हाल ही में सिक्किम भीषण बाढ से 78 लोग लापता हैं और 4 सैनिकों की भी मृत्यु हुई है. बंगाल और बंगलादेश तक मृत व्यक्तियों की लाशें बह कर गयीं.
बाढ आने का कारण है कि सिक्किम के उत्तरी क्षेत्र के दक्षिण में ग्लेशियर से निर्मित बड़ी झील फटकर तीस्ता बेसिन की तरफ बहकर बिकराल बाढ़ लेकर आई. इससे जन-धन का बहुत नुकसान हुआ. यह तो हिमालय क्षेत्र की एक झील थी, लेकिन यदि ऐसी ग्लेशियर से बनी झीलों की गणना करें, तो पाएंगे ऐसी झीलों की संख्या 7,500 हैं.
अभी तो यह इनका आकार छोटा है, यदि इन क्षेत्रों में तापक्रम का बढना जारी रहा, तो इन झीलों का आकार बढना निश्चित है. इनका आकार बढ़ने में सहायक होगा हमारी विकास की अनियंत्रित गतिविधि. आये दिन लगातार हम पर्यावरण में छेड़छाड़ कर रहे हैं. जैसे बड़ी-बड़ी परियोजनाओं को हिमालय के गर्भ से लेकर शीर्ष शिखरों पर तरह-तरह से अपनी उपस्थिति पेश कर रहे हैं.
इसके उदाहरण मैं देना चहूंगा; उत्तराखंड में जमीन के भीतर से रेल लाइन ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक पहुंचाई जा रही है. इसके साथ आल वैदर रोड की चौड़ाई का निर्माण किया गया. रोड को चौड़ा करने में पेड़ पौधों को काटा गया. इनको काटने में यह ध्यान भी नहीं रखा गया कि उस जगह को, जहां जंगल हुआ करते थे, वहां भूवैज्ञानिकों की सहायता लेकर सड़क की चौड़ाई की जाती, वनस्पतियों और मिट्टी-पत्थर की गुणवत्ता का ध्यान रखकर सड़क का निर्माण करते. इस बात की अनदेखी से हाल ही में जो तबाही हुई है. उसकी भरपाई करना मुश्किल है. सड़कें जैसी थी, उससे भी बदतर स्थिति में हो गईं. विकास ऐसा एक तरफा करने से हिमाचल भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. निश्चित ही सारे ग्लेशियर पिघल रहे हैं, कहीं झीलों का निर्माण और बड़ा होता जा रहा है. जमा होते हुए पानी को ज्यादा समय तक रोक पाना मुश्किल होगा. एक न एक दिन वह बाढ़ का रूप लेगा. दिल्ली इस वर्ष बाढ़ की चपेट में आई थी, उसका कारण भी हिमालय पर छेड़छाड़ करने का नतीजा है.
पृथ्वी का तापक्रम बढ़ाने में हम ही जिम्मेदार हैं. इसको रोकना होगा. अनियोजित कार्यक्रमों को रोकना होगा.
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