जब तक यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि प्रधानमंत्री को चीफ जस्टिस के घर बुलाया गया था या वे बिना निमंत्रण के पहुंचे थे, तब तक इस मामले पर पूरी जिम्मेदारी से कुछ भी कहना मुश्किल है। हालाँकि, कुछ खबरें कह रही हैं कि चीफ जस्टिस ने प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया था, लेकिन लगता है कि ये खबरें सही नहीं हैं। यह सब एक तरह की योजना लगती है, और प्रधानमंत्री का चीफ जस्टिस के घर जाना पूरी तरह से एक रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य ज्यूडिशियरी को उनके खिलाफ फैसला देने से रोकना हो सकता है।
अगर प्रधानमंत्री और चीफ जस्टिस के बीच कोई डील हो रही थी, तो उसे सार्वजनिक करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। डील के बारे में बात चुपचाप भी की जा सकती थी। इसी तरह, जब रंजन गोगोई का मामला सामने आया था, तब तक कोई जानकारी नहीं थी। उनकी रिटायरमेंट के बाद ही पता चला कि कुछ गड़बड़ियां थीं, और तब उन्हें एमपी की पेशकश की गई। इसी तरह, यदि दोनों के बीच कोई समझौता हुआ था, तो उसे सार्वजनिक करने की कोई जरूरत नहीं थी।
प्रधानमंत्री ने गणपति पूजा के दिन मराठी कपड़े पहनकर जाकर महाराष्ट्र के वोटर्स को प्रभावित करने की कोशिश की। यह समझना महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री चुनावी लाभ के लिए इस तरह के कदम उठाते हैं। इससे न केवल महाराष्ट्र के वोटर्स पर असर पड़ता है, बल्कि चीफ जस्टिस की स्थिति पर भी दबाव डालने का प्रयास किया गया है। इसका उद्देश्य था कि ज्यूडिशियरी पर दबाव डालकर उनके फैसले को प्रभावित किया जाए।
इस मामले की जाँच करने पर यह साफ होता है कि प्रधानमंत्री की इस तरह की यात्राओं से ज्यूडिशियरी की स्वायत्तता पर असर पड़ सकता है। जब जज की मर्यादा की बात आती है, तो एक आम नागरिक को भी इसका सम्मान करना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि ज्यूडिशियरी अपने निर्णय स्वतंत्र रूप से और निष्पक्ष रूप से लें, चाहे जो भी परिस्थितियाँ हों।
अंततः, यह कहना मुश्किल है कि इस मामले में प्रधानमंत्री की कोई गलती थी या नहीं। लेकिन यह जरूरी है कि इस तरह की घटनाओं से ज्यूडिशियरी की स्वायत्तता और निष्पक्षता को बनाए रखा जाए।
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