देश के चार राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा- चुनाव आयोग ने कर दी है. लेकिन केंद्र सरकार दूसरे राज्य में जाकर, उन चार राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम को बताना चाहती है कि- याद रखो मैं तुम्हें उत्तराखण्ड की तरह मालामाल कर दूंगा. जी हां प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी पिथौरागढ में जाकर एक वीरान स्थान पर बैठकर अकेले फोटो खिंचवाकर उत्तराखण्ड को सौगात दे रहे हैं. यहां पर इस बात का जिक्र करना आवश्यक हो जाता है. जब लोकतंत्र की प्रक्रिया में निष्पक्ष चुनाव की गारंटी हमारा संविधान देता है, तब देश का रहनुमा ऐसे नाटकीय अंदाज में देश की जनता को रिझाने का प्रयास करे, तब ऐसी घोषणाओं का कोई महत्व नहीं रह जाता. पहले तो चुनाव राज्यों के हो रहे हैं, इस स्थिति में केंद्र का जिम्मा लिए प्रधानमंत्री को अपने ब्रैंड से वोट मांगने की कोशिश स्वस्थ लोकतंत्र की गति के लिए ठीक नहीं है. यह कार्य उन रज्यों पर ही छोड़ देना चाहिए, ताकि जनता उनसे सीधे संवाद कर सके. सिर्फ मोदी जी के नाम पर राज्यों में लोकतंत्र की नीव नहीं रखी जा सकती. राज्यों की अपनी विकास की कठिनाइयां हैं, वही उसे निपटा सकती हैं. जब-जब केंद्र हस्तक्षेप करता है, तब-तब राज्य सही दिशा में विकास नहीं कर सकता. ऐसे में चुनाव के दौरान जनता को अपने जुमलों से नहीं संतुष्ट किया जा सकता है. देश की जनता प्रधानमंत्री के 2014 के लोकसभा चुनाव में किए गए वायदों की अभी भी नौ साल बाद प्रतीक्षा कर रही है. हर व्यक्ति ने बैंक में खाता खोला, वह भी, जो बैंक की लेनदेन से वाकिफ नहीं था, वह सिर्फ इस लिए की हमारे प्रधानमंत्री जी पंद्रह लाख रुपये डलवाएंगे. हर व्यक्ति अभी भी टकटकी लगाए बैठा है. क्या ऐसे वायदे जिम्मेदार व्यक्ति देकर जनता की आकांक्षाओं पर पानी नहीं फेर रहा है? बहुत सारे वायदे और सौगातों की घोषणाएं माननीय प्रधानमंत्री जी आपने हर छोटे- बड़े चुनाव में की हैं. चाहे वे स्थानीय या राष्ट्रीय रहे हों. यदि उन घोषणाओं की मद की गणना की जाए, तो वह असीमित धन होगा, जो कहीं भी खर्च नहीं हुआ होगा. हमारी देश के एक साधारण नागरिक के तौर पर आपसे अनुरोध है कि कृपा करके जनता को झूठे वायदों के फेर में न डालें. दूसरी बात ए सौगातें, जो आप परोस रहे हैं, यह आपकी निजी कमाई नहीं है, यह स्वयं जनता का पैसा है. चाहे वह जीएसटी से आया हो या डायरेक्ट टैक्स से आया हो, इसलिए इसे सौगात के तौर पर घोषणा मत कीजिये . देश को ठोस कार्यक्रम दीजिए. नहीं, तो जनता सब जानती है. देश के बड़े- बड़े दिग्गजों को पानी पिलाया है. इसलिए लोकतंत्र के पायों को मजबूत बनायें- न्यायपालिका, प्रेस, विधायिका और स्वयं अपनी कार्यपालिका में हस्तक्षेप से परहेज रखें, तभी जनता ठगा महसूस नहीं करेगी.
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