जब भी भारतीय सिनेमा के सुनहरे दौर की बात होती है, देव आनंद का नाम सबसे पहले ज़ुबान पर आता है। उनका जन्म 26 सितंबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर में हुआ था। असली नाम धर्मदेव पिशोरीमल आनंद, लेकिन सिनेमा के पर्दे पर वह 'देव आनंद' के नाम से मशहूर हुए। उन्होंने अपनी एक्टिंग, अंदाज़ और दिलकश शख्सियत से फिल्म इंडस्ट्री में अलग पहचान बनाई। अपने ज़माने में वह एक स्टाइल आइकॉन के रूप में उभरे, और आज भी लोग उनकी स्टाइल और एटिट्यूड की तारीफ करते हैं।
देव आनंद का फिल्मी करियर 1940 के दशक में शुरू हुआ। उन्होंने 1946 में 'हम एक हैं' फिल्म से डेब्यू किया, लेकिन उन्हें असली पहचान मिली 1948 की फिल्म 'जिद्दी' से। इसके बाद, उन्होंने 'बाज़ी', 'गाइड', 'जॉनी मेरा नाम', 'हरे रामा हरे कृष्णा' जैसी कई सुपरहिट फिल्में दीं। उनके रोमांटिक अंदाज़ और अदाकारी ने उन्हें युवा दिलों की धड़कन बना दिया था।
देव आनंद का अपना एक अलग स्टाइल था। उन्होंने न सिर्फ अपने कपड़ों से, बल्कि अपने डायलॉग डिलीवरी और बॉडी लैंग्वेज से भी युवाओं को प्रभावित किया। उनका एवरग्रीन व्यक्तित्व और जिंदादिली हमेशा ही चर्चित रही। उनका यह अंदाज़ इतना अनोखा था कि हर नौजवान उनकी स्टाइल को अपनाने की कोशिश करता था।
देव आनंद का चार्म ऐसा था कि उनकी फिल्में सिर्फ सिनेमाघरों में ही नहीं, बल्कि फैशन की दुनिया में भी क्रांति ले आईं। उनका एक काला शर्ट पहनने का अंदाज़ इतना प्रसिद्ध हो गया कि युवा उनके जैसा काला शर्ट पहनकर सड़कों पर घूमने लगे। यह ट्रेंड कुछ ऐसा था कि उनकी हर फिल्म में उनके फैंस उनके पहनावे को कॉपी करने लगे। लेकिन इस पर एक अजीब घटना घटी – भारत सरकार ने उनके काले शर्ट पहनने पर बैन लगा दिया!
ये घटना 1950 के दशक की है, जब देव आनंद की लोकप्रियता चरम पर थी। कहा जाता है कि जब देव आनंद काले शर्ट में बाहर जाते थे, तो उनके फैंस उनकी एक झलक पाने के लिए भीड़ में शामिल हो जाते थे, और कभी-कभी यह भीड़ इतनी बेकाबू हो जाती थी कि भगदड़ की स्थिति पैदा हो जाती थी। उनकी शख्सियत और काले शर्ट की दीवानगी का आलम यह था कि सरकार को सुरक्षा कारणों से यह कदम उठाना पड़ा।
यह भी कहा जाता है कि काले शर्ट में देव आनंद की पर्सनालिटी इतनी जादुई थी कि लोग उनके आकर्षण से खुद को संभाल नहीं पाते थे। इस दीवानगी को देखते हुए देव आनंद ने भी बाद में खुद काले शर्ट पहनना बंद कर दिया, ताकि लोग शांति से रह सकें।
देव आनंद की फिल्मों ने भारतीय सिनेमा को नया रूप दिया। 'गाइड' जैसी फिल्मों में उन्होंने न सिर्फ एक रोमांटिक हीरो की भूमिका निभाई, बल्कि गंभीर और संजीदा विषयों पर भी काम किया। 'गाइड' में उनके द्वारा निभाया गया किरदार आज भी भारतीय सिनेमा के बेहतरीन पात्रों में गिना जाता है।
उन्होंने अपनी फिल्मों में हमेशा समाज से जुड़े मुद्दों पर बात की। चाहे वह युवा पीढ़ी की मानसिकता हो, या फिर समाज के ठहरे हुए विचारों को चुनौती देना। देव आनंद की फिल्में हमेशा अपने समय से आगे रही हैं। वह केवल एक अभिनेता ही नहीं, बल्कि एक निर्देशक और निर्माता भी थे। उन्होंने 'नवकेतन फिल्म्स' की स्थापना की, जो उनकी कई हिट फिल्मों का गढ़ बना।
देव आनंद का सिनेमा के प्रति प्यार और समर्पण जीवन भर बना रहा। उन्होंने अपने करियर में लगभग 114 फिल्मों में काम किया और सिनेमा की दुनिया में कई नई धाराएं शुरू कीं। उन्होंने कभी अपने जीवन में ठहराव नहीं आने दिया और हमेशा खुद को नए जमाने के साथ जोड़ा। उनकी आखिरी फिल्म 'चार्जशीट' 2011 में रिलीज़ हुई थी, जब वह 88 साल के थे।
देव आनंद का कहना था, "ज़िन्दगी में पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए।" उनका यह फॉर्मूला ही उनकी ज़िन्दगी की कुंजी थी। वह हमेशा आगे बढ़ते रहे, और यही वजह थी कि उन्होंने कभी किसी नकारात्मकता को अपने जीवन में हावी नहीं होने दिया।
3 दिसंबर 2011 को देव आनंद का लंदन में निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। वह सिनेमा जगत के ऐसे सितारे थे, जिन्होंने अपनी कला, स्टाइल और जिंदादिली से लाखों दिलों पर राज किया। उनकी फिल्में, उनका अंदाज़, और उनका जीवन आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।
उनकी ज़िन्दगी का यह किस्सा कि उन्हें काले शर्ट पहनने पर बैन लगाया गया था, यह दिखाता है कि वह केवल एक अभिनेता नहीं, बल्कि एक ऐसा व्यक्ति थे, जिनकी मौजूदगी का असर समाज पर गहरा था। देव आनंद का जन्मदिन उनके फैंस के लिए एक खास मौका होता है, जब वे उनकी यादों को ताज़ा करते हैं और उनकी फिल्मों को फिर से जीते हैं।
देव आनंद एक ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दी। उनका स्टाइल, उनकी फिल्में और उनका व्यक्तित्व आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके समय में था।
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