पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम देश के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय बनने जा रहे हैं क्योंकि यह जनादेश संकेत देगा कि राजनीतिक हवा किस दिशा में बह रही है।
जबकि तीन हिंदी भाषी राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ और उत्तर पूर्वी राज्य मिजोरम के नतीजे संकेत देंगे कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भगवा पार्टी मतदाताओं की पसंद बने रहेंगे, दक्षिणी राज्य तेलंगाना के नतीजे बताएंगे कि बीजेपी दक्षिण भारत में राजनीतिक रूप से प्रासंगिक है या नहीं? या भगवा शब्दावली में कहें तो क्या देश को भाजपा मुक्त दक्षिण भारत मिलने वाला है?
वर्ष 2014 में तेलंगाना के अस्तित्व में आने के बाद से भाजपा दक्षिणी राज्यों में अपनी मजबूत पकड़ बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। कर्नाटक एकमात्र राज्य है जहां भाजपा सबसे पहले सरकार बनाने में सफल रही। लेकिन इस साल की शुरुआत में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में वह कांग्रेस से हार गई।
अब भाजपा और उसके अधिनायक प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बहुत कुछ दांव पर है। वह बीजेपी का मनोबल बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं भाजपा की चुनावी मशीनरी अपने विरोधियों विशेषकर कांग्रेस को पछाड़कर उपविजेता बनने और तीसरे स्थान पर आने से बचने के लिए सभी उचित और अनुचित तरीकों का उपयोग कर रही है।
प्रधानमंत्री के अलावा, गृह मंत्री अमित शाह, यूपी और असम के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और हिमंत बिस्वा सरमा, कई केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा ने राज्य में बड़े पैमाने पर प्रचार किया है। योगी आदित्यनाथ को उन निर्वाचन क्षेत्रों में भेजा गया जहां मुस्लिम आबादी काफी है और उन्होंने वादा किया कि अगर भाजपा सत्ता में आती है तो हैदराबाद और मेहबूबनगर जैसे शहरों के नाम बदल दिए जायेंगे।
लेकिन दुर्भाग्य से सभी चुनावी पंडित, जमीनी रिपोर्ट और विशेषज्ञ भविष्यवाणी कर रहे हैं कि भगवा पार्टी तीसरे नंबर पर रहने वाली है।
वर्तमान में, भाजपा के पास इस दक्षिणी राज्य से चार लोकसभा सांसद हैं और निवर्तमान विधानसभा में उसके चार विधायक हैं। 2023 की शुरुआत में बीजेपी को पूरी उम्मीद थी कि वह पिछले 10 सालों से राज्य में शासन कर रही भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) पार्टी की के.चंद्रशेखर राव सरकार को हटा देगी.
तेलंगाना के माध्यम से कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भार जोड़ो यात्रा ने राज्य में कांग्रेस को पुनर्जीवित किया और पार्टी की राजनीतिक स्थित को बढ़ावा दिया जो पिछले विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनावों में अपनी हार के बाद मृतप्राय हो गई थी।
11 महीने की अवधि के भीतर, कांग्रेस राज्य में चल रही चुनावी कवायद में बीएसआर की जगह संभावित विजेता के रूप में उभरी है, जिसने वर्ष 2018 के चुनाव में 119 सदस्यीय विधानसभा में 89 सीटें जीती थीं।
वर्तमान चुनावी लड़ाई में सम्मानजनक प्रदर्शन दर्ज करने के लिए भाजपा हर संभव प्रयास कर रही है, प्रधानमंत्री मोदी ने पार्टी के लिए प्रचार करने के लिए तीन दिनों तक राज्य में रहकर आखिरी तक प्रयास किया तथा 27 नवंबर को हैदराबाद में छह चुनावी सभाओं को संबोधित करने और एक रोड शो किया ।
प्रधानमंत्री कामारेड्डी के एक सार्वजनिक बैठक को संबोधित किया। तथ्य यह है कि भाजपा यहां दौड़ में भी नहीं है, लेकिन यहां सार्वजनिक रैली आयोजित करने का मोदी का निर्णय उनके कांग्रेस विरोधी की निति को महत्व देता है। कांग्रेस का आरोप है कि कांग्रेस को हराने के लिए बीजेपी और बीआरएस आपस में मिले हुए हैं.
राज्य में चुनाव की घोषणा से पहले भी मोदी कई बार राज्य का दौरा कर चुके हैं. 1 अक्टूबर को, उन्होंने राज्य का दौरा किया था और भाजपा की चुनावी संभावनाओं को बढ़ावा देने के लिए 13500 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में मुख्यमंत्री के चन्द्रशेखर राव पर हमला बोला था.
दक्षिणी राज्य में अपनी पार्टी को जीत दिलाने के लिए प्रधानमंत्री के व्यक्तिगत प्रयासों के अलावा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भगवा पार्टी के प्रमुख जे पी नड्डा सहित भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने भी राज्य के कई दौरे किए हैं।
भाजपा 2013 से जोर-जोर से चिल्ला रही थी कि वह भारत को कांग्रेस मुक्त बना देगी, लेकिन राजनीतिक भाग्य की विडंबना है कि वह दक्षिण भारत को मुक्त बना रही है।
सभी जमीनी रिपोर्टों से, ऐसा लगता है कि दिसंबर में चुनाव परिणाम घोषित होने पर दक्षिण भारत के भाजपा मुक्त होने की संभावनाओं के साथ भाजपा की राजनीतिक स्थित भी कमजोर हो जायगी।
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