बच्चों के सशक्तिकरण का सार्थक माध्यम
नई दिल्ली | मंगलवार | 15 अक्टूबर 2024
( नुक्कड़ की पाठशाला लेखिका प्रतिमा मेनन की हाल ही में प्रकाशित एक पुस्तक है। आशा है यूनाइटेड स्टेट्स इंडिया एजुकेशन फ़ाउंडेशन द्वारा फुल्ब्राईट स्कॉलर से सम्मानित प्रतिमा मेनन का ये नाटक संकलन भी वैसी ही सफलता पाएगा जैसी उनकी पहली पुस्तक 'क्या कहूँ तुमसे' को मिली थी।
प्रकाशकः ब्लू रोज़ पब्लिशर्स मूल्य Rs. 225 ~ संपादक)
दुनिया के साहित्य में अपनी बात कहने का, अपनी अभिव्यक्ति को औरों के सामने परिभाषित का पहला माध्यम नाटक ही रहा है।
इसके कई कारण हैं।पहला, कि देखना विश्वास करने का सबसे विश्वसनीय तरीक़ा है।न्यायालय भी सुनी सुनाई बातों को गवाही नहीं मानता लेकिन दृश्य को उसे सबूत मानना ही पड़ता है।
दूसरा, किसी परिस्थिति को या कृत्य को अपनी आँखों से देखने का असर (impact) बहुत लम्बे समय तक रहता है कई बार उम्र भर।
लेकिन इस क्रम में भी नुक्कड़ नाटक का एक विशेष स्थान है क्योकि इसको करने में विशेष स्टेज या साजो सामान की व्यवस्था नहीं करनी पड़तीं।और ये कहीं भी किया जा सकता है।एक तरह से नुक्कड़ नाटक मोबाइल स्टेज है और इसका मंचन आम जनता या भीड़ के बीच आराम से किया जा सकता है।
नुक्कड़ की पाठशाला की विशेषता ये है इस किताब में लिखे सारे नाटक स्कूल के बच्चों के लिए लिखे गए हैं। इसका कारण ये भी है कि प्रतिमा मेनन ख़ुद केंद्रीय विद्यालय में बच्चों को पढ़ाती थीं और 2020 में प्रिन्सिपल के पद से इस्तीफ़ा देकर अपने पिता पद्मश्री अवधेश कौशल की देहरादून में स्थापित सामाजिक संस्था 'रुरल लिटिगेशन एंटायटल्मेंट केन्द्र' का उनकी मृत्यु के बाद से संचालन कर रही हैं।
उनसे हाल ही में इसी संस्था के दफ़्तर में हुई चर्चा में प्रतिमा जी ने बताया कि जो बात बच्चों को बचपन में बताई जाती है वो उनको उम्र भर नहीं भूलती।इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण भी हैं।
इस नाटकों के संकलन में शायद ही कोई ऐसा विषय है जो लेखिका से अछूता रह गया हो। चाहे वो दहेज प्रथा हो,यौन उत्पीड़न हो,पानी की समस्या हो,प्लास्टिक का प्रदूषण हो,बोर्ड के परिणाम के बाद साइंस या आर्ट्स लेने की बात हो या स्वच्छता हो सभी पर बड़ी ही साधारण और दिल को छू लेने वाली भाषा में नाटक लिखे गए हैं जिनका मंचन उन्होंने स्वयं अपने स्कूल के बच्चों से करवाया।
लेकिन पुस्तक की भूमिका में उन्होंने लिखा कि एक विषय को लेकर वो विशेष चिंतित हैं- बच्चों का यौन शोषण जिसने उन्होंने बच्चों को हिम्मत से अपनी बात कहने का आवाहन किया है।
वो लिखती हैं,"नुक्कड़ की पाठशाला आज के जीवन के अधिकांश समस्यापरक विषयों का संकलन है।बाल यौन शोषण कुछ ऐसा विषय है जिसपर पीड़ित बच्चे अपने माता पिता तो दूर की बात अपने मित्रों से ज़िक्र नहीं करते।इसका कारण जानने के लिए मैंने स्वयं से तथा कई महिला महिलाओं से जो बचपन में इसका शिकार हुई बात करने की कोशिश की।कोई भी पीड़ित/पीड़िता ठीक से नहीं बता पाई की उन्हें किस बात का डर था।...'कुछ ना कहो' नुक्कड़ नाटक में मेरा यही प्रयास है कि अगर यौन पीड़ित एक भी बच्ची अथवा बच्चा इसे पढ़कर अथवा नुक्कड़ पर खेला जाता हुआ देख कर अपनी आप बीती अपने माता पिता,शिक्षक अथवा किसी अन्य विश्वासपात्र को बताने हिम्मत जुटा पाता है तो मैं अपने इस छोटे से प्रयास की बड़ी सफलता समझूँगी। (अमिताभ श्रीवास्तव )
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