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प्रो राम पुनियानी

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नई दिल्ली | बुधवार | 1 जनवरी 2025

दिसंबर 2025 में संसद में चर्चा के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने एक ऐसा बयान दिया जिसने विवाद खड़ा कर दिया। उन्होंने बाबासाहेब अंबेडकर के बारे में कहा कि “अंबेडकर का नाम लेना एक फैशन बन गया है।” यह टिप्पणी न केवल अपमानजनक मानी गई बल्कि इससे कई जगह विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। शाह से माफी की मांग की गई और उनके इस्तीफे की मांग भी जोर पकड़ने लगी।

अपने भाषण में शाह ने दावा किया कि उनकी पार्टी ने अंबेडकर के साथ न्याय किया है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकारों ने जगह-जगह अंबेडकर की मूर्तियां लगवाईं और उनके जन्मदिन को ‘सामाजिक समरसता दिवस’ के रूप में मनाना शुरू किया। लेकिन ‘सामाजिक समरसता’ का यह विचार बाबासाहेब के मूल विचारों के खिलाफ है। अंबेडकर जातियों के बीच समरसता नहीं, बल्कि जाति प्रथा को पूरी तरह खत्म करना चाहते थे। भाजपा के ‘सामाजिक समरसता’ अभियान से जातिविहीन समाज का सपना धूमिल हो सकता है।

 

लेख एक नज़र में
दिसंबर 2025 में गृहमंत्री अमित शाह के एक बयान ने विवाद खड़ा कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि "अंबेडकर का नाम लेना एक फैशन बन गया है।" इस टिप्पणी पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए और शाह से माफी की मांग की गई।
शाह ने दावा किया कि उनकी पार्टी ने अंबेडकर के साथ न्याय किया है, लेकिन उनके विचारों के खिलाफ जाकर 'सामाजिक समरसता' का प्रचार किया। अंबेडकर जाति प्रथा को खत्म करना चाहते थे, जबकि भाजपा जातियों के बीच विभाजन को मजबूत मानती है।
शाह ने कांग्रेस पर अंबेडकर के साथ अन्याय का आरोप लगाया, लेकिन यह सच है कि हिंदू राष्ट्रवादी ताकतों ने उनकी सामाजिक न्याय की लड़ाई का समर्थन नहीं किया।
अंबेडकर ने महिलाओं के अधिकारों के लिए हिंदू कोड बिल तैयार किया था, लेकिन इसका विरोध हुआ। भाजपा का अंबेडकर के प्रति सम्मान केवल दिखावा है, और उन्हें जाति व्यवस्था खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

भाजपा और संघ की विचारधारा दीनदयाल उपाध्याय के ‘एकात्म मानवतावाद’ पर आधारित है, जिसमें समाज को चार वर्णों में बांटा गया है – ब्राह्मण मुख से, क्षत्रिय बाहु से, वैश्य जंघा से और शूद्र पैर से उत्पन्न हुए। संघ-भाजपा के अनुसार, यह सामाजिक विभाजन समाज को मजबूती देता है। अगर भाजपा सच में अंबेडकर का सम्मान करती, तो वह कमजोर वर्गों के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू नहीं करती, जिससे दलित और आदिवासी समुदायों के आरक्षण में कमी आई।

भाजपा के शासन में दलितों और महिलाओं पर अत्याचार की घटनाएं भी कम नहीं हुईं। अगर भाजपा सच में अंबेडकर के सपनों को मानती, तो इन समस्याओं को प्राथमिकता से हल करती।

अमित शाह ने यह भी दावा किया कि कांग्रेस ने अंबेडकर के साथ अन्याय किया। यह आरोप जांचने की जरूरत है, लेकिन यह सत्य है कि हिंदू राष्ट्रवादी ताकतों ने अंबेडकर की सामाजिक न्याय की लड़ाई में उनका समर्थन नहीं किया। 1930 के दशक से भारतीय राष्ट्रीय नेतृत्व ने अछूत प्रथा और जाति व्यवस्था के उन्मूलन को गंभीरता से लिया। महात्मा गांधी ने 1932 के बाद इन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया।

गांधीजी ने अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा दिया और दलित परिवारों को अपने आश्रम में सम्मानजनक स्थान दिया। हालांकि कांग्रेस ने एक बार लोकसभा चुनाव में अंबेडकर के खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा किया था, लेकिन महात्मा गांधी ने यह सुनिश्चित किया कि अंबेडकर को संविधान सभा की मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाया जाए। गांधीजी और नेहरू ने अंबेडकर को अंतरिम सरकार में मंत्री बनाने के लिए भी समर्थन दिया।

अमित शाह ने यह भी कहा कि अंबेडकर ने कांग्रेस सरकार की विदेश नीति और अनुच्छेद 370 के विरोध में मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया था। लेकिन वास्तविकता यह है कि अंबेडकर का इस्तीफा हिंदू कोड बिल के अस्वीकृत होने से जुड़ा था।

अंबेडकर ने हिंदू कोड बिल का मसौदा तैयार किया था, जिसमें महिलाओं की समानता पर जोर दिया गया था। यह बिल विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और बच्चों की अभिरक्षा के मामलों में सुधार लाने का प्रयास था। लेकिन इस बिल का भारी विरोध हुआ। आरएसएस और उसके सहयोगियों ने इसे सनातन धर्म के खिलाफ बताया। बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए और अंबेडकर व नेहरू के पुतले जलाए गए। कांग्रेस के अंदर भी इस बिल का समर्थन कमजोर था, जिससे अंबेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने का निर्णय लिया।

अंबेडकर और संघ परिवार की विचारधाराएं एक-दूसरे के खिलाफ हैं। पिछले कुछ दशकों से भाजपा और संघ दलितों और आदिवासियों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनके कदम केवल प्रतीकात्मक रहे हैं। बाबासाहेब ने संविधान के माध्यम से दलितों को समान अधिकार दिए, और यही कारण है कि दलितों का एक बड़ा वर्ग संविधान का सम्मान करता है।

आरएसएस ने शुरुआत में भारत के संविधान का विरोध किया था। उनके मुखपत्र ‘ऑर्गेनाइजर’ ने 30 नवंबर 1949 को लिखा था कि भारत का नया संविधान ‘भारतीय’ नहीं है। हिंदुत्व के विचारक सावरकर ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए थे।

अमित शाह और उनकी पार्टी का दावा है कि उन्होंने अंबेडकर को उचित सम्मान दिया, लेकिन उनके कदम केवल प्रतीकात्मक हैं। उन्होंने अंबेडकर के सपनों को पूरा करने के लिए कोई ठोस काम नहीं किया। बाबासाहेब ने अपनी पुस्तक “थॉट्स ऑन पाकिस्तान” में लिखा था कि पाकिस्तान का निर्माण हिंदू राज की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करेगा, जिसमें दलितों की स्थिति खराब होगी। आज भाजपा का केंद्रीय एजेंडा हिंदू राष्ट्र की स्थापना है, जो अंबेडकर के आदर्शों – स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और सामाजिक न्याय – के विपरीत है।

अमित शाह और भाजपा का अंबेडकर के प्रति सम्मान दिखाना केवल दिखावा है। अंबेडकर के विचारों और उनके आदर्शों के प्रति सच्ची श्रद्धा दिखाने के लिए जरूरी है कि जाति व्यवस्था को खत्म करने और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के ठोस प्रयास किए जाएं।

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(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया. लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

 

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