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सरदार पटेल को दलगत राजनीति में घसीटने का घिनौना प्रयास

प्रो प्रदीप माथुर

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नई दिल्ली | बुधवार | 18 दिसम्बर 2024

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी और स्वतंत्र भारत के पहले उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ( 1875 -  1950) का आधुनिक भारत के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान है। ब्रिटिश शासनकाल में भारत कई प्रांतों और तमाम छोटी-बड़ी रियासतों में बंटा था। एक सोचे-समझे षड्यंत्र के अंतर्गत ब्रिटिश सरकार ने कहा कि इन सब प्रांतों और रियासतों को अधिकार होगा कि वे भारत या पाकिस्तान के साथ मिल जाएं या फिर स्वतंत्र रहें। इस तरह अंग्रेज़ शासक भारत के टुकड़े-टुकड़े करके जाना चाहते थे।

भारत के लगभग 550 राज्यों और रियासतों को एकजुट कर देश को नई पहचान देने वाले नेता सरदार वल्लभभाई पटेल थे। सरदार पटेल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे। महात्मा गांधी के वे घनिष्ठ सहयोगी और अनुयायी थे, साथ ही साथ वह एक कुशल प्रशासक भी थे।
यह दुःखद है कि आज राजनीति के कुछ निहित स्वार्थों द्वारा एक राजनीति के तहत उन्हें एक अनावश्यक विवाद का हिस्सा बनाया जा रहा है। यह दावा किया जाता है कि प्रधानमंत्री पंडित नेहरू और सरदार पटेल के बीच प्रतिस्पर्धा या मतभेद थे। यह भी कहा जाता है कि पंडित नेहरू ने उनकी अवमानना और उनके साथ अन्याय किया। वास्तव में यह धारणा बिल्कुल निराधार है।

 

लेख एक नज़र में
सरदार वल्लभभाई पटेल (31 अक्टूबर 1875 - 15 दिसंबर 1950) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता और स्वतंत्र भारत के पहले उपप्रधानमंत्री थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के 550 राज्यों और रियासतों को एकजुट कर देश को नई पहचान दी।
पटेल और पंडित नेहरू के बीच वैचारिक मतभेद थे, लेकिन उनके आपसी सम्मान और संबंधों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। महात्मा गांधी की हत्या के बाद, पटेल ने नेहरू को अपना इस्तीफा देने की पेशकश की, जिसे नेहरू ने अस्वीकार कर दिया।
आज कुछ लोग पटेल की विरासत का उपयोग करके नेहरू के प्रति नकारात्मक धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जो अनुचित है। सरदार पटेल को किसी भी राजनीतिक विवाद का केंद्र बनाना उनके योगदान का अपमान है। हमें उनकी महानता को समझते हुए, उन्हें विवादों से ऊपर रखना चाहिए।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम विभिन्न विचारधाराओं से आए हुए लोगों का सामूहिक प्रयास था। इसमें पारंपरिक सोच रखने वाले भी थे और आधुनिक, प्रगतिशील तथा समाजवादी विचारधारा वाले भी लोग थे। स्वाभाविक था कि इतने विविध दृष्टिकोणों के बीच मतभेद होते। सरदार पटेल और पंडित नेहरू के बीच भी वैचारिक मतभेद थे, लेकिन इनसे उनके आपसी आदर सम्मान और आपसी संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ा। दोनों नेता महात्मा गांधी के प्रिय थे और उनके मार्गदर्शन में काम करते थे।

महात्मा गांधी की हत्या के समय सरदार पटेल गृह मंत्री थे। इस घटना ने पूरे देश को शोक में डाल दिया। सरदार पटेल ने खुद को दोषी महसूस किया क्योंकि वे गांधीजी की रक्षा नहीं कर सके। उन्होंने प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को अपना इस्तीफा सौंपने की पेशकश की। नेहरू ने इसे अस्वीकार करते हुए कहा कि यह हम सबकी सामूहिक विफलता थी, और उन्होंने सरदार पटेल से अपने कर्तव्यों पर डटे रहने का आग्रह किया।
पटेल और नेहरू के बीच पारस्परिक आदर का संबंध था। सरदार पटेल ने नेहरू को हमेशा अपना छोटा भाई माना। एक बार जब गुजरात में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ, तो दूसरे दिन भारी भीड़ उमड़ी। सरदार पटेल ने हंसते हुए कहा, "आज लोग यहां जवाहरलाल नेहरू को देखने आए हैं।" यह उनकी लोकप्रियता को लेकर पटेल की सहज स्वीकृति थी।
जब नेहरू को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव आया, तो पटेल ने इसका समर्थन किया। उम्र में बड़े और स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के कारण, पटेल को यह एहसास था कि नेहरू देश को लंबे समय तक नेतृत्व देने के लिए बेहतर विकल्प हैं।

आज कुछ लोग सरदार पटेल की विरासत का इस्तेमाल करके नेहरू के प्रति नकारात्मक धारणा बनाने की कोशिश करते हैं। यह अनुचित और गलत है। पटेल और नेहरू दोनों स्वतंत्रता संग्राम के दो मजबूत स्तंभ थे। दोनों ने मिलकर भारत को दिशा दी।

सरदार पटेल जैसे महान नेता को किसी भी तरह के राजनीतिक विवाद का केंद्र बनाना उनके योगदान का अपमान है। सरदार पटेल की पुण्यतिथि पर हम यह समझें कि सरदार पटेल जैसा महान नेता किसी भी व्यक्तिगत विवाद, किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा और आपसी लड़ाई-झगड़े से बहुत ऊपर थे। सरदार पटेल को किसी भी तरह से एक राजनीतिक विवाद का या उठापटक का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए।

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