आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी,
ना जाने क्यों आजकल जब भी आप बहुत गंभीरता से कोई बात कहते हैं तो चुटकुला सा लगता है।
जैसे इंडिया नाम के विरोधी दलों के गठबंधन को आपने देश-विरोधी और परिवारवादी दलों का गठजोड़ बता दिया।
यह इसलिए थोड़ा अजीब लगा कि आपने १५ अगस्त २०२३ के राष्ट्र के नाम सम्बोधन से अपने हर भाषण में "मेरे प्रिय परिवार जनों" कहना शुरु कर दिया है तो सबसे बड़ा परिवारवादी कौन हुआ?
इसी तरह जाति जनगणना की घोषणा होते ही आपने कह दिया यह देश को तो तोड़ने की साज़िश है।
कैसे सर कैसे?
जब इतने सालों से हिन्दू मुस्लिम जनसंख्या की भ्रामक आंकड़ों द्वारा तुलना करके लोगों को डराया जा रहा है कि बहुसंख्यक हिन्दू बड़ी जल्दी (कुछ सदियों में) अल्पसंख्यक हो जायेंगे और मुस्लिम बहुसंख्यक होकर आप पर राज करने लगेंगे।क्या ये देश को जोड़ने की दिशा में क़दम है?
कैसे सर कैसे?
कम से कम जातीय जनगणना कराने वाले कमजोर वर्गों को पाकिस्तान भेजने की बात तो नहीं कर कर रहे हैं बल्कि उन्हें और मजबूत करने की सिफारिश कर रहे हैं।इसमें देश के टुकड़े करने की बात कहां से आ गईं।
और क्या अभी तक आपकी पार्टी भी अन्य पार्टियों की तरह जाति के आधार पर टिकट नहीं दें रही है?
और हां याद आया।
अभी एक महीना भी नहीं हुआ कि जब आपकी पहल पर भारत के इतिहास में पहली बार संसद के दोनों सदनों ने महिला आरक्षण बिल सर्व सम्मति से पारित कर दिया जिसमें महिलाओं के लिए संसद और विधानसभाओं में एक तिहाई सीटों के आरक्षण की बात कही गई है।
वैसे तो हम आधी आबादी को पचास प्रतिशत आरक्षण देना चाहते थे। खैर।
इसके लिए आपकी सरकार ने ही २०२६ तक जनगणना करने की घोषणा की है हालांकि दूसरे दल चाहते थे ये आरक्षण तत्काल लागू होना चाहिए था। लेकिन किसी भी व्यक्ति या दल ने इस जनगणना को देश के टुकड़े टुकड़े करने का षडयंत्र नहीं बताया।
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