भारतीय जनता पार्टी में पिछले एक दशक में जिस तरह परिवर्तन आया है, उसमें देश के किसी भी कोने में बैठे नेता की सांस पर पकड़ दिल्ली की ही रहती है। इससे मध्य प्रदेश भी अछूता नहीं है जबकि यहां से जनसंघ से लेकर भाजपा के पौधे को लगाने वाले एक से बड़े एक नेता रहे हैं। आज यहां के किसी भी नेता को उसके भविष्य का पता नहीं है कि कल वह किस भूमिका में होगा। फिर चाहे वह केंद्र सरकार में सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाले मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर हों या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान या फिर संगठन के बड़े नेता माने जाने वाले कैलाश विजयवर्गीय, किसी को भी यह पता नहीं कि कल उन्हें क्या जिम्मेदारी मिलेगी।
भाजपा ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में आठ केंद्रीय मंत्रियों व सांसदों को प्रत्याशी बनाकर सबको अचंभित कर दिया है। चुनाव प्रबंध समिति संयोजक बनाए गए केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को आखिरी समय तक अहसास तक नहीं था कि वे मुरैना जिले की दिमनी जैसी विधानसभा सीट से चुनाव में उतारे जा सकते हैं तो केंद्रीय संगठन में खुद को बड़ा नेता मानने वाले कैलाश विजयवर्गीय तो खुलकर कह गए कि वे तो सोच रहे थे कि कार से पांच और हेलीकॉप्टर से तीन सभाएं करने चुनाव में जाएंगे, मगर अब पार्टी ने उन्हें उनके गृह नगर इंदौर की एक नंबर सीट से चुनाव मैदान में उतारकर गली-गली घूमकर खुद के लिए वोट मांगने को छोड़ दिया है। इसी तरह केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को उनके भाई जालमसिंह पटेल का टिकट काटकर नरसिंहपुर जिले की विधानसभा सीट से प्रत्याशी बना दिया है तो एक अन्य केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को निवास विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारकर उन्हें ही भौंचक्का कर दिया है। सांसदगण राकेश सिंह को जबलपुर पश्चिम तो सीधी से रीती पाठक, सतना से गणेश सिंह व गाडरवारा से उदयप्रताप सिंह को भाजपा ने उतारा है।
भाजपा की केंद्रीय मंत्री और सांसदों को चुनाव लड़ाने की रणनीति केंद्र ने अकेले बनाई या मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तरफ से यह पासा फेंका गया। यह सवाल अभी तक अबूझ पहेली बना हुआ है। वैसे जिन नेताओं को प्रत्याशी बनाया गया है, उनकी खुलकर और दबे अंदाज में जो भी प्रतिक्रियाएं आईं हैं, उससे इस पूरे घटनाक्रम में केंद्रीय नेतृत्व की रणनीति सामने आ रही है क्योंकि नेतृत्व को अब लगने लगा है कि शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर चुनाव जीतकर मध्य प्रदेश में सरकार बनाने में जोखिम है। मध्य प्रदेश में उन सीटों पर अपने मंत्रियों-सांसदों को उतारा है जहां कांग्रेस के विधायक हैं और इससे केंद्रीय मंत्रियों-सांसदों की एक तरह से उनकी परीक्षा भी हो जाएगी। वहीं, इस रणनीति से केंद्रीय नेतृत्व शिवराज सिंह चौहान का प्रदेश में विकल्प भी खड़ा करने में सफल भी हो जाएगा जिसके लिए कई बार प्रदेश में शिवराज की कुर्सी के हिलने और फिर दिल्ली से उन्हें अभयदान देने की परिस्थितियों से उसे गुजरना पड़ता रहा है।
उधर, बड़े नेताओं को विधानसभा चुनाव लड़ाने की रणनीति के सूत्रधार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी हो सकते हैं क्योंकि आठ दिग्गजों में से चार नेता के नाम उनकी सीएम कुर्सी के लिए बीच-बीच में दावेदारों की तरह सामने आते रहते हैं। राजनीतिक गलियारों में यह माना जा रहा है कि चौहान ने भाजपा की हारी सीटों पर इन्हें उतरवाकर कांग्रेस से उन सीटों को छीनने की शतरंजी चाल चली है जिससे उन सीटों पर भाजपा की हार की स्थिति में उनके रास्ते के कांटों का राजनीतिक भविष्य अपने आप समाप्त हो जाए। इसकी संभावना ज्यादा लग रही है क्योंकि नरेंद्र सिंह तोमर अपनी विधानसभा सीट दिमनी में प्रत्याशी घोषित होने के बाद अब तक नहीं गए हैं। वहां से उन्हें न केवल कांग्रेस विधायक रविंद्र सिंह तोमर से मुकाबला करना है बल्कि पूर्व विधायक बसपा प्रत्याशी बलवीर सिंह डडोतिया का भी सामना करना पड़ेगा और वहां त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बनेगी। कुलस्ते निवास से प्रत्याशी बनाए जाने से खुश नहीं हैं क्योंकि वहां उनकी स्थिति अच्छी नहीं है तो सीधी से रीती पाठक के लिए केदार शुक्ला, भाजपा ने टिकट काटा है, ही मुसीबत बन चुके हैं। वे निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। सतना में गणेश सिंह को, मैहर से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी टिकट काटे जाने के बाद, हरवाने की तैयारी कर रहे हैं। वहीं, जबलपुर में राकेश सिंह की स्थिति भी विधानसभा चुनाव में ठीक नहीं रहने वाली है क्योंकि उनके सामने कमलनाथ सरकार में वित्त मंत्री रहे तरुण भनोत हैं। नरसिंहपुर जिले में प्रहलाद पटेल व उदयप्रताप सिंह को भी चुनाव आसान नहीं है। यानी शिवराज सिंह चौहान ने अगर शतरंज की यह बिसात बिछाई है तो उसमें वे अपने विरोधियों को मात देने में अब तक सफल होते दिखाई दे रहे हैं। मगर बड़े नेताओं को चुनाव मैदान में उतारे जाने का फैसला केंद्रीय नेतृत्व यानी पीएम नरेंद्र मोदी व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी का है या सीएम शिवराज सिंह चौहान का, यह पहेली जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ेगा, तब सुलझेगी।
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