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ज़ेबा हसन 

A person with long hair and a piercing on her forehead

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नई दिल्ली | शुक्रवार | 26 जुलाई 2024

किसी शायर का यह शेर इन दिनों यूपी की सियासत पर काफी मौजू सा लग रहा है। इस बात का इतिहास गवाह रहा है कि प्रजा पर थोपे गए तुगलकी फरमान सत्तधारी ही नहीं बल्कि सत्ता की नीव को भी हिला देते हैं। ऐसे ही कुछ फरमान इन दिनों उत्तर प्रदेश की सरकार के लिए भी गले ही हड्डी बनते हुए नजर आ रहे हैं। लोकसभा चुनाव में बीजेपी का प्रर्दशन काफी खराब रहा, तब से पार्टी की हार की समीक्षा हो रही है। इस समीक्षा में बुलडोजर नीती से लेकर अकबर नगर में मकानों को जमीदोज किए जाने को भी हार की वजह माना जा रहा है।

तमाम लोग इसके पीछे यूपी सरकार की नीतियों को दोष दे रहे हैं। यहां तक सहयोगी दलों के नेता भी सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठा रहे हैं।  इन समीक्षा बैठकों के दौरान जो कुछ भी हो रहा है, उसे देखते हुए बीजेपी के भविष्य को लेकर आशंकाएं सामने आने लगी हैं। इन सब कारणों के बीच योगी बनाम केशव  के उस मुद्दे ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है जिसकी शुरुआत साल 2017 में योगी आदित्यनाथ के पहली बार मुख्यमंत्री बनने के पहले शुरू हुई थी। लोगों को अंदेशा तो यह भी है कि अरविंद केजरीवाल की भविष्यवाणी कहीं सच ना हो जाए? क्या होंगे इस रस्साकसी के नतीजे? यह तो वक्त ही तय करेगा। फिलहाल योगी सरकार का ‘नेम प्लेट’ वाला फरमान चर्चा का विषय बना हुआ है। मामला कोर्ट तक पहुंचा न्यायालय ने 22 जुलाई को नेमप्लेट वाले आदेश को खारिज करते हुए फैसला दिया कि खाने की पहचान बतानी होगी ना कि दुकानदार की पहचान लिखी जाए।

 

लेख एक नज़र में
 
उत्तर प्रदेश की सियासत में इन दिनों तुगलकी फरमानों की बारिश हो रही है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के बाद से पार्टी की हार की समीक्षा हो रही है। इस समीक्षा में बुलडोजर नीति से लेकर अकबर नगर में मकानों को जमीदोज किए जाने को भी हार की वजह माना जा रहा है।
 
हाल ही में, योगी सरकार का 'नेम प्लेट' वाला फरमान चर्चा का विषय बना हुआ है। इस फरमान के तहत, कावंड़ यात्रा के मार्ग में पढ़ने वाली खाद्य समाग्री की दुकानों पर, ठेलों पर उसके मालिकों का नाम लिखना अनिवार्य होगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अंतरिम आदेश जारी करते हुए कहा कि दुकानदारों को अपनी पहचान बताने की जरूरत नहीं है, बल्कि खाना मासाहारी है या शाकाहारी इस बात की जानकारी देनी होगी।
 
इसके अलावा, यूपी में बुलडोजर की एंट्री हुई थी कानपुर में हुए 'बिकरू कांड' के बाद। लेकिन अब यही बुलडोजर उम्मीदों पर चलने के संकेत भी दे रहा है। ऐसी स्थिति में यूपी में योगी आदित्यनाथ को हटाकर किसी दूसरे को मुख्यमंत्री बनाना तो फिलहाल संभव नहीं दिख रहा है लेकिन सरकार और संगठन में बदलाव के संकेत जरूर मिल रहे हैं।

 

‘रहमान’ को बतानी होगी अपनी पहचान

राम-रहीम एक है, नाम धराया दोय।

कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परौ मति कोय।।

संत कबीर दास जी कहते हैं कि राम और रहीम दोनों एक ही परम शक्ति के दो नाम हैं, ये दो अलग अलग नाम सुन कर किसी को अपने मन में भ्रम पैदा नहीं करना चाहिए। लेकिन इन दिनों राम रहीम के नामों पर ही सियासत के मोहरे आगे बढ़ाए जा रहे हैं  कावंड़ यात्रा के मार्ग में पढ़ने वाली खाद्य समाग्री की दुकानों पर, ठेलों पर उसके मालिकों का नाम लिखना अनिवार्य होगा, यानी हर दुकान, खाने के होटल और ठेलों पर नेमप्लेट लगाना जरूरी होगा। उदाहरण के तौर पर सिर्फ यह लिखा होना कि ‘मुन्ना का होटल’ काफी नहीं होगा बल्कि लिखना होगा कि रहीम खान इस होटल के मालिक हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस आदेश के बाद से प्रदेश में सियासी घमासान शुरू हो गया। पुलिस महकमा भी हरकत में आ गया। दुकानदारों ने अपनी दुकानों के नए बोर्ड तैयार करने शुरू कर दिए,  लेकिन दिलों में यही सवाल थे कि यह वही कावंड़ यात्रा है जो सालों से हो रही है?  इन्हीं रास्तों से गुजरी है? हमेशा शिव के इन भक्तों पर मुसलमानों ने कहीं फूलों की बारिश की है तो कहीं उन्हें बिठा कर सेवा की है। उन्हें पानी पिलाया है तो पैर भी दबाए हैं। अब अचानक ऐसा क्या हो गया जो इस पवित्र यात्रा में मुस्लिम लोगों की सहभागिता से सब अपवित्र हो जाएगा?  सुप्रीमकोर्ट इस मामले में अंतरिम आदेश जारी करते हुए कहा कि दुकानदारों को अपनी पहचान बताने की जरूरत नहीं खाना मासाहारी है या शाकाहारी इस बात की जानकारी देनी होगी। 

क्यों बोया जा रहा है जहर का बीज?

कांवड़ यात्रा की शुरूआत से जारी हुआ यह आदेश सिर्फ धर्म की राजनीति करने वालों का एक हथियार है। वरना आम आदमी तो इस पवित्र यात्रा को सिर्फ आस्था के रास्ते पर चलकर पार करता है। कांवड़ लिए शिव के भक्तों को ना किसी के नाम से परहेज है और ना ही उनकी सेवा से। यूपी में कई ऐसे मुस्लिम कारीगर हैं, जो कांवड़ यात्रा में सांप्रदायिक सौहार्द का रंग भर रहे हैं। वर्षों से यह शिवभक्तों की पोशाक तैयार करते आ रहे हैं। यही नहीं शिवभक्त जिन कांवड़ में गंगाजल भर कर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं उन्हें मुस्लिम कारीगर पूरी मेहनत और लगन से तैयार करते हैं। सहारनपुर के मोहल्ला गोटेशाह में व्यापारी हसीब की होजरी फैक्टरी है। इनके यहां कई कारीगर और उनके बेटे तौफीक व शाहिद अपने हाथों से होजरी के कपड़े तैयार करते हैं। हर वर्ष श्रावण शुरू होने से पहले कांवड़ियों की महाकाल लिखी, भोले बाबा की और शिवलिंग की तस्वीर लगी पोशाक बनाते हैं। हरिद्वार में कांवड़ कारीगरों के काम में भाईचारे और एकता का एक दिल को छू लेने वाला प्रदर्शन देखने को मिलता है । कुंभनगरी हरिद्वार से शुरू होने वाली कांवड़ यात्रा हिंदू-मुस्लिम सद्भाव की मिसाल है। हर साल सावन के महीने में लाखों शिव भक्त गंगा का पवित्र जल लेने के लिए हरिद्वार आते हैं। उल्लेखनीय बात यह है कि ये भक्त अपने कंधों पर जो कांवड़ उठाते हैं, उन्हें हरिद्वार जिले के मुस्लिम परिवार बड़ी सावधानी से तैयार करते हैं।

हमारे मुख्यमंत्री भी अवैध हैं

लखनऊ में अकबरनगर में अवैध निर्माणों को ढहाने के बाद कुकरैल नदी के किनारे बसे अबरार नगर ,पंतनगर ,रहीम नगर ,इंद्रप्रस्थ कॉलोनी में सिंचाई विभाग के सर्वे के बाद मकानों पर लाल निशान लगा दिए गए। लाल निशान मतलब यही मकान जमीदोज किए जाएंगे। लेकिन यहां हुए सर्वे के खिलाफ बनी संघर्ष समिति जमीन बचाओ सत्याग्रह आंदोलन ने सरकार को बैकफुट पर आने को मजबूर कर दिया। इन इलाकों में लोगों ने पोस्टर लगा दिए जिनमें लिखा था कि अगर हमारे मकान अवैध है तो हमारा वोटर आईडी भी अवैध है और हमारे द्वारा दिया गया वोट भी अवैध है। इसलिए हमारे क्षेत्र के पार्षद, हमारे विधायक, हमारे संसदीय क्षेत्र के सांसद और हमारे द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री जी भी अवैध हैं। इलेक्शन कमिशन इस मामले को संज्ञान में ले और इन सभी की सदस्यता खत्म करके फिर से चुनाव करवाए। अवाम के इन बदले तेवरों का ही नतीजा है कि मुख्यमंत्री जी आगे की कार्यवाई को रोक दिया है। शायद अब सरकार को भी यह पता चल रहा है कि विध्वंसक कार्रवाइयां ज्यादा दिनों तक नहीं चलने वाली हैं। अब  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोगों को आश्वासन दिया निजी जमीनों पर बने घर नहीं गिराए जाएंगे और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी. चूंकि बड़ी संख्या में गिराए जा रहे घरों के मामले में यह बड़ा सवाल भी आया कि आखिर सालों से ये घर बनते कैसे चले गए?  मुख्यमंत्री के रुख में आए इस बदलाव को भी चुनावी नतीजों से ही जोड़कर देखा जा रहा है। लखनऊ के एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं, "निश्चित तौर पर इस तरह के फैसले सरकार के खिलाफ जाते हैं।

उम्मीदों पर न चल जाए 'बुलडोजर' 

राज्य सरकार में मंत्री और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने ‘बुलडोजर नीति' को हार का प्रमुख कारण बताया। संजय निषाद की बात में इसलिए दम हैं क्योंकि बुलडोजर के इस्तेमाल पर जो तालियां बजाया करते थे वह भी धीरे-धीरे इसकी चपेट में आने लगे। पहले कई मामलों में ज्यादातर बुलडोजर कार्रवाई मुसलमानों के मामलों में हुई तो इसे राजनीतिक तुष्टीकरण से देखा गया लेकिन धीरे-धीरे इसका विस्तार होता गया। किसी अपराध में नाम आ जाने पर भी कथित अवैध निर्माण के नाम पर घर ढहा दिए गए। यहां तक कि अदालत की टिप्पणियों के बावजूद इसका इस्तेमाल जारी रहा। बीजेपी समर्थक बुलडोजर को सरकार की ताकत के प्रतीक के तौर पर प्रचारित करते रहे लेकिन चुनावी हार और खराब प्रदर्शन के बाद अब इसे भी हार के प्रमुख कारणों में गिना जा रहा है। दरअसल, यूपी में बुलडोजर की एंट्री हुई थी कानपुर में हुए 'बिकरू कांड' के बाद। जब कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे और उसके गैंग के लोगों ने 8 पुलिसकर्मियों 8 पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया था। इस वारदात के बाद पुलिस ने भी जवाब देना शुरू किया। विकास दुबे गैंग के एक-एक आदमी को एनकाउंटर में मारकर गिराया जाने लगा। इसके बाद से ही प्रदेश में बाबा का बुलडोजर घूमता रहा। अब यही बुलडोजर उम्मीदों पर चलने के संकेत भी दे रहा है। ऐसी स्थिति में यूपी में योगी आदित्यनाथ को हटाकर किसी दूसरे को मुख्यमंत्री बनाना तो फिलहाल संभव नहीं दिख रहा है लेकिन सरकार और संगठन में बदलाव के संकेत जरूर मिल रहे हैं। बस इंतजार वक्त का है।

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