image

आज का संस्करण

नई दिल्ली , 9 अप्रैल 2024

अनूप श्रीवास्तव

A person with glasses and a blue shirt

Description automatically generated

भाषा के नाम पर कटोरा हाथ मे लेने का समय फिर आ गया। जिसके पास जितना बड़ा कटोरा होता है वह उतना ही बड़ा आदमी समझा जाता है।माना जाता है। जिस हालात मे आम आदमी उल्टा कटोरा लिए खड़ा है वहां सिर्फ सीधा कटोरा लेने वाले की ही पूजा होती है।

  भीख मांगने के लिए  कुछ न कुछ आधार बनाना होता है ।भगवान के नाम पर। जनहित के नाम पर। विकास के नाम पर। कुछ भी न सुझाई पड़े तो साल  में कुछ दिन भाषा के नाम पर।  हम साल भर कटोरा पूरी दुनिया के सामने खड़े रहते हैं। ऐसे में अगर भाषा के नाम पर हम आपके सामने हैं तो क्या बुरा है। भाषा का उद्धार करना, उसको सर्व व्यापी बनाना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।



लेख एक नज़र में

हिंदी भाषा के नाम पर पुन: एक चर्चा शुरू की गई है। हिंदी से सारा भारत एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। हिंदी हमारी मातृ भाषा है, वैज्ञानिक भाषा है, हमारी पहचान है।

 हिंदी हमारी अस्मिता है। हमारे साहित्यिक कटोरों का स्वास्थ्य बना रखना हमारा काम है, और सितम्बर माह में इसका काम हम पूरी शिद्दत से करते हैं। हम अपनी बोली, अपनी भाषा के लिए थोड़ा सा समय निकाल सकते हैं।

हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा देने की मांग आजादी के 75 वर्ष की स्वर्णजयंती पर भी हम नही छोड़ते हैं। हिंदी के नाम पर कुछ कहने सुनने के लिए हमें "हिंदी पखवारा" निकालने की आवश्यकत नही है। हम अपनी भाषा के लिए जल्दी काम करने चाहिए।



            चीन, फ्रांस, अमेरिका, इंग्लैंड, रूस जैसे देश अपनी अपनी भाषा मे व्यस्त रहते हैं। कूप मण्डूक हैं ये सारे देश ।एक हम हैं जो त्याग और तपस्या के स्वयम्भू अवतार हैं। हम अपनी भाषा को त्याग कर औरों की भाषा को सम्बल देते हैं। साल भर अंग्रेजी की उंगली पकड़ कर सीना फुलाये घूमते हैं। तमाम भाषाओं के ट्यूशन क्लासेस चलाते रहते हैं। पद की शपथ भी अंग्रेजी में लेते हैं। अगर ऐसे में सितम्बर भर हम हिंदी का रियल्टी शो (जो रियल नही हो पाता) दिखावा करते हैं तो क्या बुरा करते हैं।

      कहते हैं हिंदी  भाषा एक विचार है। इस विचार को हमने बिचारी बनाकर रख दिया है। पहले हम हिंदी पखवारा मनाते थे,फिर हिंदी सप्ताह मनाने लगे अब हम गर्व से हिंदी दिवस  अंग्रेजी के बैनर लगा के मनाने पर उतर आए हैं।

 सवाल भाषा से ज्यादा कटोरे का है। हम अगर अपनी मातृभाषा को रोमन में लिख पढ़ सकते हैं तो फिर मुंह छिपाने की क्या जरूटी है। हर कटोरे का अपना आकार होता है। साइज़ होती है। आज़ादी के इतने वर्ष बीत गए। ग्लोबल हो गए। क्या अब  भी हम दाल भात तरकारी,रोटी थाली में ही परोसते रहेंगे। बटलोई, भगोना, तसला का जमाना गया। ज़मीन में बैठकर भोजन करने और डाइनिंग टेबिल  चेयर पर लंच करने का तरीका और होता है।

 केले के पत्ते पर खाने,लिट्टी चोखा का खान पान भले फैशन में उतर आया है लेकिन उसे रेगुलर डाइनिंग हाल  में शामिल नही ही कर सकते।

कटोरे की बात ही ओर है। भाषा के हाथ लग जाने पर उसके तेवर ही बदल जाते हैं। हमारे व्यक्तित्व में रोब आ जाता है जब हिंदी के समारोह में हम गर्व से बताते है कि हम  साइन भी हिंदी में करते है। इसके लिए हमारे हिंदी डे के दिन अलग से प्राइज मिलती है। वह दिन हवा हुए जब कटोरे में दूध भात खाने को मिला करता था। अब दूध चम्मच से मिलाया जाता है।

साहित्यकटोरा दानी से ज्यादा मानी हो गया है। जिसके हाथ मे जितना बड़ा कटोरा होता है उसकी उतनी ही बड़ी हैसियत मानी जाती है।

हमारे भोजनालयों में भले ही कटोरा  भले ही खोजे न मिले लेकिन साहित्यिक अकादमियां,संस्थान कटोरों से भरे पड़े है।हर साइज़ के। जैसे ही सितंबर नजदीक आता है सभी के हाथ मे छोटे, बड़े,मंझोले कटोरे दिखाई देने लगते है।

साहित्य में भी हैसियत कटोरे की साइज से मापी जाती है।

जबसे साहित्य   डिजिटल हुआ है।  कटोरे भी डिजिटल हो गए है। पहले हाथ मे कटोरे लेकर चलने में शर्म महसूस होती थी लेकिन जब  से साहित्यिक गतिविधियां भी डिजिटल हुई है। राष्ट्रीय,अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियां,सम्मान समारोह  आन लाइन होने लगे हैं,कटोरे भी मोबाइल,लेपटॉप में सिमट गए है। पुस्तकें,अखबार,पत्रिकाएं पीडीएफ में मिलने लगी हैं। डिजिटल कटोरों का महत्व भी बढ़ गया है। डिजिटल कटोरे में लेने और देने वाले के बीच कोई खतरा नही है। बस  साहित्यिक हैकरों से कटोरा बचा रहे।

 चाहे आन लाइन हो या आफ लाइन हमारा कटोरा उल्टा नही होना चाहिए। बिना कटोरे के साहित्य की कोई विधा नही चल सकती। अब जब साहित्य का डिजिटलकरण हो ही गया है तो  कटोरा ही क्यों वंचित रहे।समय के साथ सभी मे बदलाव जरूरी है।

 

 

 

 

 एक बार फिर इस बात पर  विचार मनन करने का समय आ गया है।    हिंदी संस्थानों ,रेलवे स्टेशनों,  सरकारी प्रचार पटोंऔर तमाम अनुवादित सरकारी सूक्तियों में पढ़ते आये हैं हिंदी से  सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। बस  हमारे साहित्यिक कटोरों का स्वास्थ्य ठीक ठाक बना रहे। और यह काम हम खासतौर से सितम्बर माह में पूरी शिद्दत से करते हैं। बाकी ग्यारह महीनों में भी देश को  डिजिटल सूत्रों में पिरोते रहते हैं। जैसे त्योहारों में हम  पूरे देश को  भाईचारे के सूत्र में, राष्ट्रीय पर्वों पर अखण्डता और एकता के सूत्र में ,चुनाव के समय  विकास और खुशियाली के सूत्रों सूत्र में बांधे रहें ।

           तो आइए  भाषा के नाम पर हम  एक बार फिर  अपने राष्ट्र भाषा के मुद्दे पर कटोरा लेकर निकलें और चीख चीख कर कहें  कि हिंदी हमारी मातृ भाषा है।खुलकर कहें कि  हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है।खुलकर कहें कि हिंदी हमारी पहचान है।

बिना घबराहट के कहें-हिंदी हमारी अस्मिता है। जल्दी कीजिये।हिंदी के नाम पर,हिंदी के डिजिटल कटोरे।में कुछ हिंदी जैसा डाल दीजिए। आखिर साल भर में हम एक बार ही तो अपनी बोली,अपनी भाषा के लिए थोड़ा सा समय निकाल पाते हैं।इसपर नज़र न लगाइए। क्या मातृभाषा के नाम पर हम थैंक यू की जगह  धन्यवादनहीँ बोल सकते। मात्र एक पखवारे  तक के लिए ही। मात्र एक शब्द हिंदी के कटोरे में।

    आजादी के 75 वर्ष की स्वर्णजयंती पर भी हम हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा देने की मांग तक नही दुहरा रहे हैं  ।  आपके  हिंदी में किये गए हस्ताक्षर  को  भी हम मान देते हैं और इतने में ही हिंदी डे मना लेते हैं।

कहना हो तो जल्दी कहिए। करना हो तो जल्दी करिये।  ऐसा न हो कि हिंदी के नाम पर कुछ कहने सुनने के लिए इस साल भी "हिंदी पखवारा" निकल जाए और हिंदी अपनी खाली कटोरा लेकर अगले सितम्बर के लिए आगे बढ़ जाये। और हम एक बार फिर "हिंदी का रियल्टी शो" मनाने से चूक जाएं।

---------------

  • Share:

Fatal error: Uncaught ErrorException: fwrite(): Write of 187 bytes failed with errno=122 Disk quota exceeded in /home2/mediamapco/public_html/system/Session/Handlers/FileHandler.php:407 Stack trace: #0 [internal function]: CodeIgniter\Debug\Exceptions->errorHandler(8, 'fwrite(): Write...', '/home2/mediamap...', 407) #1 /home2/mediamapco/public_html/system/Session/Handlers/FileHandler.php(407): fwrite(Resource id #9, '__ci_last_regen...') #2 [internal function]: CodeIgniter\Session\Handlers\FileHandler->write('c1d5610e41d3e22...', '__ci_last_regen...') #3 [internal function]: session_write_close() #4 {main} thrown in /home2/mediamapco/public_html/system/Session/Handlers/FileHandler.php on line 407