image

नई दिल्ली, 05, अक्टूबर 2023

इस बार गोली अमेरिकी समाचार पत्र ‘न्यूयार्क टाइम्स’ से चलाई गई।


डॉ॰ सलीम ख़ान


मोदी सरकार फ़िल्हाल इस तरह चारों ओर से घिर गई है कि उसके लिए किसी बड़ी से बड़ी मूर्खता का कर गुज़रना मामूली बात हो गई है। ‘न्यूज़ क्लिक’ और उससे सम्बन्धित पत्रकारों पर पड़नेवाला ताज़ा छापा इसी कैफ़ियत का नतीजा तो है, जबिक उसका कोई औचित्य नहीं है। यह एक जघन्य अपराध है और इसकी सज़ा उसे कई क़िस्तों में मिलेगी। सबसे पहले तो अदालत में फटकार पड़ेगी, लेकिन मोटी खालवाली सरकार पर इसका कोई असर नहीं होता। फिर भी दर्शक और मज़ा लेनेवाले इस दिलचस्प मंज़र पर बाग़-बाग़ हो जाते हैं। उसके बाद जनता की नाराज़ी हाथ आएगी। चुनाव के वक़्त वोट के बजाय यह सरकार चोट खाएगी। सत्ता से बेदख़ल होने के बाद ये लोग एक के बाद एक जेल जाएँगे तथा यही पत्रकार जिन्हें फ़िल्हाल प्रताड़ित किया जा रहा है, अपने क़लम और माइक से इनकी खाल उधेड़ेंगे। सत्ता के नशे में धुत उन लोगों को फ़िल्हाल अपनी ग़लती का एहसास नहीं हो रहा है, मगर नियति उन्हें ढकेलकर इबरतनाक अंजाम की ओर ले जा रही है। ये लोग ख़ुद अपनी रुस्वाई का सामान जुटा रहे हैं और सत्ता गँवाने के बाद उन्हें हर प्रताड़ना का हिसाब चुकाना पड़ेगा। इंसानों के बाद ख़ुदा की अदालत में भी ये अपने कर्मों के लिए जवाबदेह होंगे और वहाँ कोई चालबाज़ी काम नहीं आएगी।
जाने-माने न्यूज़ पोर्टल ‘न्यूज़ क्लिक’ से मोदी सरकार पिछले दो सालों से परेशान है। इस परेशानी की एक मात्र वजह उसका सरकार के आगे दुम हिलाने के बजाय आईना दिखाना है। इस सरकार का चेहरा फ़िल्हाल इतना कुरूप हो चुका है कि वह ख़ुद भी उसे देख नहीं पाती और घबराकर आईना तोड़ने की कोशिश करती है। इसका नतीजा यह होता कि उसकी किर्चियों से ख़ुद लहू-लुहान हो जाती है। दिल्ली पुलिस के ‘इकॉनोमिक ऑफ़ेंसेज़ विंग’ (EOW) ने 2021 में न्यूज़ क्लिक के ख़िलाफ़ एक मुक़द्दमा दर्ज किया था। इनकम टैक्स विभाग के अधिकारियों ने उस वक़्त न्यूज़ क्लिक पर आयकर अदा न करने का इल्ज़ाम लगाया था और उसके कार्यालयों पर छापे भी मारे थे। इस हरकत पर पोर्टल के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ ने कहा था कि विभिन्न एजेंसियों की ओर से उनकी संस्था के ख़िलाफ़ की जानेवाली जाँच-पड़ताल और आरोप न्यूज़ क्लिक सहित अन्य मीडिया संस्थाओं की स्वतंत्र पत्रकारिता को कुचलने की कोशिश है। इसके बाद जब ‘न्यूज़ क्लिक’ ने दिल्ली हाईकोर्ट में दरख़ास्त दायर की तो अदालत ने सरकार को तमाँचा मारकर गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी जो अभी तक क़ायम है। मोदी सरकार को सोचना चाहिए कि जो लोग दो साल पहले नहीं डरे, बल्कि और ज़्यादा दिलेर हो गए वे अब क्यों डरेंगे? सच तो यह है कि ‘डेढ़ मतवालों’ की वर्तमान सरकार ख़ुद डरी हुई है, इसलिए उसे हर कोई आतंकवादी नज़र आता है।
इस बार गोली अमेरिकी समाचार पत्र ‘न्यूयार्क टाइम्स’ से चलाई गई। उसने अगस्त में एक रिपोर्ट में इल्ज़ाम लगाया कि न्यूज़ क्लिक भी उन संस्थाओं में शामिल है जिसे अमेरिकी अरबपति नेवेल राय सिंघम के नेटवर्क से सहायता राशि मिलती है। सिंघम को चीन का प्रोपेगंडा करनेवाला कहा जाता है। 7 अगस्त को संसद भवन में भारतीय जनता पार्टी के निशिकांत दुबे ने उक्त रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया था कि राहुल गाँधी सहित अन्य काँग्रेसी नेताओं और ‘न्यूज़ क्लिक’ को भारत विरोधी माहौल बनाने के लिए चीन से पैसे मिले हैं। इस बयान के दस दिन बाद इनफ़ोर्समेंट डायरेक्टोरेट (ईडी) ने 17 अगस्त को न्यूज़ क्लिक के ख़िलाफ़ आतंकवाद निरोधक क़ानून यूएपीए और अन्य कई धाराओं के तहत एफ़आईआर दर्ज की थी और न्यूज़ क्लिक पर इल्ज़ाम लगाया कि उसे चीन का प्रोपगंडा करनेवाली एक संस्था से 38 करोड़ रुपये फ़ंड मिला है।
इस मनगढ़न्त कहानी को पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि इन लोगों को ठीक से झूठ बोलना भी नहीं आता। सिंघम एक श्रीलंका मूल के प्रोफ़ेसर के बेटे और अमेरिकी नागरिक हैं। उनपर चीन के प्रोपगंडे का इल्ज़ाम है, लेकिन चीन की जितनी दुश्मनी भारत के साथ है उससे बड़ी दुश्मनी अमेरिका से है। सवाल यह है कि अगर सिंघम कोई गै़र-क़ानूनी काम कर रहा है तो आख़िर अमेरिकी सरकार उसपर कार्रवाई क्यों नहीं करती? इसलिए कि भारत से ज़्यादा अमेरिका अपनी आन्तरिक सुरक्षा के हवाले से संवेदनशील है, तथा मोदी जी की भाँति जो-बॉइडन चीन से भयभीत भी नहीं हैं। अब सवाल यह पैदा होता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या लोकतंत्र का बाप तो अमेरिका है। वह अपने घर में बैठे सिंघम से नाराज़ नहीं है, मगर वहाँ से सात-समुंदर पार लोकतंत्र की माँ भारत में सिंघम से मदद लेनेवालों को देशद्रोही क़रार देकर कार्रवाई कर रहा है। इसको देखकर रामायण में भरत की माँ कैकेई याद आ जाती है जिसने सत्ता के हक़दार अपने सौतेले बेटे राम को बनवास पर भेजकर सगे बेटे को सत्ता का मालिक बना दिया था। वर्तमान सरकार भी गोदी मीडिया के अपने सगे बेटों पर धन-दौलत की बरसात कर रही है और सौतेले बेटे को जेल में भेजने पर तुली हुई है।
इस मरहले में शैतान के वकील की तरह अगर यह मान लिया जाए कि न्यूज़ क्लिक को अड़तीस लाख रुपया मिला और यह भी मान लिया जाए कि सिंघम का चीनियों से सम्बन्ध है तब भी उससे चंदा लेनेवालों पर कार्रवाई किस प्रकार उचित हो सकती है, क्योंकि यह गै़र-क़ानूनी नहीं है। मोदी जी के प्राण-प्रिय गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी के साथ अडानी ग्रुप की कई कंपनियों में एक चीनी शहरी, चांग चंग लंग (उर्फ़ लिंगू चांग) डायरेक्टर रहा है। इस आदमी का नाम पनामा पेपर्स में भी आया था। दिसंबर 2017 में दक्षिण कोरिया के ज़रिए पनामा में रजिस्टर्ड तेल टैंकर ‘कोटि’ पर उत्तर कोरिया को पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स स्थानांतरित करने के कारण संयुक्त राष्ट्र की पाबंदियों की ख़िलाफ़वरज़ी के इल्ज़ाम में ज़ब्त कर लिया गया था। आगे चलकर दक्षिण कोरिया ने ‘कोटि’ नामक टैंकर को कबाड़ की शक्ल में ख़त्म कर दिया, लेकिन इस हक़ीक़त से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसके मालिक चांग चंग लंग के बेटे च्यवन टंग चांग और च्यवन हवान चांग थे।
इस टैंकर कोटि को हांगकांग में रजिस्टर्ड फ़र्स्टेक मेरी टाइम नामक कंपनी से आंशिक रूप से आर्थिक सहायता की गई थी। इस कंपनी के मालिक शंघाई अडानी शिपिंग कंपनी के अलावा च्यवन टंग चांग और च्यवन हवान चांग थे। 2019 के अन्त तक, शंघाई अडानी शिपिंग ने अडानी ग्लोबल और चांग की मिल्कियत वाली हाय लिंगूस के साथ कारोबार किया। उनमें से किसी भी संस्था को अब तक अडानी की सहयोगी कंपनी के रूप में स्वीकार नहीं किया गया। सवाल यह है कि अडानी ग्रुप की गै़र-क़ानूनी गतिविधियों में शामिल चीनी नागरिकों के साथ गहरे सन्दिग्ध रिश्तों की जाँच क्यों नहीं होती? च्यवन टंग चांग ने पीएमसी प्रोजेक्ट्स के मालिक की हैसियत से गुजरात के मंदिरा और अडानी ग्रुप को अन्य बंदरगाहों के निर्माण में मदद की है। अडानी फ़ैमिली के साथ चांग चंग लंग के गहरे रिश्ते हैं, लेकिन क्या कभी अडानी को भी उनसे सम्बन्धित पूछताछ के लिए बुलाया जाएगा? गुजरात के मुख्यमंत्री की हैसियत से ख़ुद मोदी पाँच बार चीन जा चुके हैं और सत्ता संभालने के बाद शि जिनपिंग को साबरमती के किनारे झूला झुला चुके हैं, इसलिए चीन का नाम आते ही यूएपीए के तहत मुक़द्दमा किसी तौर पर उचित नहीं रहता है।
इससे आगे बढ़कर यह भी मान लिया जाए कि एक चीन समर्थक अमेरिकी ने ग़लत तरीक़े पर न्यूज़ क्लिक को सहायता दी। तब भी न्यूज़ क्लिक के प्रशासन तक कार्रवाई को सीमित होना चाहिए। इस कथित झोल-झाल से उन पत्रकारों का क्या लेना देना कि जो इन संस्थाओं में काम करते हैं? ‘न्यूज़ क्लिक’ के प्रबन्धन की कोताही के लिए जाने-माने पत्रकार अभिसार शर्मा, भाषा सिंह, उर्मिलेश, लेखिका गीता हरिहरण, अविनन्दा चक्रवर्ती, सुहैल हाशमी के अलावा स्टैंड अप कॉमेडियन संजय राजौरा के यहाँ ‘छापेमारी’ की आख़िर क्या तुक है? ये लोग तो ख़ैर आस-पास से उठाए गए, मगर मुंबई से तीस्ता सेतलवाड़, सुबोध वर्मा, और सक्रिय पत्रकार परांजोए गुहा ठाकुरता के घरों पर भी छापे मारने का क्या औचित्य है? इन सबके मोबाइल और कम्प्यूटर ज़ब्त कर लेना सरासर ज़ुल्मो-ज़्यादती है। इस दौरान यह ख़बर भी आई कि दिल्ली साइंस फ़ोरम से जुड़े वैज्ञानिक और लेखक डी. रघुनंदन को पुलिस उठा ले गई। फ़िल्हाल देश विश्व प्रेस फ़्रीडम इंडेक्स की दर्जाबन्दी में निचले 20 देशों में पहुँच गया है। जी 20 देशों में वह सबसे निचले पाएदान पर है, लेकिन इस क़दम के बाद असम्भव नहीं कि भारत को आख़िरी नंबर पर रख दिया जाए, क्योंकि ऐसी अंधेरगर्दी तो दुनिया में कहीं नहीं है। इस मौक़े पर फ़ैज़ के जाने-माने मिसरे (काव्य की पंक्ति) को अपने प्रोग्राम का शीर्षक बनानेवाले जाँबाज़ पत्रकार अभिसार शर्मा श्रद्धांजलि के तौर पर इसी नज़्म के हक़दार हैं—


बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
बोल ज़बाँ अब तक तेरी है
तेरा सुत्वाँ जिस्म है तेरा
बोल कि जाँ अब तक तेरी है
देख कि आहन-गर की दुकाँ में
तुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहन
खुलने लगे क़ुफ़्लों के दहाने
फैला हर इक ज़ंजीर का दामन
बोल यह थोड़ा वक़्त बहुत है
जिस्म-ओ-ज़बाँ की मौत से पहले
बोल कि सच ज़िंदा है अब तक
बोल जो कुछ कहना है कह ले
---(अनुवादक : गुलज़ार सहराई)

  • Share: