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रतन टाटा जो देश के विकास  की प्रेरणा के अनवरत स्रोत थे

प्रशांत गौतम

नई दिल्ली | गुरुवार | 10 अक्टूबर 2024

भारत के महान उद्योगपति और प्रेरणास्रोत रतन नवल टाटा, जिन्होंने अपने लंबे कार्यकाल के दौरान टाटा समूह को एक वैश्विक शक्ति में परिवर्तित किया, का निधन बुधवार रात लगभग 11 बजे मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में हुआ। 86 वर्षीय टाटा जी को हाल ही में निर्जलीकरण की समस्या के कारण भर्ती कराया गया था। उनके निधन ने पूरे देश को शोक में डुबो दिया है, और सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि देने वाले भावुक संदेशों की बाढ़ आ रही है। उनका योगदान और उदारता हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेगी।

रतन टाटा का नाम सुनते ही एक ऐसे इंसान की छवि सामने आती है जिसने अपने जीवन को न केवल बिजनेस की ऊँचाइयों तक पहुँचाया, बल्कि इंसानियत की मिसाल भी कायम की। टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा का जीवन संघर्ष, समर्पण, और उदारता का प्रतीक है। उनका जीवन आज के युवाओं को सीख देता है कि मुश्किलें चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हों, उन्हें पार करने का साहस और जज़्बा होना चाहिए।

रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में हुआ था। बचपन में ही उनके माता-पिता का तलाक हो गया, जिसके बाद उनकी परवरिश उनकी दादी नवजबाई टाटा ने की। एक बच्चे के रूप में, रतन टाटा को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने सपनों का त्याग नहीं किया।



लेख एक नज़र में

रतन टाटा का निधन भारत के लिए एक बड़ा झटका है। वे टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन थे और अपने लंबे कार्यकाल के दौरान टाटा समूह को एक वैश्विक शक्ति में परिवर्तित किया।
उनका जीवन संघर्ष, समर्पण, और उदारता का प्रतीक है। वे एक ऐसे इंसान थे जिन्होंने अपने जीवन को न केवल बिजनेस की ऊँचाइयों तक पहुँचाया, बल्कि इंसानियत की मिसाल भी कायम की। उनका योगदान और उदारता हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेगी।
 रतन टाटा का जीवन एक प्रेरणा है जिसके माध्यम से हमें सीख मिलती है कि सफलता की राह में कठिनाइयाँ तो आती हैं, लेकिन उनका डटकर सामना करना ही असली सफलता है।




रतन टाटा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई से की और बाद में अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर की डिग्री हासिल की। उनके अमेरिका जाने के बाद भी संघर्ष का दौर जारी रहा, जब उन्होंने खुद को आर्थिक रूप से स्थिर करने के लिए छोटी-मोटी नौकरियाँ कीं। लेकिन उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें टाटा समूह में वापस लाकर खड़ा किया।

रतन टाटा ने 1962 में टाटा समूह के साथ अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने सबसे पहले टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर काम किया, जहाँ उन्होंने मजदूरों के साथ मिलकर काम करने का अनुभव प्राप्त किया। ये अनुभव उनके भविष्य के नेतृत्व में महत्वपूर्ण साबित हुए।

1991 में रतन टाटा को टाटा समूह का चेयरमैन नियुक्त किया गया। उन्होंने इस भूमिका में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए, जिनमें टाटा मोटर्स, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), टाटा टी, टाटा केमिकल्स, और टाटा पावर का विस्तार शामिल है। उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने भारतीय ऑटोमोबाइल सेक्टर में 'टाटा इंडिका' और 'टाटा नैनो' जैसी कारों का निर्माण किया, जिसने भारतीय बाजार में क्रांति ला दी।

रतन टाटा का नाम हमेशा उदारता और समाज सेवा से जुड़ा रहा है। उन्होंने अपने व्यक्तिगत संपत्ति का बड़ा हिस्सा दान में दे दिया। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में निरंतर योगदान देते रहे हैं। रतन टाटा ने जरूरतमंदों के लिए कैंसर हॉस्पिटल्स की स्थापना की और बच्चों की शिक्षा के लिए करोड़ों रुपये का योगदान किया।

उन्होंने टाटा ट्रस्ट्स के माध्यम से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनगिनत परियोजनाओं का संचालन किया। कोविड-19 महामारी के दौरान, रतन टाटा ने टाटा ट्रस्ट्स के माध्यम से 1500 करोड़ रुपये का योगदान दिया, जो महामारी से लड़ने में महत्वपूर्ण साबित हुआ। उनकी उदारता और दानशीलता ने उन्हें देश ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में एक महान समाजसेवी के रूप में स्थापित किया।

रतन टाटा की एक और खासियत है उनकी विनम्रता और ईमानदारी। वे हमेशा कहते हैं, “मैं सही निर्णय लेने में विश्वास नहीं रखता, मैं निर्णय लेता हूँ और उन्हें सही बनाता हूँ।” यह विचारधारा ही उन्हें बाकी उद्योगपतियों से अलग बनाती है।

उन्होंने हमेशा अपने कर्मचारियों का ख्याल रखा। 26/11 मुंबई हमले के दौरान, रतन टाटा ने अपने कर्मचारियों और उनके परिवारों की पूरी जिम्मेदारी उठाई। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से उन परिवारों से मुलाकात की और उन्हें मदद पहुँचाई। इस घटना ने उनकी संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का परिचय दिया।

रतन टाटा का जीवन हम सभी के लिए एक प्रेरणा है। उनके संघर्षों से सीख मिलती है कि सफलता की राह में कठिनाइयाँ तो आती हैं, लेकिन उनका डटकर सामना करना ही असली सफलता है। उनकी दानशीलता हमें सिखाती है कि जीवन में हमें दूसरों के लिए भी कुछ करना चाहिए।

आज भी, 86 साल की उम्र में निधन के बाद , रतन टाटा अपने सरल स्वभाव और महान दृष्टिकोण के कारण युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। वे मानते हैं कि असली सफलता दूसरों के जीवन में बदलाव लाने से आती है, न कि सिर्फ अपने लिए काम करने से।

रतन टाटा ने हमेशा भारत को अपनी प्राथमिकता दी। उन्होंने कभी भी भारत को छोड़कर विदेश में बसने की कोशिश नहीं की। वे मानते हैं कि भारत में अपार संभावनाएँ हैं और यहाँ के लोगों के लिए काम करना उनकी सबसे बड़ी सेवा है।

उनके जीवन का हर कदम, हर फैसला और हर योगदान हमें यही सिखाता है कि अगर हम दिल से मेहनत करते हैं और दूसरों के लिए सोचते हैं, तो असंभव भी संभव हो जाता है।

रतन टाटा का जीवन एक ऐसी किताब है जिसमें प्रेरणा के हर पन्ने पर संघर्ष, समर्पण और सफलता की कहानियाँ लिखी हैं। उनकी जिंदगी से हमें यही सीख मिलती है कि चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। रतन टाटा जैसे व्यक्तित्व भारतीय युवाओं के लिए सच्चे आदर्श हैं, जिन्होंने न केवल बिजनेस की दुनिया में बल्कि हर दिल में अपनी खास जगह बनाई है।

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