आकाशवाणी दिल्ली की वरिष्ठ समाचार वाचिका श्रीमती चंद्रिका जोशी आज मेरे नोएडा स्थित निवास पर दो पुस्तकें 'मधुमालिका 'और 'तू या मैं ' भेंट करने आई।वह मुझसे व्यक्तिगत तौर पर पूरे तीस साल बाद मिली थी।पहली मुलाकात तब हुई थी,जब मैंने उसका वर्ष 1992 में आकाशवाणी समाचार वाचक की नियुक्ति के लिए, परीक्षा उपरांत साक्षात्कार लिया था। उस समय मुझे सूचना और प्रसारण मंत्रालय,भारत सरकार ने भारतीय जनसंचार संस्थान,नई दिल्ली के पाठ्यक्रम निदेशक और भारतीय भाषा पत्रकारिता विभाग के संस्थापक अध्यक्ष के नाते साक्षात्कार मंडल में शामिल किया था। वहां मेरे दो और सहयोगी भी थे,जाने माने हिंदी समाचार वाचक स्वर्गीय देवकीनंदन पांडे और हिंदी के प्रसिद्ध साहियकार स्वर्गीय रघुवीर सहाय। दोनों ही कम बोलते थे। मैंने कई अन्य प्रश्नों के बाद चंद्रिका से पूछा - कि तुम सुदर्शन हो,तो दूरदर्शन पर समाचार वाचिका क्यों नहीं बनती हो? इस पर उसने कहा था मुझे आकाशवाणी ही पसंद है। मुझे यह स्पष्ट उत्तर सुन कर अच्छा लगा कि वह अपने व्यवसाय चयन और लक्ष्य के बारे में अभी से स्पष्ट है। अब चंद्रिका पूरे 35 वर्ष आकाशवाणी से जुड़े रहने के बाद अगले वर्ष सेवानिवृत जाएगी। उसने 1989 में हिंदी उद्घोषिका चंद्रिका पंत के रूप में चयन होने के बाद आकाशवाणी के स्टूडियो में प्रवेश किया था और समाचार विभाग में आने के बाद 1993 से लगातार समाचार संपादन,अनुवाद के साथ ही वाचन का काम रही है। इस बीच 2005 में चंद्रिका का चयन रेडियो जापान के हिंदी विभाग में विशेषज्ञ के रूप में हुआ तो करीब 28 महीने रेडियो जापान से समाचार पढ़े,रिपोर्टिंग आदि के काम किए। तोक्यो में कुशलता पूर्वक जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद, आकाशवाणी में फिर से काम शुरू किया -अब आप चंद्रिका जोशी से समाचार सुनिए।
अब बात करते हैं उसके द्वारा भेंट की गई पुस्तकों की।पहली पुस्तक का नाम है -'मधुमालिका' । इसमें चंद्रिका ने अपने स्वर्गीय पिता और प्रतिभाशाली साहित्यकार श्री जीवन चन्द्र पन्त की कविताओं का संकलन किया है।एक पुत्री द्वारा अपने पिता की रचनाएं हिंदी के सुधि पाठकों के सामने लाने का यह पहला प्रयास है,ऐसा मुझे लगता है। यह सच्ची स्मारणांजलि है। इसके गीतों को आगरा की एक संगीत संस्था ने बहुत ही सुंदर भाव से गा कर भी प्रस्तुत किया है।
दूसरी पुस्तक चंद्रिका के भाई श्री गगन पंत की लिखी हुई है। गगन की इस पुस्तक में किशोर प्रेम की धीमे धीमे बढ़ती कहानी, पहाड़ों पर धीरे धीरे रास्ता चढ़ने वाली गति की याद दिलाती है। मुझे इसे पढ़ते हुए स्वर्गीय धर्मवीर भारती की 'गुनाहों का देवता' की याद कोंधने लगी।
मेरा आकाशवाणी से संबंध वर्ष 1957 से है जब मैने अपने जन्मस्थान फतेहपुर शेखावटी के गोरखराम रामप्रताप चमडिया इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण करके जयपुर के विख्यात महाराजा कॉलेज की बीएससी की कक्षा में प्रवेश लिया था। उस समय मेरे कॉलेज के कृष्ण कुमार भार्गव,भारत रत्न भार्गव और वीर सक्सेना भी आकाशवाणी के जयपुर केंद्र से जुड़े थे। आकाशवाणी केंद्र के रेडियो नाटक विभाग के प्रोड्यूसर स्वर्गीय सुरेश श्रीवास्तव ,स्वर्गीय गंगा प्रसाद माथुर,स्वर्गीय नंदलाल शर्मा ने ही लता शर्मा और गोवर्धन असरानी की प्रतिभा को तराशा था,जो बाद में फ़िल्मों में हास्य कलाकार के रूप में स्थापित हुआ। बाद में इस केंद्र के निदेशक बने श्री रोमेश चंद्र जी। वे टाइम्स ऑफ इंडिया के नाट्य समीक्षक भी थे।उन्हें भारत में श्वेत श्याम दूरदर्शन की स्थापना का श्रेय प्राप्त है। उन्होंने दूरदर्शन पर प्रसारण के पहले दिन फोन करके मुझे बुलाया । मैं उस समय दैनिक हिंदुस्तान ,नई दिल्ली के संपादकीय विभाग में काम कर रहा था। उन्होने कहा कि आज हम दूरदर्शन पर प्रसारण शुरू कर रहे हैं,आपको लाइव टेलीकास्ट करना है ,हिंदी में आधा घंटा। मैंने पूछा - विषय क्या है? उन्होंने सरलता से कहा- स्टूडियो में ही बताएंगे,आप तो हर विषय पर बोल लेते हैं । स्टूडियो में मुझे बताया गया कि मुझे भारत के शास्त्रीय नृत्यों पर बोलना है और बताना है कथक की कितनी शैलियां हैं ?उनमें क्या अंतर है?कथकली और मणिपुरी में क्या फर्क है?ओडिसी और भरतनाट्यम का आरंभ कैसे हुआ ,आदि। प्रसारण के बाद उन्होंने मुझे बधाई दी और कहा -इसीलिए तो मैं कई दिनों से आपको ढूंढ रहा था और सुरेश श्रीवास्तव को आपकी खोज में लगा दिया था। बाद में आकाशवाणी और दूरदर्शन के नई दिल्ली केन्द्र में आना जाना लगा ही रहा। ब्यावर राजस्थान के डॉक्टर श्याम शर्मा,रामबिहारी विश्वकर्मा,मधुमालती जी,कुबेर दत्त,कमलिनी दत्त,मधुबाला जुल्का,,अशोक वाजपई, कौशल्या माथुर,मंजू गोयल,कीर्ति जैन, वेद प्रकाश आदि से प्रसारण भवन में ही मुलाकात हुई थी। मेरी पत्नी स्व. डॉक्टर सत्या भी बाद में प्रसारण करने लगीं थीं।
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