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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 29 अप्रैल 2024

डॉ॰ सलीम ख़ान

A person with a beard and glasses

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देश के राजनीतिक क्षितिज पर राष्ट्रीय चुनाव के बादल छाए हुए हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम की गड़गड़ाहट है। जस्टिस संजीव खन्ना के सवाल पर कि वे क्या चाहते हैं? ईवीएम विरोधी वकील प्रशांत भूषण का जवाब था कि पहले बैलेट पेपर पर वापस जाएँ या वीवी पैट के साथ 100 प्रतिशत मिलान करें। जस्टिस संजीव खन्ना ने सॉफ़्टवेयर या मशीन में मानवीय हस्तक्षेप से होने वाले अनधिकृत बदलावों को रोकने के लिए सुझाव माँगे। तो प्रशांत भूषण ने मतदाताओं को वीवी पैट पर्चियाँ देने का आह्वान किया और कहा कि मतदाताओं को इसे मतपेटी में डालने का अवसर दिया जाना चाहिए क्योंकि वर्तमान में केवल सात सेकंड के बाद यह स्लिप अपने आप गिर जाती है। वकील संजय हेगड़े ने भी ईवीएम पर पड़े वोटों का मिलान वीवी पैट पर्चियों से करने की माँग की। इस पर आगे आए सरकारी वकील गोपाल शंकर नारायण ने बहानेबाज़ी करते हुए कहा कि चुनाव आयोग के मुताबिक़ सभी वीवी पैट पर्चियों की गिनती में 12 दिन लगेंगे। यह बचकाना तर्क है, उन्हें गिनना वोट देने से भी आसान काम है। यदि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में एक दिन के भीतर वोट डाला जाता है, तो गिनती में 12 दिन नहीं लग सकते। इस बहाने 70 दिनों से प्रचार कर रही सरकार की दाढ़ी में छिपा तिनका सामने आ जाता है।



लेख एक नज़र में

 

राजनीतिक क्षितिज पर राष्ट्रीय चुनाव के बादल छाए हैं, परंतु सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम की गड़गड़ाहट है। ईवीएम के खिलाफ विरोधी वकील प्रशांत भूषण ने सुझाव दिया कि पहले बैलेट पेपर पर वापस जाएँ या वीवी पैट के साथ 100 प्रतिशत मिलान करें। जस्टिस संजीव खन्ना ने सॉफ्टवेयर या मशीन में मानवीय हस्तक्षेप से होने वाले अनधिकृत बदलावों को रोकने के लिए सुझाव माँगे।

 

ईवीएम में गायब होने का मुद्दा भी खुला हुआ है, जिसमें 2018 से चलती हुई 19 लाख ईवीएम अभाव में है। ईवीएम के गायब होने से संबंधित एक बड़ा सवाल उठता है कि ‘ईसी’ पेपर को निबटाने की इतनी जल्दी क्या थी? ईवीएम से सम्बन्धित चुनाव आयोग से आरटीआई कार्यकर्ता मनोरंजन राय के सवालों के जवाब में होने वाले रहस्योद्घाटन मशीन पर बहुत बड़ा सवालिया निशान लगाते हैं।

 

ईवीएम से सम्बन्धित ख़रीदारी, इस्टोरेज और तैनाती में गहरी विसंगतियाँ उजागर की गई हैं और 116.55 करोड़ रुपये की गंभीर विसंगति भी उजागर की गई है। चुनाव आयोग ने ईवीएम को 536 करोड़ एक लाख 75 हज़ार 485 रुपए अदा किए, पर 20 सितंबर 2018 को बीईएल ने कहा कि उसने चुनाव आयोग से 652 करोड़ 56 लाख 44 हज़ार रुपये का भुगतान किया गया। सवाल यह है कि 116.55 करोड़ रुपये का अधिक भुगतान क्यों हुआ?

 

ईवीएम समस्या का पुनर्जन्म है। पिछले चुनाव से पहले भी, अप्रैल 2019 में 21 विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में मशीनों की ख़राबी और उनके उलट होने की चेतावनी दी थी। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी पेपर बैलेट से चुनाव कराने की माँग की थी, लेकिन सभी राजनीतिक पार्टियाँ इसे भूल गईं। अब ईवीएम के साथ संबंधित सवाल उठाने वाले सभी लोगों को संतुष्ट नहीं हैं।



 

 

जस्टिस दीपांकर दत्ता ने प्रशांत भूषण से ईवीएम पर अविश्वास का डेटा माँगा और एक निजी सर्वे को मानने से इनकार कर दिया। इस संबंध में एक बड़ा मुद्दा ईवीएम मशीनों का ग़ायब होना और दूसरा छह महीने के भीतर पर्चियों का निबटान है। ऐसे में सवाल उठता है कि ‘ईसी’ पेपर को निबटाने की इतनी जल्दी क्या थी?’ ईवीएम से सम्बन्धित चुनाव आयोग से आरटीआई कार्यकर्ता मनोरंजन राय के सवालों के जवाब में होने वाले रहस्योद्घाटन मशीन पर बहुत बड़ा सवालिया निशान लगाते हैं। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) दो सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियाँ हैं जो ईवीएम बनाती हैं। इन दोनों ने चुनाव आयोग को 19 लाख से ज़्यादा ईवीएम उपलब्ध की हैं लेकिन चुनाव आयोग के पास इनके प्राप्त होने का सही रिकार्ड मौजूद नहीं है। यह मामला 2018 से बॉम्बे हाई कोर्ट में लंबित है और चुनाव आयोग गोल-मोल जवाब दे रहा है।

मनोरंजन राय की आरटीआई के जवाब में 21 जून 2017 को चुनाव आयोग ने माना कि उसे 1989-1990 और 2014-2015 के दौरान बीईएल से 10 लाख पचास हज़ार ईवीएम मिली थीं। इसी तरह 1989-1990 से 2016-2017 के बीच ईसीआईईएल (ECIAL) से 10 लाख 14 हज़ार 644 ईवीएम प्राप्त हुईं । इसके उलट 2 जनवरी 2018 को बीईएल के जवाब में कहा गया कि उन्होंने 1989-1990 और 2014-2015 के बीच चुनाव आयोग को 19 लाख 69 हज़ार 932 ईवीएम उपलब्ध कराईं । इसी तरह, 16 सितंबर 2017 को आरटीआई के जवाब में ईसीआईएल ने कहा कि उन्होंने 1989-1990 और 2014-2015 के बीच चुनाव आयोग को 1944 हज़ार 593 ईवीएम प्रदान कीं। चुनाव आयोग को 964 हज़ार 270 ईवीएम नहीं मिली हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक़, ग़ायब ईवीएम की कुल संख्या क़रीब 19 लाख है, इनमें से 62,183 ईवीएम ऐसी हैं जिनके बारे में बीईएल ने दावा किया था कि इन्हें 2014 में चुनाव आयोग को भेजा गया था, लेकिन चुनाव आयोग ने इससे इनकार कर दिया था। तो सवाल यह है कि वे मशीनें कहाँ गईं?

आरटीआई की जानकारी ने ईवीएम से सम्बन्धित ख़रीदारी, इस्टोरेज और तैनाती में गहरी विसंगतियाँ उजागर की हैं तथा 116.55 करोड़ रुपये की गंभीर विसंगति भी उजागर की है 2006-2007 से 2016-2017 के दरमियान चुनाव आयोग ने बीईएल को 536 करोड़ एक लाख 75 हज़ार 485 रुपए अदा किए जबकि 20 सितंबर 2018 को बीईएल के आरटीआई के जवाब में यह दावा किया कि इसको इस अवधि में चुनाव आयोग से 652 करोड़ 56 लाख 44 हज़ार रुपये का भुगतान किया गया। सवाल यह है कि 116.55 करोड़ रुपये का अधिक भुगतान क्यों हुआ ? चुनाव आयोग ने 21 जुलाई 2017 को कहा था कि उसने ईवीएम को स्क्रेप (मशीनी कचरे) के तौर पर नहीं बेचा और 1989-1990 में ख़रीदी गई ईवीएम को मैनुफ़ैक्चरर्ज़ से तबाह करवाया गया। चुनाव आयोग को 2000-2005 में जो ईवीएम मिली थीं वे या तो पुरानी थीं या फिर सुधार योग्य नहीं थीं। संयोग से यह अटल जी का ज़माना था। वैसे मनोरंजन राय का ख़याल है कि ज़्यादातर ग़ायब ईवीएम अब भी चुनाव आयोग के पास हैं। अगर ऐसा है तो सवाल यह कि उनका क्या ‘उपयोग’ हो रहा है?

पिछली सुनवाई में वीवी पैट पर्ची और ईवीएम मुद्दे पर दायर एक अन्य याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर जवाब माँगा था। अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अरुण कुमार अग्रवाल ने वीवी पैट पर्चियों के माध्यम से केवल 5 अनियमित (Random) रूप से चयनित ईवीएम के प्रमाणीकरण की वर्तमान पद्धति के ख़िलाफ़ चुनावों में वीवी पैट पर्चियों की पूरी गिनती की माँग की थी। अधिवक्ता नेहा राठी ने वीवी पैट प्रमाणन में अनुचित देरी के तर्क को ख़ारिज कर दिया, कहा कि भारत का चुनाव आयोग एक साथ 50 वीवी पैट से पेपर पर्चियों की गिनती के लिए तीन टीमों में 150 अधिकारियों को आसानी से तैनात कर सकता है और प्रत्येक वीवी पैट इसके बजाय 5 घंटे में गिनती पूरी कर सकता है। जबकि ईसीई का बहाना था कि इसमें 250 घंटे यानी करीब 11-12 दिन लगेंगे। सबसे पहले जब एन. चंद्रबाबू नायडू ने 50 प्रतिशत भौतिक गिनती की माँग की, तो चुनाव आयोग ने इसका विरोध करते हुए एकमात्र कारण बताया कि इसमें समय लगता है, 50 प्रतिशत वोटों की गिनती में 6 से 8 दिन लगेंगे। दुर्भाग्य से कि इस त्रुटिपूर्ण तर्क को स्वीकार कर लिया गया।

यह ईवीएम समस्या का पुनर्जन्म है। पिछले चुनाव से पहले भी, अप्रैल 2019 में, 21 विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में मशीनों की ख़राबी और उनके उलट होने की चेतावनी दी थी। नेताओं ने प्रदर्शन पर संदेह व्यक्त करते हुए चुनाव आयोग की आलोचना की थी। दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में मीडिया के सामने ईवीएम की पोल खुली, लेकिन फिर वे पाँच साल के लिए सो गए। उस समय काँग्रेस के अभिषेक मनुसिंघवी ने आरोप लगाया कि लाखों वोटरों के नाम बिना किसी वेरिफ़िकेशन के वोटर लिस्ट से हटा दिए गए। उन्होंने कम से कम 50 वीवी पैट की गिनती के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने की बात कही थी। आँध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन॰ चंद्रबाबू नायडू ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए फ़ैसले पर असंतोष जताया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि चुनाव के पहले चरण में बड़े पैमाने पर ईवीएम में गड़बड़ी हुई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी पेपर बैलेट से चुनाव कराने की माँग की थी, लेकिन सभी राजनीतिक पार्टियाँ इसे भूल गईं ।

अपनी यात्रा के अंत में राहुल गाँधी ने मुंबई में एक सार्वजनिक संबोधन में ईवीएम का मुद्दा उठाया और कहा कि ‘राजा की जान मशीन में है।’ इसके बाद काँग्रेस के घोषणापत्र में भी 100 प्रतिशत वीवी पैट का वादा किया गया। ईवीएम द्वारा डाले गए वोटों के सत्यापन के लिए वीवी पैट पर्चियों की गिनती के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के भीतर अनियिमत रूप से केवल पाँच चयनित मतदान केंद्रों से वीवी पैट पर्चियों के सत्यापन का आदेश दिया है, लेकिन लोग इससे संतुष्ट नहीं हैं। चुनावी धोखाधड़ी से बचने के लिए वीवी पैट काग़ज़ की पर्ची मतदाता को सात सेकेंड के लिए दिखाई जाती है और उसके बाद वह स्वचालित रूप से बंद बक्से में गिर जाती है। इन पर्चियों का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के ऑडिट के लिए किया जा सकता है।

पिछली बार सरकार ने क़रीब 24 लाख मतदाताओं के पेपर ऑडिट के लिए क़रीब 5000 करोड़ रुपये आवंटित किये थे, लेकिन सिर्फ़ 20 हज़ार पर्चियों का ही सत्यापन किया। चुनाव आयोग के इस बहाने को ख़ारिज करते हुए पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई क़ुरैशी ने कहा कि सभी वीवी पैट पर्चियों को गिनने में एक दिन से अधिक का समय नहीं लगेगा, इसलिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणाली को लेकर उठाए गए संदेह को दूर करने के लिए ठोस सकारात्मक कार्रवाई की जानी आवश्यक है। सरकार के पिंजरे का तोता चुनाव आयोग अपने मालिक की इच्छा के विरुद्ध इस उचित माँग को कैसे मान सकता है? लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड की तरह सुप्रीम कोर्ट ने कोई नया धमाका कर दिया तो चन्द्रगुप्त और चाणक्य दोनों के पैरों तले से धरती खिसक जाएगी और उन्हें दिन में तारे दिखाई देने लगेंगे।

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