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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 22 जनवरी 2024

रमा सहरिया

गवान राम के चारू चरित्र के चितेरे महाकवि तुलसीदासजी ने अपने व्यक्तित्व को राम में ऐसा रमा दिया है कि उन शेष भक्त कवियों की ओर हमारा ध्यान ही नहीं जा पाता जिन्होंने भगवान राम को ही इष्ट देव मान कर उन्हें अपने काव्य का आलंबन बनाया है। यदि ऐसे कवियों की सूची बनाई जाय तो वह शतार्थक होगी जो राम के बनकर ही जिये परन्तु न तो साहित्य के इतिहास में ही उन्हें स्थान मिला और न जनता ही उनके हृदय से निकले सरर्स उद्गारों से अपना तादात्म्य स्थापित कर पाई। यह ठीक है कि महाकवि तुलसी साहित्याकाश के चन्द्रमा हैं और उनके काव्यामृत को चख लेने के बाद फिर कुछ और प्राप्त करने की लालसा नहीं रहती, परन्तु चन्द्रमा की शोभा को तारामंडल सदा द्विगार्णत करता है। इसलिए उन कवियों का भी अपना महत्व है जिन्होंने भगवान राम के चारू चरित्र को चार चाँद लगाने में अपना योगदान दिया है। यहाँ हम ऐसे कुछ कवियों की संक्षिप्त चर्चा करना चाहते हैं।

 

रामजन्म के एक ऐसे ही बधाई-गायकों में रतन हरी जी का नाम उल्लेखनीय है। रतन-हरी पर सूरदास और अष्टछाप के कवियों का अधिक प्रभाव प्रतीत होता है। इन्होंने रामजन्मोत्सव में ढाढ़ा ढाढ़ियों के आगमन, नृत्य और आशीर्वाद कथन का उल्लेख अष्टछावनी परंपरा के अनुरूप ही किया है। रामजन्म का समाचार सुनकर ढोंढ़ी अपनी ढॉढिन से राजा दशरथ के यहाँ चलने का अनुरोध यों करता है -

 

ढ़ादिन चल दशरथ घर जाइये।

दाढी कहे सुनो मेरी प्यारी,

 

जहाँ सकल सिधि पाइये।

 

कंचन, बसन, रतन, भूषणधन, अनगिन असन अधाइये

 

रतन-हरी प्रभुराम जनम की, विमल बधाई गाइये।।

 

इस प्रकार दाढ़ी रूप में जब कवि दशरथ जी के द्वार पर पहुँचता है तो राम को पालने में झूलता देखकर वह अपने नेत्रों का फल पा लेता है और तब दह महारज दशरथ से कहता है

 

हो तो रघुवंशिन को दाढ़ी।

 

सुन दशरथ सुत जन्म दूरते आयो आसा बाढी।

 

तुमरी ही यश गाऊँ, जहाँ जाऊँ पूछो दुनियाँ दाढ़ी ।

 

रतन ही मेरो नाम, राम की लेहूँ बलैयां गाढ़ी।

 

इस भाँति रतन-हरी भी राजा दशरथ से कुछ वैसी ही भाषा में बोलते हैं जैसे सूरदास दृष्ण जन्म के अवसर पर नन्द जी के द्वार पर दाढ़ी बनकर बोले थे। उन्होंने कहा था "हों तो तेरे घर को दाढ़ी सूरदास मेरो नाऊँ।' यही नहीं रतनहारी चलले समय कौशिल्या के पुत्र को आशीष भी उसी ढंग से देते हैं। वे कहते हैं –

कौशिल्या मेया चिरजीबो तेरी छौना।

 

राज समाज सकल सुख सपत्ति अधिक अधिक नित होना ।।

 

मनी जनध्यान धरत निसिवासा, अधिक जन्म पर मोना।

 

रतनहरी प्रभु त्रिभुवन नायक, तें कर लियो खिलोना ।।

 

देख सखी सिर पाग राम के कैसी सोही है।

 

मर्कत गिरि वै चन्द्र चाह चपला जनु मोही है।।

बड़ि बड़ि भुजा बिसाल, विभुषण लाखि तृण तोरी है।

 

सुन्दर नयन विसाल, वदन पर हॉसी थोरी है।।

 

उर मोतियन की माल, कान गल कुंडल जोरी है।

 

नाभि गंभीर उदर त्रिवली लाखि शरद बोरी है।।

 

पीताम्बर की कछनी काछे पीत पिछोरी है।

 

रामगुलाम अनूप रूपलाखि मति मेरी थोरी है।।

 

राम के रूप सौन्दर्य के साथ रामभक्त कवियों ने माता जानकी के सौन्दर्य के अंकन में भी कोई कोर कसर नहीं र माल' के रचयिता नामादास जी ने माता सीता की चाल और सौन्दर्य का वर्णन यों किया है -

 

ठुमकि ठुमकि चलत चाल जनक नन्दिनी।

 

मधुर बचन तो तरे श्रयताप मोचनी।।

 

सोहत नव नील बसन, मन्द हास रूचिर दसन

 

झलकत डर माल सकल देववांदिनी।

नूपुर पगबजत मानों, सामवेद करत गान

 

क्षुद्रधर सचिरनाद डर अनन्दिनी।

 

जगत मात सखिन संग, बिहरत बहुकरत रंग,

 

अग्रदास निरखत छवि भवनिकंदनी ।।

 

अग्रदास जी के राम काव्य में जहाँ कोमल भावों और सौन्दर्य का सुन्दर चित्रांकन हैं वही युद्ध वर्णन में उनकी भाषा का आज भी दर्शनीय हो जाता है। भक्त की एक झाँकी उन्हीं के शब्दों में इस प्रकार है --

 

अब देखों राम ध्वजा फहरानी।

 

हलकत ढ़ाल फरक्कत ने जा गरद उठी असमानी।

 

लक्ष्मण वीर बाल सुत अंगद हनूमान अगवानी।

कहत मन्दोदरी सुन पिय रावण कौन कुमति सिय आनी।

 

परन्तु भगवान राम के तुलसी जैसे प्रबंधात्मक चरित्र-वर्णन का इन कावियों में अभाव है। इनकी वृत्ति प्रायः श्री राम के सौन्दर्य, उनके अंगार, उनकी कृपालुता और उनकी सुकुमारिता के वर्णन में ही अधिक रमी है जो इनके स्फुट पदों में प्रकट होती है। कुछ कवियों ने भगवान राम की दिनचर्या का भी वर्णन किया है -

 

प्रातः समय उटी जनकनन्दिनी त्रिमुवनाथ जगावे।

 

उठोनाथ यमनाथ प्राणयति भूपति भवन बुलावे ।।

 

उरकीमाल गले मोतियन की, कर कंडुन सुरगावे।

 

पूंपरचारी अलके फलके पान के पेच संवारो।।

 

कमलनयन मुखनिराखिराम को आनंद डर न समावें।

 

कान्हरदाम आस रघुवर की, हरख निराखि गण गावे।।

 

इस प्रकार भगवान राम के इन गुण गायक कवियों ने भी अपनी प्रतिभा के स्फुट मुगन राम के चरणारविन्दों में बड़ी श्रद्धा से बढ़ाये हैं। गम काव्य के इन चतुर बितर कदियों को ओर भगवान राम की पावन जयंती पर तो हमारा ध्यान जाना ही चाहिए। हम भगवान राम और उनकी गौरव गरिमा के गायक इन सभी कवि पगदो को प्रणाम करते हैं।

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