मेरे प्रिय हीरो की हत्या के ठीक छः दशक पिछले बुधवार(22 नवंबर ) को हो गए l वे अमेरिका के 35वां राष्ट्रपति थे। साम्राज्यवादी, शोषक अमेरिका में नई जनवादी रोशनी प्रज्वलित करने वाले । उनका आकर्षण यादगार था क्योंकि हम दोनों की जन्मगांठ 29 मई है।
कैनेडी के दो सूत्र स्मरणीय रहेंगे : “मैं डर कर वार्ता नहीं करूंगा। मगर वार्ता करने से डरूँगा नहीं।” दूसरा अर्थ बड़ा उम्दा, सटीक था : “सफलता के कई बाप पैदा हो जाते हैं। विफलता यतीम रह जाती है।”
छबीले, रोबीले, हसीन, छः फुटे कैनेडी को डलास शहर के डीले प्लाजा के पास एक रोड शो में गोली मारी गयी थी। यह शहर नस्लभेद से ग्रस्त रहता था। अभी भी है। दस मील लम्बी सड़क के दोनों ओर दो लाख लोग हर्षध्वनि कर रहे थे।
वह काली रात मुझे याद है। मुंबई के बोरीबंदर में “टाइम्स” भवन की तीसरी मंजिल में हम सारे सब-एडिटर लोग चीफ के चयन से सहमत थे कि जनरल विक्रम सिंह (अगले सेनाधिपति होते), और उनके सहयोगी जनरल नलिन नानावटी की मृत्यु ही लीड स्टोरी हो। उनका हेलीकाप्टर सीमावर्ती क्षेत्र में टेलीफ़ोन के तारों से उलझकर गिर गया था। दोनों जनरल मारे गये थे। मगर अर्धरात्रि को टेक्सास से फ्लेश आया, “कैनेडी शाट।” घंटे भर बाद दूसरा आया : “प्रेसिडेंट ईज एसेसिनेटेड।”
इस युवा डेमोक्रेट सिनेटर का राष्ट्रपति प्रत्याशी बनकर चलाया अभियान हर राजनेता के पाठ्यक्रम में शामिल होना चाहिए। वोटरों की रसोई से लेकर जनसभाओं में, उसने संपर्क किया था। इस पूरी फिल्म को मेरे आग्रह पर अमेरिकी लाइब्रेरी ने लखीमपुर खीरी के युवराजदत्त कॉलेज में दिखाया था। लखनऊ में अमेरिकी लाइब्रेरी उन दिनों यूपी प्रेस क्लब के निकट थी। अब वहां परिवार-अदालत खुल गया है। तब लखीमपुर में मैं राजनीतिशस्त्र के स्नातकोत्तर छात्रों का अध्यापक था। लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ. जीएन धवन ने मुझे वहां भेजा था। कैनेडी का अंतिम वाक्य था उस अभियान में : “अब मैं चुनाव-फल और पहली संतान की प्रतीक्षा बेसब्री से कर रहा हूं।” उन दिनों जैकलिन गर्भवती थीं। वहां से आर्लिंगटन समाधि स्थल केवल पांच किलोमीटर है। कैनेडी की मजार वहां देखने की इच्छा थी। जब 1986 में हम सपरिवार वाशिंगटन गये थे। मगर मेरी हसरत अधूरी रह गई। क्योंकि दिल्ली का जहाज लेना था। वक्त नहीं था। मलाल रह गया।
रूपवान कैनेडी के प्रति नारी का आकर्षण बड़ा सहज था। उनके जन्मदिन पर हॉलीवुड की हसीनतम अभिनेत्री (सेक्सी गुड़िया) मेरिलीन मुनरो ने “हेप्पी बर्थडे” गाया, तो कैनेडी खुद को रोक नहीं पाए। बोल पड़े: “मेरिलीन ! तुम्हारे प्यारे गायन के सामने, राष्ट्रपति पद मेरे लिए कुछ भी नहीं रहा।”
कैनेडी भारत के प्रगाढ़ मित्र थे। जब चीन की लाल सेना बोमडिला हथियाकर, गुवाहाटी की ओर कूच कर रही थी, तो जवाहरलाल नेहरू ने एक ही दिन (19 नवम्बर 1962) दो पत्र कैनेडी को लिखे थे। वे दस हजार अमरीकी वायु सैनिक और बमवर्षक तथा जेट वायुयान तत्काल भेजें, ताकि चीन को रोका जा सके। कैनेडी की चेतावनी से मार्शल अयूब खान ने कश्मीर पर तब हमला नहीं किया। खौफ खाकर माओ ज़ेडोंग ने अपनी लाल सेना लौटा ली। यदि अमरीका के अन्य स्वार्थी राष्ट्रपतियों की भांति कैनेडी भी पाकिस्तान से यारी करने में लगे रहते तो न जाने क्या होता l
कुछ लोग भारत—अमेरिका कूटनीतिक संबंधों की छलभरी व्याख्या करते है। अब उन्हें इस सत्तर-वर्षीय रिश्तों के दरम्यान पेश आये एक परिदृश्य को ताजा करने का वक्त आ गया है।
जवाहरलाल नेहरू की जॉन कैनेडी को सैनिक सहायता की मांग वाला पत्र (नवम्बर 1962) यहां उल्लेखित करना ऐतिहासिक अपरिहार्यता है। इस पत्र को कांग्रेसी विदेश मंत्री कुंवर नटवर सिंह ने अपने प्रकाशन में दर्ज किया था। इसकी प्रतिलिपि वाशिंगटन के भारतीय राजदूत (1962) रहे और प्रधानमंत्री के चचेरे भाई बृजकिशोर नेहरू के दस्तावेजों में है।
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