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डॉ. सलीम ख़ान

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मुंबई | बुधवार | 4 दिसम्बर 2024

त्तर प्रदेश के संभल में हुई सांप्रदायिक हिंसा ने राज्य सरकार और प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए हैं। इस घटना में सरकार पर आग को भड़काने के आरोप लगे, लेकिन न्यायपालिका ने मामले को गंभीरता से लेते हुए अपने निर्णयों से शांति स्थापित करने की कोशिश की।

सुप्रीम कोर्ट ने संभल की घटना के मद्देनजर जामा मस्जिद के सर्वे पर रोक लगाते हुए सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने का संदेश दिया। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने सभी संबंधित पक्षों को शांतिपूर्ण माहौल में अपनी बात रखने का समय देने का आदेश दिया। बेंच ने मस्जिद के सर्वे से संबंधित रिपोर्ट को सीलबंद रखने का निर्देश दिया और निचली अदालतों को स्पष्ट दिशा-निर्देश न मिलने तक कोई कार्रवाई करने से रोक दिया।

मुख्य न्यायाधीश ने अपने आदेश में शांति और निष्पक्षता बनाए रखने पर जोर दिया। उन्होंने कहा, "शांति और सौहार्द बनाए रखना होगा। हमें पूरी तरह निष्पक्ष रहना होगा।" यह आदेश न केवल स्थानीय प्रशासन को सख्त संदेश है, बल्कि पूरे देश के लिए एक उदाहरण भी है।

संभल में 19 नवंबर को एक सोची-समझी साजिश के तहत सिविल कोर्ट ने जामा मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया। यह आदेश उसी दिन लागू भी कर दिया गया, लेकिन हिंसा नहीं हुई। इसके बाद 24 नवंबर को एक बार फिर सर्वे टीम मस्जिद पहुंची, जिसके बाद हिंसा भड़क उठी। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच संघर्ष में छह युवक पुलिस फायरिंग में मारे गए।

 

लेख एक नज़र में
उत्तर प्रदेश के संभल में हालिया सांप्रदायिक हिंसा ने राज्य सरकार और प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जामा मस्जिद के सर्वे पर रोक लगाते हुए शांति बनाए रखने का आदेश दिया, जिसमें सभी पक्षों को शांतिपूर्ण बातचीत का अवसर देने की बात की गई।
हिंसा के दौरान छह युवक पुलिस फायरिंग में मारे गए, जिसके बाद मुस्लिम समुदाय ने प्रशासन पर आरोप लगाए। समाजवादी पार्टी ने मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने की मांग की है। इस घटना के मद्देनजर, योगी सरकार ने न्यायिक जांच के लिए एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया।
न्यायपालिका के फैसले ने एक सकारात्मक संदेश दिया है, लेकिन प्रशासन की निष्क्रियता और सरकार की चुप्पी ने कानून-व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। यह मामला पूरे देश के लिए प्रशासनिक और न्यायिक सतर्कता की आवश्यकता को उजागर करता है।

 

मुस्लिम समुदाय ने इस घटना का विरोध किया और इसे प्रशासन की शरारतपूर्ण कार्रवाई करार दिया। समाजवादी पार्टी ने हिंसा में मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा देने की मांग करते हुए योगी सरकार पर आरोप लगाया कि प्रशासन ने जानबूझकर सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया।

जामा मस्जिद कमेटी के वरिष्ठ वकील हुदैफा अहमदी ने 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का हवाला देते हुए मस्जिद के सर्वे के आदेश को चुनौती दी। उन्होंने कहा कि इस अधिनियम के तहत 1947 से पहले के पूजा स्थलों का न तो सर्वे किया जा सकता है और न ही उनका स्वरूप बदला जा सकता है।

उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां के सर्वे के बाद मस्जिद का स्वरूप बदल गया है और अब वहां पूजा हो रही है। अहमदी ने देश के अन्य लंबित मामलों पर चिंता व्यक्त करते हुए अदालत से ऐसे आदेशों पर रोक लगाने की मांग की।

सुप्रीम कोर्ट के बढ़ते दबाव के चलते योगी सरकार ने संभल हिंसा की न्यायिक जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया। इस समिति की अध्यक्षता इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज देवेंद्र कुमार अरोड़ा करेंगे। समिति में पूर्व आईएएस अधिकारी अमित मोहन और पूर्व पुलिस प्रमुख अरविंद कुमार जैन शामिल हैं।

इस बीच, समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने सरकार पर हमला करते हुए हिंसा के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की। समाजवादी पार्टी ने मृतकों के परिजनों को आर्थिक मदद की घोषणा की और सरकार से उचित मुआवजा देने का आग्रह किया।

संभल मामले ने न्यायपालिका के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी की है। मुख्य न्यायाधीश के आदेशों के बाद यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट इस मामले में कितना प्रभावी कदम उठाता है।

इस घटना ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि सांप्रदायिक मुद्दों पर प्रशासनिक और न्यायिक सतर्कता कितनी आवश्यक है। न्यायपालिका के फैसले से एक सकारात्मक संदेश गया है, लेकिन प्रशासन की निष्क्रियता और सरकार की चुप्पी ने राज्य की कानून-व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।

संभल हिंसा पर न्यायिक निगरानी और निष्पक्ष जांच के साथ शांति बहाली के प्रयास करना न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश के लिए एक जरूरी उदाहरण साबित होगा।

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