पांच वर्षों के अंतराल के बाद, भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए विशेष प्रतिनिधियों की बैठक इस सप्ताह बीजिंग में आयोजित की गई। इस बैठक में कुछ महत्वपूर्ण सहमतियां बनीं, लेकिन यह स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने के मुद्दे पर अभी भी मतभेद बने हुए हैं।
इसकी सबसे बड़ी मिसाल यह है कि अजित डोभाल और वांग यी की वार्ता के बाद कोई साझा विज्ञप्ति जारी नहीं की गई। इसके बजाय, दोनों देशों ने अलग-अलग वक्तव्य जारी किए। चीन की विज्ञप्ति में उन छह सूत्रों का विस्तार से उल्लेख किया गया, जिन पर वार्ता में सहमति बनी, जबकि भारत की विज्ञप्ति में केवल सामान्य बातें ही शामिल थीं। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों देशों ने सामान्य संबंध बहाल करने की दिशा में आगे बढ़ने का इरादा जताया है और सीमा पर आमने-सामने तैनाती की स्थिति से अपने सुरक्षा बलों को हटाने के लिए 21 अक्टूबर को हुए समझौते को लागू करने का संकल्प दोहराया।
21 अक्टूबर को रूस के कजान में BRICS+ शिखर सम्मेलन के दौरान यह समझौता हुआ था, जिसमें लद्दाख सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सुरक्षा बलों को आमने-सामने तैनाती की स्थिति से वापस हटाने का निर्णय लिया गया था। डोभाल की बीजिंग यात्रा इसी प्रक्रिया की अगली कड़ी थी, और अगले वर्ष वांग यी नई दिल्ली आने वाले हैं।
भारत की ओर से यह जानकारी भी दी गई कि तिब्बत के रास्ते मानसरोवर की यात्रा फिर से शुरू करने पर सहमति बनी है। चीन ने भी भारतीय तीर्थयात्रियों की "शिजियांग" यात्रा को प्रोत्साहित करने की बात कही। यह पहल भारतीय मतदाताओं के लिए एक सकारात्मक संदेश के रूप में देखी जा रही है, क्योंकि पिछले 10 वर्षों में भारतीय विदेश नीति सत्ताधारी पार्टी की घरेलू राजनीतिक जरूरतों से प्रेरित रही है।
चीन की विज्ञप्ति में शामिल छह सूत्रों में से दूसरा बिंदु महत्वपूर्ण है, जिसमें सीमा मुद्दे के उचित और तार्किक समाधान की प्रतिबद्धता दोहराई गई है। यह समाधान 2005 में तय राजनीतिक मार्गनिर्देशों के अनुसार निकाला जाएगा। यह संकेत करता है कि सीमा विवाद का एकमुश्त हल निकाला जाएगा, जिसमें अरुणाचल और लद्दाख दोनों क्षेत्रों का समाधान एक पैकेज के रूप में होगा।
हालांकि, रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि 2019 में भारत के नए राजनीतिक मानचित्र के जारी होने के बाद, चीन ने 2020 में अपने दावों के अनुसार व्यावहारिक कब्जा जमा लिया। विशेषज्ञों का कहना है कि लद्दाख सेक्टर में चीन ने अपने दावे पर 80 से 90 प्रतिशत तक कब्जा कर लिया है।
इस संदर्भ में, यह सवाल उठता है कि क्या चीन ने सीमा विवाद के पश्चिमी हिस्से को अपने दावे के अनुसार हल करने की पृष्ठभूमि बना ली है। हालांकि, भारत सरकार ने यह दावा किया है कि उसने चीन के हाथों कोई जमीन नहीं गंवाई है।
भारत और चीन के बीच बेहतर रिश्ते बनना दोनों देशों और उनकी जनता के हित में है। इस लिहाज से कजान से शुरू हुई प्रक्रिया का आगे बढ़ना राहत की बात है।
हालांकि, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि भारत-चीन संबंधों में सुधार के प्रयासों में बाधा डालने वाली शक्तियां मौजूद हैं। उदाहरण के लिए, 18 दिसंबर को डोभाल-वांग वार्ता से पहले एक भारतीय अखबार में यह खबर छपी कि चीन ने डोकलाम में भूटान की जमीन पर गांव बसा लिए हैं, जबकि भूटान ने स्पष्ट किया था कि ये गांव उसकी सीमा के अंदर नहीं हैं।
इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि भारत-चीन संबंधों में सुधार की हर कोशिश में अड़चन डालने के लिए वैश्विक शक्तियां तैयार बैठी हैं। बीजिंग वार्ता एक सकारात्मक घटनाक्रम मानी जाएगी, और आशा है कि यह सिलसिला अगले वर्ष नई दिल्ली में और आगे भी जारी रहेगा, जिससे दोनों देशों के 2 अरब 80 करोड़ लोगों का हित सध सकेगा।
इस प्रकार, भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को सुलझाने की दिशा में उठाए गए कदम महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इन प्रयासों को सफल बनाने के लिए दोनों देशों को एकजुट होकर काम करना होगा। दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में किसी भी प्रकार के विवाद को सुलझाया जा सके और दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत किया जा सके।
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