अमिताभ श्रीवास्तव
'खोल कमल पंखुड़ियाँ' कवि के विविध आयामों का आइना
एक कवि को जितना दुःख झेलना पड़ता है उस सारी वेदना को वो चाह कर भी शब्दों में नहीं उतार पाता।लेकिन कविता फिर भी एक सार्थक माध्यम है इसमें दो राय नहीं हो सकती।
इसीलिए प्रफ़ेसर लल्लन प्रसाद के नए काव्य संकलन 'खोल पंखुडियाँ खोल' के शीशर्क से ये अन्दाज़ करना मुश्किल था कि उनकी कविताएँ कितनी मारक होंगी और साथ साथ दर्दनाक भी।
अपने ही पुत्र की असामयिक मृत्यु के सच को स्वीकार करना भी मुश्किल होता है लेकिन वो तो अपने युवा डॉक्टर पुत्र की करोना में मृत्यु को कुछ ही पंक्तियों में लिख कर अगले विषय पर बढ़ गए।
बातचीत में उन्होंने बताया कि उनका बेटा भारत के एक प्रतिष्ठित संस्थान से पढ़ कर निकला था और करोना के दौरान अमेरिका में अपना अस्पताल चला रहा था।लेकिन उस भयानक काल में किसी एक रोगी की जान बचाते हुए ख़ुद संक्रमित हो गया और अपनी जान गवाँ दी।
ऐसे दर्द के बाद शायद बुध की शरण में ही जाना पड़ता है जैसे सम्राट अशोक को जाना पड़ा था। उस दर्द की अभिव्यक्ति उनकी अगली कविता 'एक मुट्ठी ज़ीरा' के माध्यम ने बहुत ही ख़ूबसूरती से की है।
ऐसे कवि को मन से सलाम करने का दिल करता है।
लल्लन प्रसाद जो पेशे से वारिज्य अधिकारी रहे हैं कही से भी वारिज्य जैसे सूखे विषय में फ़िट होते नहीं दिखते हैं।इसलिए जब पता चला की 'खोल कमल पंखुडियाँ' उनका आठवाँ काव्य संग्रह है तो विश्वास हो गया कि मनुष्य की सृजनशीलता को विषयों या सीमाओं में बाँध कर नहीं रखा जा सकता।
उनके विषय वैसे तो प्रकृति के आस पास घूमते रहते हैं।किताब का शीर्षक या उनकी गौरैया जैसी विलुप्त होती प्रजाति पर कविता उनके इस शौक़ को दर्शाता है लेकिन दूसरी ओर उनकी अन्य कवितायें हमें उनकी देशभक्ति और उनकी ऊर्जा को प्रतिबिम्बित करती है।
लल्लन प्रसाद जी का ज्ञान केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने कई अन्य भाषाओं के लेखकों को भी अपनी रचनाओं में उतारा है जिससे इस काव्य संग्रह का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
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