भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की चौथी सबसे बड़ी और सबसे तेज बढ़ रही अर्थव्यवस्था है। देश की सकल आय पिछले 10 वर्षों में लगभग दूनी हो गई है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार जहां 2005-06 में गरीबी रेखा के नीचे भारत में 64.45 करोड़ लोग थे वहीं वर्ष 2019-21 में यह संख्या घटकर 23 करोड़ रह गई। गरीबी उन्मूलन के भारत के प्रयास को सराहनीय माना गया, किंतु अभी भी आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी से जूझ रहा है। विशेषकर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की दशा दयनीय है। आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के अनुसार इस क्षेत्र में 43.99 करोड़ लोग हैं। हाल ही में उत्तरांचल में बन रहे टनल में फंसे मजदूरों को निकालने में जिन रैट होल माइनर्स कि अहम भूमिका थी, उनमें से अधिकांश ने यह कहा की कुछ दिनों तक हमारे काम की सराहना होगी, हमें पुरस्कृत किया जाएगा, किंतु उसके बाद हमें फिर अपना जीवन गरीबी में ही बसर करना पड़ेगा। हमारी आमदनी इतनी नहीं है कि हम अपने परिवार की आवश्यकताओं को पूरी कर सकें, अपने बच्चों को शिक्षा दिला सकें और खुशहाली का जीवन व्यतीत कर सकें। आंकड़े कुछ भी कहें असंगठित क्षेत्र में बड़ी संख्या में मजदूर अभी भी गरीबी रेखा के नीचे हैं। संगठित क्षेत्र के मजदूरों की तुलना में उनकी मजदूरी बहुत कम है, सामाजिक सुरक्षा, काम पर दुर्घटना से सुरक्षा, आवास, चिकित्सा और शिक्षा सुविधायें नहीं के बराबर है। कानूनी प्रावधानो और अनेक सरकारी योजनाओं के बावजूद उनकी आर्थिक स्थिति में बदलाव की प्रक्रिया धीमी है। विकास का लाभ उन तक इतना नहीं पहुंचता जितना योगदान वे अपने परिश्रम से अर्थव्यवस्था को देते हैं। यह स्थिति भारत ही नहीं दुनिया के बहुत सारे देशों में है, विकसित देशों में भी असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का शोषण होता है, उन्हें उतनी सुविधाएं नहीं मिलती जितनी संगठित क्षेत्र के श्रमिकों को दी जाती हैं।
श्रम मंत्रालय, भारत सरकार ने असंगठित कामगारों को चार श्रेणियां में बांटा है:
पेशे के अनुसार- लघु और सीमांत किसान, भूमिहीन किसान, भूमिहीन कृषक श्रमिक, बटाईदार, मछुआरे, पशुपालक।
स्वामित्व के आधार पर- स्वरोजगार वाले,संबद्ध कृषि श्रमिक, बंधुआ मजदूर, ठेका और नैमित्तिक श्रमिक।
अति विपदाग्रस्त- सर पर मैला ढोने वाले, सर पर बोझ ढोने वाले, पशु गाड़ियां चलाने वाले, माल ढुलाई करने वाले।
सेवा में लगे- दाइयां, घरेलू कामगार, मछुआरे, रेहडी पर फल- सब्जियां बेचने वाले, अखबार बेचने वाले आदि।
इनके अतिरिक्त बुनकर, कताई, बुनाई, रंगाई करने वाले, रिक्शा चालक, कुटीर उद्योगों के कामगार, पीतल के बर्तन, ताले आदि बनाने वाले कारीगर, छपाई प्रेस में काम करने वाले और छोटे-मोटे धंधे करके जीविका कमाने वाले असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की श्रेणी मे हैं। शहरों की अपेक्षा गांवों में रहने वाले असंगठित क्षेत्र के मजदूर अधिक गरीब है।
असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिला श्रमिकों की आर्थिक स्थिति पुरुषों की अपेक्षा और भी दयनीय है। उनके साथ भेदभाव का वर्ताव होता है, पुरुषों के बराबर काम का बराबर वेतन उन्हें नहीं मिलता। बहुत से ऐसे काम उन्हें नहीं दिए जाते जिसे वे अच्छी तरह कर सकती हैं क्योंकि उसे औरतों का काम नहीं माना जाता। इस तरह के घिसे पिटे तर्क से महिलाएं अपने काम के अधिकार से वंचित हो जाती है। वे यौन उत्पीड़न एवं शोषण की शिकार भी होती हैं।
बाल श्रमिकों की स्थिति और भी बदतर है। जहां एक ओर वे शिक्षा से वंचित किए जाते हैं, उनका शारीरिक एवं मानसिक विकास रुकता है, उनका आत्म सम्मान और उनकी क्षमता छीन ली जाती है, वहीं दूसरी ओर उनका भविष्य भी अंधेरे में डाल दिया जाता है। परिवार का खर्च न चलने की स्थिति में गरीब मां-बाप बच्चों को काम पर लगा देते हैं। 14 वर्ष से कम बच्चों को काम पर लगाने की इजाजत कानून नहीं देता, किंतु वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं है। कर्ज की अदायगी न कर पाने पर बच्चों को रेहन रखने की भी घटनाएं होती हैं, उनसे बेगार कराया जाता है, वे शारीरिक, मानसिक और यौन उत्पीड़न के भी शिकार होते हैं। बाल श्रमिकों की समस्या भी सिर्फ भारत में नहीं बल्कि विश्व व्यापी है।
कुछ कानून जो सिर्फ संगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए बनाए गए हैं उन्हें छोड़कर बाकी सभी के प्रावधान असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए भी हैं किंतु उनका लाभ उन्हें उतना नहीं मिल पाता। शिक्षा का अभाव, कानून की जानकारी न होना, संसाधनों की कमी, सरकारी तंत्र की उपेक्षा इसके प्रमुख कारण हैं। असंगठित कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम एवं 2008 से ही लागू है। प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना भी असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए बनाई गई है। गरीब कल्याण की सारी सरकारी योजनाएं: प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, जन धन योजना,आवास योजना, ग्रामीण आवास योजना, उज्ज्वला योजना, अंत्योदय योजना, आयुष्मान भारत योजना आदि का लाभ असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए भी उपलब्ध है जैसे और लोगों के लिए। कुछ योजनाएं जिनमें अंशदान देय होता है जैसे प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, जीवन ज्योति बीमा योजना, अटल पेंशन योजना आदि का भी लाभ असंगठित क्षेत्र के कामगार उठा सकते हैं। गरीब कल्याण योजनाओं में असंगठित क्षेत्र के कामगारों की भागीदारी प्रोत्साहित और सुनिश्चित की जाए तो उनकी आर्थिक स्थिति में तेजी से सुधार हो सकता है। सरकार द्वारा बनाए गए श्रम पोर्टल पर अब तक लगभग 29 करोड़ श्रमिकों का रजिस्ट्रेशन हुआ है। जिन योजनाओं में सरकार गरीबों के खाते में सीधे पैसे जमा करती है उनका लाभ लेने में रजिस्ट्रेशन सहायक होता है। राज्यों में असंगठित कामगारों के लिए जो सामाजिक सुरक्षा बोर्ड बनाए गए हैं उनकी कार्यशैली से लाल फीता शाही हटाई जाए, उन्हे श्रमिक फ्रेंडली बनाया जाय।
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