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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 27 मई 2024

सतीशचन्द्र मिश्र "मधुर"

 

पने भी यह कहावत तुनी होगी :

 

राम राज्य में दूध मिलत है कृष्ण राज्य में घी। कलयुग में चाय मिलत है, फूंक फूंक कर पी ।।

 

हाँ तो जनाब चाय में अनेक गुण है, इस गर्म चाय ने फरिश्तों के भी दिमाग गर्म कर दिये हैं। स्टेशनों पर आप सुनते होंगे, गाड़ी रुकते ही हाय चाय। हाय वाय। ......। की पुकार से वातावरण, किती फुटहे दोल की स्वर की तरह तंगीत के उच्च स्वर ते गुंजित हो जाता है पर जापको अचम्भित होना होगा, की इन 'याय" युग में भी मैं इस चाय ते कितना डरता हूँ। एक लेखक / पत्रकार को चाय से डरते हुए जान, आप उसे अत्च अंग्रेजी क्यान- परस्त युग में ईडियट भी कह सकते हैं। परन्तु मैं तंग आ गया हूँ इस चाय ते। ब्तिी के साथ, किसी के घर जाता हूँ तो सर्वप्रथम मुझे चाय दी जाती है, मुझे ही नहीं हर आगन्तुक, अतिथि, मेहमान का स्वागत गर्म चाय से किया जाता है। मौसम चाहे जो भी हो, उड़ती नाफ गर्म मग को देख मेरे रॉर खड़े हो जाते हैं। इस चाय गर्म को देख मेरी अन्र्तरात्मा कॉप कर यह कहती है "हाय करम"। पर मजबूरी है कह नहीं पाता, क्योंकि जाप महानुभा- वों के बीच अबैता हूँ। यह बीमारी पहले जहरों में थी, परन्तु अब गांवों में श्री इसने अपना कब्जा कर लिया है।



लेख एक नज़र में

 

लेखक ने अपने आर्टिकल में चाय के बारे में सोच-विचार किया है। वह चाय पीने से पहले ही डरते हैं। वे चाय को गरम मानते हैं, जो शरीर को पुष्टि देता है और उसे सक्रिय बनाता है। लेखक चाय के प्रति अपनी प्रेम और सम्मान का वर्णन करते हुए भी उसके खतरे पर ध्यान देते हैं।

वे चाय के साथ जुड़े हुए बीमारियों को भी स्पष्ट करते हैं। वे चाय के प्रति अपनी अनुराग और सम्मान को बताते हुए भी उसके खतरे पर ध्यान देते हैं। वे चाय के साथ जुड़े हुए बीमारियों को भी स्पष्ट करते हैं।

लेखक चाय को गरम मानते हैं, जो शरीर को पुष्टि देता है और उसे सक्रिय बनाता है। वे चाय के खतरे पर भी ध्यान देते हैं। वे चाय के साथ जुड़े हुए बीमारियों को भी स्पष्ट करते हैं।



पहले लोग घी-वाक्कर, हतुवा, मेवा, मिष्ठान, दूध, दही देते थे। पर अब वाय तैयार कर एक एहतान कर देते हैं। एक ताहब गांव गए। फैज़बानों ने खोया-वाक्कर आदि मिठानों ते उनका आदर किया। परन्तु वह वापित आकर बोते, "क्या बाक बातिर की, बाय तक नहीं पिलाई।

 

डाक्टरों का मत है कि जैता भोजन आप करेंगे, वैसा ही शरीर होगा। पर यही बात मैं अपने चायवादी युग के लोगों से हूं तो अच्छी आती बहत गुरू हो जारेगी। चाय शरीर में फुर्ती लाती है। शरीर को पुस्त-दुरस्त बनाती है। अगर कहा गया कि नयों सभी बेराय होते है तो लोग कहते है अरे यार, तो यह ब्लाया क्यों गया तरकार शराब पीना जुर्म मानती है पर उनके ठेके क्यों देती है? मेरे पास जवाब श्री हो तो दे नहीं पाता, क्योंकि अदेता हूँ और यह भी कहा गया है, कि तये शक्तिः कलियुगे। खान पान का अतर होता ही है। देखिए न गर्म चाय का कमाल सभी का दिमाग भी गर्म हो गया है।

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