कांवड़ यात्रा के विषय में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार का आदेश वास्तव में आश्चर्यजनक है। जिले स्तर पर प्रशासन अपने अधिकार क्षेत्र में जो कर सकता था उसके लिए लखनऊ से आदेश जारी करने की वैसे ही कोई आवश्यकता नहीं थी। फिर इस बात को देश व्यापी मुद्दा बनाने का कोई मतलब भी न था। जबकि इसे शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए एक छोटा सा कदम बताया जा रहा था।
प्रश्न यह है कि क्या योगी जी जैसे राजनीति के चतुर खिलाड़ी को इस आदेश के राजनीतिक असर का अंदाज नहीं था। यदि था तो फिर उन्होंने ऐसा क्यों किया?
सबको पता है कि वर्ष 2017 में भाजपा के सर्वशक्तिमान नेता नरेंद्र मोदी की इच्छा के विरुद्ध योगीजी, लखनऊ में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हो गए और गृहमंत्री अमित शाह के तमाम विरोध के बावजूद अभी भी अपनी कुर्सी बनाए हुए है। पिछले दिनों लोकसभा चुनाव में भाजपा के खराब प्रदर्शन का ठीकरा उनके सर पर फोड़ने का प्रयास हुआ और उनके मुख्यमंत्री पद से हटने की मुहिम फिर रंग पकड़ने लगी।
प्रश्न यह है कि ऐसे समय जब उनकी स्थित वैसे ही कमजोर हो रही है। कांवड़ यात्रा आदेश जैसे विवादास्पद कदम उठाकर योगी जी अपने पैरों पर क्यों कुल्हाड़ी मारेंगे? इसलिए लगता है कि यह आदेश भाजपा के आंतरिक संघर्ष में अपना वरदहस्त बनाए रखने के लिए उनका सोचा समझा राजनीतिक दांव है। लगता यही उन्होंने एक ऐसा पांसा फेंका है जिसमे चाट और पट दोनों में ही उनकी विजय है।
अब यह मामला और तूल पकड़ता है तो केंद्र में हिंदुत्व और राजनीतिक करने वाली मोदी सरकार की स्थित काफी कमजोर होगी। एन.डी.ए के घटक दलों ने इसका मुखर विरोध करना प्रारंभ कर दिया है और बहुमत के लिए उन पर प्राश्चित मोदी सरकार दबाव में है।
लोक सभा सच में विपक्ष और सुप्रीम कोर्ट इस दवाब को और भी बढ़ा रहा है। स्वाभाविक है कि इस दबाव को स्थिति में मोदी शाह की जोड़ी मोदी पर उत्तर प्रदेश की गद्दी छोड़ने का दबाव नहीं डाल पाएगी।
अगर दिल्ली के अपनी स्तिथि सुधारने के लिए मोदी-शाह की जोड़ी दबाव बनाकर योगी का त्यागपत्र ले लेती है। तो मुख्यमंत्री हिंदुत्व राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा बन जाएंगेऔर आर.एस.एस. समर्थित हिंदुत्व राजनीति में उनका स्थान नरेंद्र मोदी से कहीं ऊपर हो जाएगा। आश्चर्य नहीं भाजपा के तमाम नेता जो मोदी से असंतुष्ट हैं। योगी के साथ जुड़कर प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देने में सफल है।
भाजपा के अंदर भीतरी टकराव की जो भी छोटी और दलगत राजनीति है। इससे देश का बहुत नुकसान हो रहा है। समाज का आपसी सौहार्द और अमन चैन खतरे में आ रहा है। ओर आपसी संघर्ष और टकराव बट रहा है। हा अगर भाजपा के अंदर का संघर्ष दोनों पक्षों को कमजोर करके घृणा और सम्प्रदायिक वैमनस्य पर आधारित मोदी सरकार को पतन और हिंदुत्ववादी राजनीति का अंत करता है तो यह अच्छी बात होगी।
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