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प्रो प्रदीप माथुर

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नई दिल्ली | गुरुवार | 26 सितम्बर 2024

भारत की राजनीति में हाल के वर्षों में आरोप-प्रत्यारोप और गाली-गलौच का चलन बढ़ गया है। विशेषकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर दिए गए विवादित बयानों ने राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। इन घटनाओं से भारतीय राजनीति में बयानबाजी की संस्कृति को एक नई दिशा मिली है, जो लोकतांत्रिक आदर्शों के विपरीत प्रतीत होती है। इस लेख में हम राहुल गांधी पर विवादित बयानों और गाली-गलौच की बढ़ती प्रवृत्ति का विश्लेषण करेंगे।

हाल ही में, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कुछ नेताओं द्वारा राहुल गांधी को लेकर की गई टिप्पणियां सियासी गलियारों में गरम चर्चा का विषय बनी हैं। खासतौर से, रेल राज्य मंत्री और भाजपा के नेताओं ने राहुल गांधी को "नंबर एक आतंकवादी" कहकर राजनीतिक वाद-विवाद को और भड़काया। यह बयान न केवल व्यक्तिगत आघात था, बल्कि कांग्रेस पार्टी और उनके समर्थकों के लिए भी गहरी चिंता का विषय बना। इस बयान पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भाजपा की आलोचना करते हुए इसे हिंसक राजनीति का प्रतीक बताया और कहा कि यह भाषा देश के सौहार्द और अहिंसा के मूल्यों के खिलाफ़ है।

गाली-गलौच और व्यक्तिगत हमलों का चलन भारतीय राजनीति में नया नहीं है, लेकिन हाल के समय में इसने एक नई गति पकड़ी है। राहुल गांधी ने जब अमेरिका में सिखों और आरक्षण के मुद्दे पर टिप्पणी की, तब भाजपा नेताओं ने उन पर तीखे हमले किए। यह विवाद केवल राहुल गांधी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर भी तीखी आलोचनाएं की गईं। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधते हुए उन्हें "मौत का सौदागर" कहा, जिससे सियासी गलियारों में खलबली मच गई।

 

लेख एक नज़र में
भारतीय राजनीति में गाली-गलौच और आरोप-प्रत्यारोप का चलन बढ़ गया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर दिए गए विवादित बयानों ने राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। भाजपा नेताओं ने राहुल गांधी को "नंबर एक आतंकवादी" कहकर राजनीतिक वाद-विवाद को और भड़काया।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भाजपा की आलोचना करते हुए इसे हिंसक राजनीति का प्रतीक बताया। इस तरह की राजनीति से देश का माहौल और भी अधिक विभाजित हो सकता है, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
राजनीतिक नेताओं को चाहिए कि वे अपने बयानों में संयम और मर्यादा बनाए रखें ताकि भारतीय राजनीति में स्वस्थ और रचनात्मक संवाद की परंपरा बनी रहे।

 

इस गाली-गलौच और आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तब और तेज हो गया जब मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर भाजपा नेताओं की भाषा पर सवाल उठाए। खड़गे ने गांधी परिवार की शहादत का जिक्र करते हुए कहा कि घृणा और हिंसा की राजनीति के चलते महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या हुई। जवाब में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने खड़गे को पत्र लिखकर कांग्रेस नेताओं द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को दी गई 110 गालियों का जिक्र किया।

इन घटनाओं ने यह साफ कर दिया कि भारतीय राजनीति में संवाद की मर्यादा का अभाव हो गया है। जब भाजपा के नेता राहुल गांधी पर व्यक्तिगत हमले करते हैं, तो कांग्रेस भी प्रधानमंत्री मोदी पर तीखे जवाब देती है। यह आरोप-प्रत्यारोप तब और उग्र हो जाता है, जब नेताओं के बयान व्यक्तिगत हमलों में बदल जाते हैं।

भाजपा ने राहुल गांधी पर की गई टिप्पणी को सही ठहराते हुए कहा कि कांग्रेस पहले ही प्रधानमंत्री मोदी को "मौत का सौदागर" कहकर संवाद का स्तर गिरा चुकी है। वहीं, कांग्रेस ने भाजपा की भाषा को अस्वीकार्य और विभाजनकारी करार दिया।

यह सवाल उठता है कि क्या अब राजनीति केवल गाली-गलौच और व्यक्तिगत हमलों पर ही आधारित रह गई है? जब देश के प्रमुख नेता एक-दूसरे पर इस तरह के बयान देते हैं, तो यह आम जनता के लिए गलत संदेश जाता है। ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि राजनेता अपने बयानों में संयम बरतें और व्यक्तिगत हमलों से दूर रहें।

आज की भारतीय राजनीति में भाषा का गिरता स्तर एक चिंताजनक स्थिति है। राहुल गांधी को लेकर भाजपा द्वारा दिए गए विवादित बयानों और कांग्रेस द्वारा प्रधानमंत्री मोदी पर की गई तीखी टिप्पणियों ने यह दिखा दिया है कि राजनीतिक संवाद अब केवल आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित रह गया है। इस तरह की राजनीति से देश का माहौल और भी अधिक विभाजित हो सकता है, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

राजनीतिक नेताओं को चाहिए कि वे अपने बयानों में संयम और मर्यादा बनाए रखें ताकि भारतीय राजनीति में स्वस्थ और रचनात्मक संवाद की परंपरा बनी रहे। गाली-गलौच और व्यक्तिगत हमलों की जगह मुद्दों पर आधारित राजनीति ही लोकतांत्रिक आदर्शों को मजबूत कर सकती है।

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