यादाओं से उलझ रहा था की क्या जिन सिद्धान्तों को लेकर हम बड़े हुए क्या वो सही थे।


क्या सिर्फ़ और सिर्फ़ कांग्रेस विरोध भारत जैसे विभिन्न संस्कृतियों और बहुभाषीय परम्परा वाले देश की राजनीति या पत्रकारिता का स्थायी फ़ोर्मूला हो सकता है।


अगर हम हिंदुत्व,हिंदू राष्ट्र और तुष्टिकरण की बहस को छोड़ भी दें तो क्या 'कांग्रेस मुक्त' भारत की परिकल्पना  इतने बड़े देश को सही दिशा में ले जा रही है।


मैने कई बार सोचा और खुलकर लिखा भी कि अगर अमरीका में और इंग्लैण्ड में एक पार्टी हार जाती है और दूसरी सत्ता में आ जाती है तो क्या विपक्ष की पार्टी को देश द्रोही बना दिया जाता है और उसके अस्तित्व को समाप्त करने के लिए साम दाम दंड भेद का प्रयोग प्रजातंत्र के लिए उचित माना जाता है।
कांग्रेस ने अपने शासन में लाख ग़लत काम किए (जिसकी फ़ेहरिस्त भाजपा की आइ टी सेल से मिल जाएगी) लेकिन मुझे अपने होश में और मैं ७० नहीं तो ६० साल से तो होश में हूँ ही, मैंने कभी नहीं सुना की 'जनसंघ मुक्त भारत' या समाजवादी पार्टी मुक्त भारत कभी चुनावी मुद्दा बना हो।


और ऐसा भी नहीं है की नेहरु,शास्त्री,राजीव गांधी या इंदिरा गांधी के समय विपक्ष इनको परेशान नहीं करता था।


राम मनोहर लोहीया,बलराज मधोक,आचार्य कृपलानी, प्रकाशवीर शास्त्री,अटल बिहारी,पीलू मोदी,ज्योतिर्मय बसु ऐसे दिग्गज विपक्षी नेता थे जिनको पूरी लोक सभा और राज्य सभा के सदस्य पूरी इज़्ज़त से सुनते थे।इन नेताओं के खड़े होते  ही सत्ताधारी पार्टी में सन्नाटा छा जाता था।इनको सुनकर प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी रावण जैसा अट्टहास नहीं करते थे।


बल्कि हमने तो कई बार अटल बिहारी वाजपेयी के वे बयान सुने हैं जिसमें उन्होंने बताया की जब  राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे उन्होंने अटल जी को संयुक्त राष्ट्र की सभा में भाग लेने के लिए भारतीय दल का नेता बना कर भेज दिया जिससे वे अपने घुटने का अमेरिका में ऑपरेशन करवा सकें।


ऐसे ही क़िस्से लाल बहादुर शास्त्री के छोटे से प्रधान मंत्री वाले समय के हैं जब भारत पाकिस्तान युद्ध के समय वो अटल जी और प्रकाशवीर शास्त्री जैसे विपक्षी नेताओं से निरंतर सम्पर्क में रहते थे।


फिर २०१४ में ऐसा क्या बदल गया जो 'कांग्रेस मुक्त' एक मिशन की तहत नारा बन गया और इसको पूरा करने के लिए इंटर्नेट और टीवी पर गालियाँ और उनके समर्थन करने वालों के परिवार और बच्चों को बलात्कार तक की धमकियाँ आम बात हो गयी।


कितने जाने माने पत्रकारों ने फ़ेस्बुक और ट्विटर पर अपने अकाउंट बंद कर दिए क्योंकि वो उस भाषा का जवाब नहीं दे पाते थे।पता चला रवीश कुमार जैसे लोगों के फ़र्ज़ी अकाउंट बन गए जिसमें उन के तथा कथित बयानों पर गलियों और अश्लील कॉमेंट आने लगे।


बहुत लोगों की तरह मैं भी सोचने लगा कि २०१४ में ऐसा क्या बदल गया।इसका एक ही जवाब समझ में आया कि भारत की इतिहास में पहली बार भाजपा अकेले अपने बल बूते पर लोक सभा में बहुमत से आई और उसने आते ही अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए।


अटल जी भी भाजपा के प्रधानमंत्री थे और पक्केवाले। ये जो आजकल दल बदलू मंत्री और मुख्यमंत्री बन रहे हैं वैसे नहीं,पक्के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा से निकल कर आए जिन्होंने सारी ज़िंदगी विपक्षी नेता की तरह संघर्ष किया।


तो क्या ये संघ का असली रूप है जो अपने सिवा सबके अस्तित्व को नकारने और हड़प जाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है?


अगर ये इसकी असली पहचान है तो ये बड़ी ख़तरनाक है।और देश की आने वाली पीढ़ी के लिए विकाशकरी है और इस विनाशकारी आग से अगर कोई खुलकर हिम्मत और तर्क से कोई बचा सकता है तो केवल कांग्रेस।


नीतीश,ममता,केजरीवाल,मायावती,स्टालिन भी नेता हैं लेकिन इनकी राजनीति सिद्धान्त को लेकर नहीं चलती बल्कि अपने दल के वर्चस्व के लिए ये किसी से भी समझौता कर सकते हैं।


कांग्रेस का मतलब एक परिवार नहीं जैसा आज कल पढ़ाया जा रहा है बल्कि पार्टी के वो सिद्धांत हैं जो गांधी,नेहरु,पटेल,अम्बेडकर के समय से इसका मूल बने हुए हैं और जो देश के विभिन्न प्रांतों,समाज के वर्गों और विचारों को साथ ले चलने की सामर्थ्य रखते हैं।


इसलिए समय के इस ऐतहासिक मोड़ पर मुझे लगा की इस वक़्त देश को कांग्रेस की सबसे अधिक ज़रूरत है और कांग्रेस ख़त्म हो गयी तो देश की सारी नीव हिल जायेगी और फिर जो इमारत बनेगी उसकी कल्पना से भी डर लगता है।और फिर मैंने अपने पूरे होशो हवास में ५ रुपये देकर कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण कर ली।

 

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