धर्मनिरपेक्षता और एकता के प्रतीक के रूप में निकाली गई 'राम रहीम यात्रा' एक ऐतिहासिक कदम था, जिसका उद्देश्य देश में शांति और सद्भावना का संदेश फैलाना था। यह यात्रा us महत्वपूर्ण समय में हुई, जब धार्मिक और राजनीतिक तनाव अपने चरम पर थे। इस यात्रा के दौरान कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन इसका मकसद स्पष्ट था – भारत की विविधता को एकजुट करना और धार्मिक विवादों को शांतिपूर्वक सुलझाना। यह यात्रा रामेश्वरम से शुरू होकर अयोध्या तक पहुंची थी, लेकिन समय के साथ यह यात्रा लोगों की यादों से मिट गई। इस लेख में, हम वरिष्ठ राजनेता और प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के निकट सहियोगी मणि शंकर अय्यर के अनुभवों और इस ऐतिहासिक यात्रा की चुनौतियों पर आधारित डॉ सलीम खान के साथ उनकी विशेष बातचीत को जानेंगे, जो हमारे लिए आज भी प्रेरणादायक है।-- संपादक
डॉ सलीम खान : अय्यर साहब, बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने से पहले 'राम रहीम यात्रा' का विचार आपको क्यों आया?
अय्यर साहब: यह विचार तब आया जब चंद्रशेखर जी ने लोकसभा में आकर मुझे बताया कि अयोध्या में बहुत बड़ी मात्रा में ईंटें लाई जा रही हैं, जिससे वहां राम मंदिर बनाए जाने की तैयारी हो रही है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव जी से अपील की कि इस मुद्दे पर ध्यान दें क्योंकि ऐसा लग रहा था कि मस्जिद तोड़ी जाएगी और उसकी जगह मंदिर बनाया जाएगा। मुझे लगा कि जैसे राजीव गांधी ने 1990 में सद्भावना यात्रा निकाली थी, वैसे ही हमें भी कोई कदम उठाना चाहिए। इस समय मुझे लगा कि अगर इस तरह के धार्मिक विवाद को शांतिपूर्वक सुलझाया नहीं गया तो स्थिति बिगड़ सकती है।
डॉ सलीम खान : आपने 'राम रहीम यात्रा' की योजना कैसे बनाई?
अय्यर साहब: मैंने सोचा कि अगर आडवाणी जी अपनी रथ यात्रा रामेश्वरम से अयोध्या तक लेकर जा रहे हैं, तो हमें भी उसी मार्ग पर यात्रा करनी चाहिए, जिससे भगवान राम ने अयोध्या की ओर यात्रा की थी। यह विचार मेरे मन में आया कि यह यात्रा शांति और एकता का संदेश लेकर चले। हालांकि उस समय इस्लाम का अस्तित्व नहीं था, लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना था कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बने रहे। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मैंने यात्रा की योजना बनाई।
डॉ सलीम खान : यात्रा के दौरान आपको कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
अय्यर साहब: यात्रा के दौरान हमने कई कठिनाइयों का सामना किया। लोगों ने हमें रोकने की कोशिश की, लेकिन हम अपनी यात्रा को जारी रखते हुए अयोध्या की ओर बढ़ते रहे। जब मैं फैज़ाबाद पहुंचा, तो मुझे अयोध्या जाने की अनुमति नहीं दी गई। पुलिस ने बताया कि वहां धारा 144 लगाई गई है। मैंने उनसे पूछा कि लाखों कारसेवक बाहर हैं, उन्हें क्यों नहीं रोका जा रहा है जबकि मैं शांति का संदेश लेकर आ रहा हूँ?
डॉ सलीम खान : बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने के बाद का आपका अनुभव क्या था?
अय्यर साहब: 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद ढहा दी गई। मैंने देखा कि प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव जी इस स्थिति से परेशान थे। उन्होंने मुझसे कहा कि वे इस समस्या का शांति से समाधान चाहते थे, लेकिन राजनीतिक दलों ने उनका साथ नहीं दिया। जब मैं वहां पहुंचा तो स्थिति गंभीर थी। राव जी ने महसूस किया कि उन्हें कांग्रेस पार्टी की मदद नहीं मिल रही थी और उनकी स्थिति को संभालना मुश्किल हो गया था।
डॉ सलीम खान : क्या आपको लगता है कि नरसिम्हा राव ने जानबूझकर बी जे पी को फायदा पहुंचाने के लिए बाबरी मस्जिद को ढहने दिया?
अय्यर साहब: नरसिम्हा राव जी की सरकार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने बी जे पी को तुष्टिकरण की कोशिश की, लेकिन जब स्थिति हाथ से निकल गई और देश में दंगा फैल गया, तो उन्होंने राष्ट्रपति शासन लागू करने की कोशिश की। लेकिन यह सब तब हुआ जब बाबरी मस्जिद पहले ही ढहा दी गई थी।
डॉ सलीम खान : राजीव गांधी के ताले खुलवाने की घटना पर आपका क्या कहना है?
अय्यर साहब: राजीव गांधी ने ताले खुलवाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। यह एक षड्यंत्र था जो अरुण नेहरू और वीर बहादुर सिंह द्वारा रचा गया था। ताले खुलवाने का आदेश एक्जीक्यूटिव था, न कि न्यायिक। यह सब बाद में ही पता चला कि यह एक सोची-समझी साजिश थी।
डॉ सलीम खान : 1992 के बाबरी मस्जिद ढहाए जाने और 2024 के चुनाव परिणामों के बीच बदलाव को आप कैसे देखते हैं?
अय्यर साहब: 2024 के चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन अयोध्या में भाजपा जीत गई थी। फैज़ाबाद में भाजपा की हार ने यह साबित किया कि लोगों ने महसूस किया कि भाजपा ने मंदिर निर्माण के लिए सही तरीके से काम नहीं किया। यह हार एक संकेत है कि अगले चुनावों में बदलाव संभव है। मोदी जी को गंभीर रूप से सोचना होगा कि वे अपने वादों को पूरा कर सकते हैं या नहीं।
अय्यर साहब, आपकी यात्रा और अनुभव से यह स्पष्ट होता है कि धर्मनिरपेक्षता और शांति का महत्व हमेशा सर्वोपरि रहेगा। हम आपकी सलाह और अनुभवों के लिए आभारी हैं।
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