( अक्टूबर का महीना महात्मा गाँधी की जयंती और लाल बहादुर शास्त्री जन्मदिवस के कारण हम सब के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। मीडिया मैप न्यूज़ पर हम इस माह हम राष्टपिता महात्मा गाँधी और शास्त्री पर अच्छे लेख प्रकाशित करते रहेंगे। यह लेख इसी सांखला में एक सुप्रसिद गांधीवादी विचारक डॉ. आर. के. पालीवाल द्वारा मीडिया मैप के लिए लिखा गया है – संपादक )
महात्मा गांधी के खिलाफ झूठी अफवाहों का सिलसिला उनके जीवनकाल में भी चला करता था। उनके उदार और समावेशी विचारों के चलते, कई संस्थाओं जैसे मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा, आरएसएस के कुछ सदस्य, वामपंथी विचारधारा के लोग और यहां तक कि डॉ. अम्बेडकर जैसे व्यक्तित्व ने भी समय-समय पर गांधी पर आरोप लगाए थे। इनमें से कुछ लोग अंग्रेजी हुकूमत से लाभ के पद और सुविधाएं भी प्राप्त करते थे। हालांकि, तब गांधी के चरित्र पर इतने भद्दे आरोप नहीं लगाए जाते थे जितने कीचड़ आज सोशल मीडिया पर एक सुनियोजित साजिश के तहत फेंके जा रहे हैं।
विडंबना यह है कि जब दुनिया भर में गांधी की छवि मजबूत होती जा रही है, संयुक्त राष्ट्र उनके जन्मदिन को "अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस" के रूप में मान्यता देकर उनके सम्मान को दर्शा रहा है, तो वहीं हमारे अपने देश में कुछ लोग उनके कद को छोटा साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। ये लोग तीन अलग-अलग तरीकों से गांधी की छवि को धूमिल करने का प्रयास करते हैं:
1. कुछ लोग उन्हें देश के विभाजन का मुख्य दोषी बताते हुए राष्ट्रद्रोही कहने की मूर्खता करते हैं।
2. दूसरी जमात उन लोगों की है जो नाथूराम गोडसे को राष्ट्रभक्त बताकर अप्रत्यक्ष रूप से गांधी को अपराधी साबित करने का दुष्प्रचार करती है।
3. तीसरी श्रेणी में वे लोग हैं जो गांधी की जगह उनके अनुयायी जैसे सरदार पटेल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह और डॉ. अम्बेडकर को स्थापित करने की कोशिश करते हैं।
लेख एक नज़र में
महात्मा गांधी के खिलाफ झूठी अफवाहें आज भी फैलाई जा रही हैं। कुछ लोग उन्हें देश के विभाजन का मुख्य दोषी बताते हुए राष्ट्रद्रोही कहने की मूर्खता करते हैं। दूसरे लोग नाथूराम गोडसे को राष्ट्रभक्त बताकर अप्रत्यक्ष रूप से गांधी को अपराधी साबित करने का दुष्प्रचार करते हैं।
तीसरी श्रेणी में वे लोग हैं जो गांधी की जगह उनके अनुयायी जैसे सरदार पटेल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह और डॉ. अम्बेडकर को स्थापित करने की कोशिश करते हैं। इन अफवाहों से गांधी की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है।
हमें गांधी के विचारों को सरल भाषा में जन-जन तक पहुंचाना जरूरी है ताकि लोग गलत सूचनाओं के जाल में न फंसे।
दुर्भाग्यवश, इन प्रयासों में कुछ सांसद, मंत्री और पूर्व नौकरशाह भी शामिल हैं। इस अभियान का एक हिस्सा वे लोग भी हैं जो गांधी के खिलाफ आधी-अधूरी जानकारी इकट्ठा कर उसे अतिशयोक्तिपूर्ण तरीके से फैलाते हैं। ये लोग व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी जैसी हास्यास्पद माध्यमों का सहारा लेकर झूठी जानकारी फैलाते हैं।
देश का एक अर्धशिक्षित वर्ग इस तरह की फर्जी सूचनाओं पर आसानी से विश्वास कर लेता है। अमेरिका और यूरोप के देश अपनी विभूतियों का सम्मान करते हैं, लेकिन एशिया में गुलामी की मानसिकता से ग्रस्त लोग अपने महान व्यक्तित्वों का भी अपमान करने से पीछे नहीं हटते। हाल ही में बांग्लादेश में उनके राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान की मूर्तियों को तोड़ा गया, जो हमारे देश में गांधी के खिलाफ की जाने वाली बयानबाजी से मेल खाता है।
सबसे अधिक चिंता की बात तब होती है जब कुछ डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, और अध्यापकों के व्हाट्सएप ग्रुप में भी इस तरह की भ्रामक जानकारी साझा की जाती है। खासकर, ये अफवाहें युवाओं के कोमल मन पर गहरा असर डालती हैं, जिनके दिमाग को आसानी से भड़काया जा सकता है। आतंकवादी और संगठित अपराधी भी इस तरह की नफरत फैलाने वाली जानकारियों का दुरुपयोग करते हैं।
जब गांधी जीवित थे, तब वे अपने ऊपर लगने वाले आरोपों का तर्कसंगत तरीके से जवाब देते थे। वे प्रार्थना सभाओं और अखबारों के जरिए जनता तक अपना पक्ष पहुंचाते थे। अब जब वे हमारे बीच नहीं हैं, तो यह सरकार और उन सभी लोगों की जिम्मेदारी बनती है जो गांधी को आदर्श मानते हैं कि वे गांधी पर लगने वाले झूठे आरोपों का सामना करें। इसके लिए एक सख्त कानून की भी जरूरत है, जिसमें गांधी पर झूठे आरोप लगाने और अफवाहें फैलाने वालों को सजा दी जा सके।
इसके साथ ही, गांधी के विचारों को सरल भाषा में जन-जन तक पहुंचाना जरूरी है ताकि लोग गलत सूचनाओं के जाल में न फंसे। स्कूलों और कॉलेजों में गांधी के जीवन और उनके संघर्षों को रुचिकर तरीके से पढ़ाया जाना चाहिए। मीडिया को भी गांधी को केवल उनकी जयंती और पुण्यतिथि तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि उनके योगदान जैसे दांडी मार्च, सत्याग्रह आंदोलन, और भारत छोड़ो आंदोलन को समय-समय पर प्रमुखता से याद करना चाहिए।
करीब दस साल पहले जब गांधी के खिलाफ झूठ फैलाने की कोशिशें बढ़ीं, तब मैंने खुद को सोचा कि इस पर कुछ लिखा जाए। मेरे गांधीवादी मित्रों ने भी मुझसे आग्रह किया, और इसी क्रम में मैंने "गांधी की चार्जशीट" नाटक लिखा। इस नाटक में गांधी पर लगे आरोपों का जवाब खुद गांधी द्वारा देश की सर्वोच्च अदालत में दिया गया है। यह नाटक जगह-जगह मंचित हुआ और दर्शकों ने इसे खूब सराहा। नाटक देखने के बाद लोग गांधी के व्यक्तित्व को और गहराई से समझने लगते हैं, क्योंकि इसमें उन्हें आरोपों के झूठ होने की तथ्यात्मक जानकारी मिलती है।
गांधी भारतीय सभ्यता और संस्कृति के ऐसे महानायक हैं, जिनके विचारों और कार्यों पर हर भारतीय को गर्व होना चाहिए। गांधी हमारी धरोहर हैं, जिसे सहेजना और आगे बढ़ाना हमारा कर्तव्य है। यह तभी संभव है जब हम सभी उनके विचारों को अपने जीवन में आत्मसात करें और नए पीढ़ी को उनके बारे में सही जानकारी दें। इस प्रकार, गांधी के प्रति सम्मान और उनके विचारों की महत्ता को बनाए रखते हुए, हम उनके आदर्शों का पालन कर सकते हैं।
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लेखक: पूर्व प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पद से सेवानिवृत हुए हैं और गांधी विचार पर आधारित समग्र ग्राम विकास के विविध रचनात्मक कार्यों से जुडे हैं। उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में कुछ गांवों को आदर्श गांव बनाने में अग्रणी भूमिका निभाई है।
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